धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत में अभिमन्यु का पात्र बहुत ही प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण है। वे एक असाधारण योद्धा थे। वे अर्जुन और शुभद्रा के पुत्र थे और श्रीकृष्ण के भांजे भी। उनकी मृत्यु महज़ 16 साल की उम्र में चक्रव्यूह में फस कर हुई थी। माना जाता है कि अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदना गर्भ में सिखा था।जी हाँ अर्जुन अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदना बता रहे थे। उस वक्त अभिमन्यु अपनी मां के गर्भ में थे। उसी समय उन्होंने सुन लिया। हालांकि, जब अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह से बाहर निकलने का रास्ता बता रहे थे तो वह सो गईं। ऐसे में अभिमन्यु को इसकी जानकारी नहीं मिल सकी। उन्हें चक्रव्यूह में प्रवेश करना आता था परन्तु वहाँ से निकलना नहीं आता था। इसी वजह से उनकी मृत्यु हुई। चलिए ये पूरी कहानी जानते हैं।
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चक्रव्यूह असल में एक व्यूह रचना थी । इसे आसमान से देखने से लगता था की ये एक घूमता हुआ चक्का है। व्यूह लगातार घूमता हुआ आगे बढ़ता था, कुछ कुछ स्क्रू के घूमने जैसा, जैसे जैसे अन्दर के स्तर पर पहुँचते योद्धाओं की क्षमता भी बढ़ती जाती थी | पहला द्वार आसान होता था और सातवां सबसे कठिन ।
साथ ही इस व्यूह में योद्धा लगातार लड़ते रहते थे ।जो भी चक्रव्यूह में प्रवेश करेगा उसे लगातार चक्रव्यूह के सैनिको से लड़ते रहना होगा, लड़ते लड़ते वो योद्धा थक जायेगा , लेकिन जैसे जैसे वो अन्दर जाता जायेगा, जिन योद्धाओं से उसका सामना होगा वो थके हुए नहीं होंगे, ऊपर से वो पहले वाले योद्धाओं से ज्यादा शक्तिशाली, और ज्यादा अनुभवी होंगे। शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए योद्धा के लिए एक बार अन्दर फंस जाने पर जीतना और बाहर आना दोनों मुश्किल होता जाता है। व्यूह में अगर कोई योद्धा मर जाता है तो , उसके बगल वाला योद्धा उसका स्थान ले लेता है, यानि अन्दर से एक बेहतर योद्धा निकल कर सामने आ जाते हैं| इस तरह ये व्यूह भेदना नामुमकिन हो जाता है।
महाभारत के 13 वे दिन चक्रव्यूह रचा गया । चारों पांडव भय और चिंता से घिर गए दरअसल युधिष्ठिर को चक्रव्यूह में फसाना चाहते थे कौरव। इसी वजह से द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह का निर्माण किया। उस वक़्त युधिष्ठिर के बंधक बन जाने का मतलब था पांडवों की हार। तब अभिमन्यु ने युधिष्ठिर से कहा कि मैं चक्रव्यू भेदना जानता हूं परंतु उससे बाहर निकलना नहीं। उन्होंने कहा कि जब वो अपनी मां के गर्भ में था तब उसके पिता ने उसे चक्रव्यूह तोड़ना सिखाया था। ऐसे में सभी पांडवों ने निर्णय लिए कि अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदेगा और उसके पीछे पीछे बाकि सब चक्रव्यूह में प्रवेश करके उसकी रक्षा करेंगे और उसे बाहर निकाल लाएंगे।
लेकिन जैसे ही अभिमन्यु घुसा और व्यूह फिर से बदला और पहली कतार पहले से ज्यादा मजबूत हो गई तो पीछे के योद्धा, भीम, सात्यकि, नकुल-सहदेव कोई भी अंदर घुस ही नहीं पाए।और जैसा कि महाभारत में द्रोणाचार्य भी कहते हैं, लगभग एक ही साथ दो योद्धाओं को मार गिराने के लिए बहुत कुशल धनुर्धर चाहिए | युद्ध में शामिल योद्धाओं में अभिमन्यु के स्तर के धनुर्धर दो चार ही थे | इससे थोड़े ही समय में अभिमन्यु चक्रव्यूह के और अंदर घुसता तो चला गया, लेकिन अकेला। उसके पीछे कोई नहीं आया। सभी प्रयास कर रहे थे तब जयद्रथ ने आकर मोर्चा संभाला और पांडवों को चक्रव्यूह में जाने से रोक दिया।
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चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक चक्रव्यूह के 6 चरण भेद लिए। इस दौरान अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध किया गया। अपने पुत्र को मृत देख दुर्योधन के क्रोध की कोई सीमा न रही। छह चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जैसे ही 7वें और आखिरी चरण पर पहुंचे, तो उसे दुर्योधन, कर्ण, द्रोणाचार्य आदि सहित 7 महारथियों ने घेर लिया। सातों ने मिलकर अभिमन्यु के रथ के घोड़ों को मार दिया। फिर भी अपनी रक्षा करने के लिए अभिमन्यु ने अपने रथ के पहिए को अपने ऊपर रक्षा कवच बनाते हुए रख लिया और दाएं हाथ से तलवारबाजी करता रहा। कुछ देर बाद वीर अभिमन्यु की तलवार टूट गई और रथ का पहिया भी चकनाचूर हो गया।
युद्ध नियम के अनुसार, निहत्थे पर वार नहीं किया जाता था। किंतु तभी पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर जोरदार तलवार का प्रहार किया। इसके बाद एक के बाद एक सातों योद्धाओं ने उस पर वार पर वार कर दिए। अभिमन्यु वहां वीरगति को प्राप्त हो गए।