Do you want to subscribe our notifications ?

जाने वट सावित्री के पीछे जुड़ी सावित्री सत्यवान की कथा

By Tami

Published on:

सावित्री सत्यवान

धर्म संवाद / डेस्क : हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री मनाई जाती है. इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पती की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. हमारे भारतीय सनातन संस्कृति में माना जाता है कि बरगद के पेड़ पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों निवास करते हैं. इसके साथ ही ये भी माना जाता है बरगद के पेड़ के नीचे ही सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे.

यह भी पढ़े : हिन्दू धर्म में मुंडन का क्या महत्व है

सावित्री असल में  प्रसिद्ध तत्त्‍‌वज्ञानी राजर्षि अश्वपति की एकमात्र पुत्री थी.  उनका विवाह द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से ठीक हुआ था. तब ऋषि नारद ने आकार सावित्री को बताया कि तुम्हारा पति अल्पायु है. उनकी   आयु केवल एक वर्ष की ही शेष है. इसलिए बेहतर होगा कि सावित्री किसी और से विवाह करे. परंतु सावित्री ने उनकी बात नहीं मानी और कहा,  मैं एक हिन्दू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं. उनके माता पिता ने भी सावित्री को बहुत समझाया लेकिन वे फिर भी नहीं मानी और सत्यवान से ही विवाह के बंधन में बंधी.  सत्यवान अपने माता पिता के साथ वन में रहते थे, सावित्री भी उनके साथ रहने लगीं.

सत्यवान गुणी, धर्मात्मा, माता-पिता के भक्त एवं सुशील थे परंतु उनका अंत समय निकट था. नारद जी ने सत्यवान की मृत्यु का जो समय बताया था सावित्री ने उसके तीन दिन पहले से ही उपवास प्रारंभ कर दिया.  हर दिन की तरह सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने चला गया. साथ में सावित्री भी गई थी. सत्यवान एक पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काट रहे थे तभी उसके सिर में तेज दर्द हुआ. वह वट वृक्ष के नीचे आकर सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए. इसी बीच यमराज आए और सत्यवान को लेकर जाने लगे. तब सावित्री ने यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना की. लेकिन यमराज नहीं माने.  सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी. जब यमराज ने देखा कि सावित्री उनके पीछे पीछे आ रही हैं, तो उन्होंने सावित्री से कहा कि सत्यवान और तुम्हारा साथ धरती तक ही था. अब तुम वापस लौट जाओ. सावित्री नहीं मानी और उनके पीछे पीछे चल पड़ी.

यमराज इससे बड़े प्रसन्न हुए। यमराज ने कहा- तुम धन्य हो देवी. तुम मुझसे कोई भी वरदान मांग सकती हो. सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के आँखों की रोशनी मांगी. यमराज ने वह वरदान दे दिया. ​कुछ समय बाद यमराज ने देखा कि सावित्री अभी भी उनके पीछे चल रही हैं, तो उन्होंने फिर एक वरदान मांगने को कहा. फिर सावित्री ने  उनका छिना हुआ राज्य मांगा . यमराज ने वह भी वरदान दे दिया. इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रहीं. यमराज ने उनसे एक और वरदान मांगने को कहा.  तो फिर सावित्री ने अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा. 

तब यमराज बोले सत्यवान् को छोड़कर चाहे जो माँग लो, सावित्री ने कहा-यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे सौ पुत्र प्रदान करें। यम ने बिना ही सोचे प्रसन्न मन से तथास्तु कह दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढ़े । सावित्री ने कहा- मेरे पति को आप लिये जा रहे हैं और मुझे सौ पुत्रों का वर दिये जा रहे हैं। यह कैसे सम्भव है? यमराज समझ गए कि सत्यवान को ले जाना संभव नहीं है। उन्होंने अंतत: सत्यवान के प्राण लौटा दिए और वहां ये अदृश्य हो गए. जब सावित्री लौटकर वट वृक्ष के पास आई तो सत्यवान पुन:जीवित हो गए थे. सावित्री के व्रत और पतिव्रता धर्म से सत्यवान को दोबारा जीवन मिल गया और उनके ससुर को खोया राजपाट भी मिल गया. वे पहले की तरह देखने भी लगे थे। इसके बाद से ही सुहागन महिलाएं वट सावित्री व्रत करने लगीं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो।  

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

Exit mobile version