धर्म संवाद / डेस्क : भारतभूमि देवी-पूजन और शक्ति उपासना की पावन धरती रही है। अनेक रूपों में माँ जगदंबा की आराधना होती रही है, परंतु माँ कामाख्या का स्थान इन सब में विशेष और अद्वितीय है। असम के गुवाहाटी नगर के समीप नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या देवी का मंदिर शक्ति साधना का एक प्रमुख केंद्र है, जिसे “कामरूप-कामाख्या” भी कहा जाता है।
माँ कमाख्या के बारे मे “राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य, “दस महाविद्याओ” ग्रंथ के अनुसार एवं पुरानो के अनुसार माँ सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा अपमानित होने के बाद यज्ञ अग्नि मे कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे । तब भगवान शिव, माता सती के विलाप मे उनकी पार्थिव शरीर को उठा कर पूरे ब्रह्मांड में भ्रमण करने लगे । तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के पार्थिव शरीर को खंडित कर दिया । माता के खंडित अंग जहाँ जहां गिरे वहाँ एक एक शक्ति पीठ बन गया । माँ कामाख्या शक्तिपीठ भी उन्ही शक्तिपीठों में से एक है ।
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कामाख्या शक्तिपीठ असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर और असम के गुहाहाटी शहर के निलांचल पर्वत पर स्थित है। इस जगह माता सती की योनि गिरी थी इसलिए यहाँ कोई विग्रह (मूर्ती) की पूजा नहीं की जाती बल्कि उसी योनि की पूजा की जाती है, इस मंदिर मे अंबुवाची मेला, मनसा पूजा, दुर्गापूजा, शारदीय नवरात्र, एवं बासन्ती दुर्गापूजा के समय भक्तों का अम्बार लगा रहता है।
इसी समय तंत्र साधना से जुड़े लोग भी सिद्धि प्राप्ति के लिए कामाख्या शक्तिपीठ पर आते है । केवल भारत से ही नहीं बल्कि पूरे विश्व से यहाँ भक्त आते है। कामाख्या शक्तिपीठ विश्व भर के तांत्रिकों का आकर्षण स्थल है साथ ही तंत्र साधना का महतपूर्ण स्थल भी । इसे श्रेष्ठ शक्तिपीठों मे से एक माना जाता है । एक मान्यता के अनुसार जो भी माँ कमखाया शक्तिपीठ का तीन बार दर्शन कर लेता है उनको सांसारिक भवबंधनों से मुक्ति मिल जाती है ।
अम्बुबाची मेला
हर साल जून के महीने मे कामाख्या शक्तिपीठ पर अंबुवाची मेला लगता है जो देवी की रजस्वला उत्सव के रूप मे लगता है । इस समय लगातार तीन दिनों के लिए मंदिर का पट बंद रहता है और इन दिनों मे कोई अनुष्ठान नहीं होती है । तथा गर्भगृह मे सफेद वस्त्र बिछाया जाता है जो माँ के रजस्वला होने पर पूरी तरह से लाल हो जाता है। कहा जाता है की ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी इस समय लाल हो जाता है। इस दौरान नदी मे स्नान करना भी वर्जित होता है । तीन दिनों के बाद उस लाल वस्त्र को भक्तों मे महाप्रसाद के रूप मे वितरण किया जाता है । जिसे पाने के लिए भक्तों मे होड लग जाती है। खास कर तंत्रसाधना करने वाले लोग क्योंकि मान्यताओ के अनुसार इसे लेकर शक्ति की उपासना करने पर सिद्धियाँ मिलती है । रजस्वला समाप्ति के बाद विशेष पूजा अर्चना की जाती है एवं इस समय साधना करने दूर दूर से लोग आते है इसे साधकों का गढ़ माना जाता है ।
कामाख्या मंदिर का स्थापत्य असमिया वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर की गुंबदें कमल की आकृति में बनी हैं और इसमें भव्य शिलालेख व मूर्तियाँ हैं। मंदिर के परिसर में दस महाविद्याओं के अलग-अलग मंदिर भी स्थित हैं, जो माँ के विभिन्न शक्तिरूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। कामाख्या मंदिर के पास ही उमानंद भैरव का मंदिर है, उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं। इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
कामाख्या मंदिर मे माँ के दर्शन का समय सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक फिर दोपहर 2:30 बजे से 5:30 बजे तक रहता है । भक्तों के लिए सामान्य प्रवेश निसुल्क है जिसपर भक्त सुबह 5:00 बजे से ही कतार लागाना सुरु कर देते है, माँ का दर्शन करने मे 3 से 4 घंटे लग जाते है ।