धर्म संवाद / डेस्क : भारतीय धर्मग्रंथों में अनेक अद्भुत कथाएँ मिलती हैं, जो जीवन को दिशा देने वाली होती हैं। ऐसी ही एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रेरणादायक कथा है – गजेन्द्र मोक्ष। यह कथा भक्ति, विश्वास और ईश्वर की करुणा का अनुपम उदाहरण है। गजेन्द्र मोक्ष की कथा मुख्यतः विष्णु पुराण और श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित है। यह कहानी बताती है कि कैसे सच्ची पुकार पर भगवान स्वयं अपने भक्त की रक्षा के लिए दौड़े चले आते हैं।
यह भी पढ़े : गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र : मानसिक तनाव से बचने के लिए करे इस स्तोत्र का जाप
कथा के अनुसार, द्रविड़ देश में इंद्रद्युम्न नामक एक परम प्रतापी राजा राज्य करते थे। वे एक विष्णु भक्त थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक धर्मपूर्वक राज्य किया। वृद्धवस्था में उन्होंने राज-पाट त्याग दिया और मलय पर्वत पर आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे। एक बार की बात है, महर्षि अगस्त्य शिष्यों सहित इंद्रद्युम्न के आश्रम में पधारे। उस समय इंद्रद्युम्न समाधि में लीन थे, इसलिए उन्हें महर्षि के आगमन का पता नहीं चला। अगस्त्य जी ने इसे अपने अपमान के रूप में देखा और क्रोधित होकर राजा को शाप देते हुए कहा, ” दुष्ट! तूने अभिमान में आकर मेरा अपमान किया है, मेरे आने पर भी तू हाथी की भाँति बैठा रहा, मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू गज की योनि में जन्म लेगा।”
इसी शाप के कारण राजा को गजेंद्र हाथी बनकर जन्म लेना पड़ा, लेकिन पुण्यकर्मों के कारण हाथी की योनि में भी उन्हें पूर्वजन्म की स्मृति रही और वे निरंतर भगवान का स्मरण करते रहे. एक दिन गजेन्द्र हमेशा की तरह भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए कमल के फूल लेने के लिए पास की झील पर गया। अचानक, झील में रहने वाले एक मगरमच्छ ने उस पर हमला कर दिया और उसे पैर से पकड़ लिया। गजेंद्र ने मगरमच्छ के चंगुल से भागने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ। उसके पूरे झुंड ने भी मदद की लेकिन मगरमच्छ ने उसे जाने नहीं दिया। जब उन्हें एहसास हुआ कि ‘मृत्यु’ गजेंद्र के करीब आ गई है, तो उन्होंने उसे अकेला छोड़ दिया। वह दर्द और लाचारी में चिल्लाता रहा और अंतिम समय में उसने अपने देवता विष्णु को बचाने के लिए पुकारा और एक कमल को भेंट के रूप में हवा में उठा लिया। अपने भक्त की पुकार और प्रार्थना सुनकर, विष्णु दौड़े चले आये। जैसे ही गजेंद्र ने भगवान को आते देखा, उसने अपनी सूंड से कमल को उठा लिया। यह देखकर, विष्णु प्रसन्न हुए और अपने सुदर्शन चक्र से उन्होंने मगरमच्छ का सिर काट दिया और गजेन्द्र को उसके बंधन से मुक्त किया।

गजेन्द्र को न केवल शारीरिक मुक्ति मिली, बल्कि उसे आध्यात्मिक मोक्ष भी प्राप्त हुआ। भगवान विष्णु ने उसे अपने परम धाम में स्थान दिया। मगरमच्छ से जान बचाने के लिए गजेंद्र द्वारा की गई प्रार्थना विष्णु की स्तुति में एक प्रसिद्ध भजन बन गई जिसे गजेंद्र स्तुति कहा जाता है। इस भजन को बाद में विष्णु सहस्रनाम (विष्णु के 1,000 नामों से बना कार्य) के पहले और सबसे महत्वपूर्ण भजन के रूप में शामिल किया गया। गुरुवार के दिन गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने से सौभाग्य की प्राप्ति हो सकती है।
ऐसी मान्यता है गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का नियमित पाठ करने से कर्ज की समस्या से निजात मिलती है, वहीं गजेंद्र मोक्ष का चित्र घर में लगाने से आने वाली बाधा दूर होती है। इस स्तोत्र का सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद प्रतिदिन करना चाहिए।
गजेंद्र स्तुति का पाठ करने से सभी प्रकार के संकट, क्लेश और भय दूर होते हैं। यह स्तुति यह सिखाती है कि जब मानव अपनी सामर्थ्य समाप्त होने पर भगवान को पूर्ण विश्वास और भक्ति से पुकारता है, तो भगवान उसकी सहायता अवश्य करते हैं। गजेंद्र को भगवान विष्णु ने मोक्ष प्रदान किया था। अतः इस स्तुति के पाठ से आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके पाठ से कर्ज से मुक्ति मिलती है। यह स्तुति जीवन के सभी दुःखों, रोगों और बाधाओं को दूर करने में सक्षम मानी जाती है। इसके पाठ से व्यक्ति को भयमुक्ति, आत्मविश्वास और साहस प्राप्त होता है, जैसा कि गजेंद्र को भगवान विष्णु की कृपा से मिला था।