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भगवान शिव को पशुपतिनाथ क्यों कहते हैं, जाने भगवान शिव के इस नाम से जुड़ी पौराणिक कथा

By Tami

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भगवान शिव को पशुपतिनाथ क्यों कहते हैं

धर्म संवाद / डेस्क : हिंदू धर्म में भगवान शिव को “त्रिदेवों” में से एक माना गया है . उनके कई नाम है। कोई उन्हे महादेव कहता है तो कोई नीलकंठ । उसी तरह उनका एक नाम पशुपतिनाथ है। वैसे तो कहा जाता है कि शिवजी को मनुष्य के साथ-साथ पशु भी अत्यंत प्यारे हैं, इसलिए उन्हें पशुपतिनाथ कहा जाता है लेकिन ज्ञानियों का मानना है कि पशुपतिनाथ में “पशु” का अर्थ केवल जानवर से ही नहीं, बल्कि अज्ञानता, मोह और बंधन में फंसे सभी जीव भी होते हैं। “पति” का अर्थ स्वामी या रक्षक है। इसलिए भगवान शिव संपूर्ण सृष्टि के संरक्षक और मुक्तिदाता हैं, जो अज्ञान के बंधन से जीवों को मुक्त करते हैं। परंतु उनके हर एक नाम के पीछे एक कहानी है। उसी तरह पशुपतिनाथ के पीछे भी एक दिलजस्प कहानी है।

भगवान शिव को पशुपतिनाथ क्यों कहते हैं ? Why is Lord Shiva called Pashupatinath?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय पृथ्वी लोक पर नकारात्मकता और अन्याय बढ़ने लगा था। जीव-जंतु, मनुष्य और यहां तक कि देवता भी अपने कर्मों के बोझ से त्रस्त थे। स्वार्थ, लोभ और अहंकार ने सभी को अंधा कर दिया था, जिससे धर्म और न्याय का संतुलन बिगड़ गया था। ऐसी परिस्थिति से पूरे संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने पशुपतिनाथ का अवतार लिया।

‘पशु’ शब्द का मतलब जीव और ‘पति’ का मतलब स्वामी या रक्षक होता है । भगवान शिव ने इस शांत और करुणामय रूप को धारण करके सभी जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय दिया। उनका यह अवतार सृष्टि में व्यवस्था और संतुलन स्थापित करने के लिए था।

एक और कथा है जिसके मुताबिक, एक बार असुरों के संघार के लिए ब्रह्मांड की सारी शक्तियों को मिलाकर भगवान शिव के लिए दिव्य रथ तैयार किया गया। विष्णु जी महादेव के बाण और अग्नि देव बाण की नोंक बनें। ऋषि, देवता, गन्धर्व, नाग, लोकपाल, ब्रह्मा, विष्णु सभी उनकी स्तुति कर रहे थे। लेकिन जैसे ही शिवजी उस दिव्य रथ पर चढ़ने लगे, घोड़े सिर के बल जमीन पर गिर पड़े। पृथ्वी डगमगाने लगी। सहसा शेषनाग भी शिव का भार नहीं सह सके और आतुर होकर कांपने लगे।  तब भगवान धरणीधर ने नंदीश्वर रूप धारणकर रथ को उठाया। लेकिन वह भी शिव के उत्तम तेज को सहन न कर सके और अपने घुटने टेक दिए।

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इसके बाद ब्रह्मा जी ने शिवजी की आज्ञा से हाथ में चाबुक लेकर घोड़ों को उठाकर रथ को खड़ा किया. तब भगवान शिव सभी देवताओं से कहने लगे कि, अगर आप सभी देवों और अन्य प्राणियों के विषय में थोड़ी-थोड़ी पशुत्व की कल्पना करके उन पशुओं का आधिपत्य मुझे प्रदान कर दें तो मैं उन असुरों का संहार करूंगा। क्योंकि तभी वो दैत्य मारे जा सकते हैं। देवाधिदेव महादेव की इस बात से सभी देवताओनज का मन खिन्न हो गया। शिव ने देवताओं से कहा, पशु भाव पाने के बाद भी किसी का पतन नहीं होगा. इसके बाद कई देवता और असुर भगवान शिव के पशु बने और पशुत्वरूपी पाश से विमुक्त करने वाले शिव पशुपति कहलाएं। इसके बाद से ही शिव का ‘पशुपति’ नाम संसार में विख्यात हुआ।

एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन समय के काठमांडू (नेपाल) में कई राक्षसों का आतंक था, जो निर्दोष पशुओं और मनुष्यों को कष्ट देते थे। तब सभी ने भगवान शिव से सहायता मांगी। भगवान शिव ने अपनी दिव्य शक्ति से इन असुरों का संहार किया और समस्त प्राणियों की रक्षा की। इसके बाद सभी देवताओं ने उन्हें “पशुपतिनाथ” की उपाधि दी। इसी स्थान पर आज काठमांडू का प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर स्थित है।  यहाँ पर शिवजी का चार मुखों वाला दिव्य शिवलिंग स्थापित है, जो ब्रह्मांड के चारों दिशाओं का प्रतीक है।

पशुपतिनाथ भगवान की पूजा मुख्य रूप से शांति, समृद्धि और सभी प्रकार के सांसारिक दुखों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है। इस अवतार की पूजा का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह भक्तों को उनके कर्मों के प्रति जागरूक करती है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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