धर्म संवाद/ डेस्क : उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है, क्योकि यहाँ के कण कण में भगवान बसते है । यहाँ भगवान शिव और माता पारवती के कई मंदिर है , और साथ ही साथ उनके पुत्र कार्तिकेय का भी एक मंदिर है । जहा आज भी उनकी अस्स्थिया मौजूद है।जी हा उत्तराखंड रुद्रप्रयाग के कनकचौरी गांव के पास एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है , कार्तिक स्वामी मंदिर । इस मंदिर के शिखर से हिमालय की बहुत सारी श्रेणियों के दर्शन होते है । और तो और इसकी चोटी से लगता है मानो बादल हाथ में आ गए हो। दूर से देखने से ये मंदिर बादल में छुपा हुआ दिखाई देता है।
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मंदिर समुद्र तल से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये मंदिर 12 महीने श्रधालुओ के लिए खुला रहता है । पौराणिक कथाओ के अनुसार जब प्रथम पूज्य के लिए भगवान शिव और देवी पार्वती के दो पुत्रों – भगवान कार्तिक और भगवान गणेश – को ब्रह्मांड की 3 बार परिक्रमा कर आने को कहा गया । बस और क्या था भगवान कार्तिकेय अपने वहां मोर पर बैठ कर उड़ गए । पर गणेश जी ने भगवान शिव और माता पारवती के चक्कर लगा लिए । और कहा की माता पिता में पूरा संसार समाहित है । माता पिता के चक्कर लगाने का अर्थ है पुरे संसार का चक्कर लगाना । सारे देवी देवता गणेश जी की बुद्धिमत्ता से प्रसन्न हुए और उन्हें प्रथम पूज्य घोषित कर दिया गया ।
जब कार्तिकेय लौटे और उन्हें सारी बात पता चली , तो वे क्रोधित हो गए। कहते है की वे इतने क्रोधित हो गए की अपने शारीर के मांस को माता पिता के चरणों में समर्पित कर कैलाश छोड़ कर क्रोंच पर्वत चले गए । और यहाँ ध्यान में बैठ कर निर्वाण हो गए । माना जाता है भगवान कार्तिकेय की अस्थियां आज भी मंदिर में मौजूद हैं, जिनकी पूजा करने लाखों भक्त हर साल कार्तिक स्वामी मंदिर आते हैं ।
भगवान कार्तिकेय को युद्ध, विजय और ज्ञान के देवता के रूप में पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर में पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सफलता और समृद्धि आती है। मंदिर उन तीर्थयात्रियों के लिए भी एक लोकप्रिय गंतव्य है जो भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद लेने के लिए कठिन यात्रा करते हैं। मंदिर वास्तुकला की पारंपरिक गढ़वाल शैली में निर्मित एक सरल लेकिन सुरुचिपूर्ण संरचना है। मंदिर पत्थर और लकड़ी से बना है, जिसमें एक ढलान वाली छत और स्तंभों द्वारा समर्थित एक लकड़ी का बरामदा है। गर्भगृह में भगवान कार्तिकेय की मूर्ति है, जो काले पत्थर से बनी है और चांदी के आभूषणों से सुशोभित है। मंदिर में एक यज्ञशाला या एक यज्ञ वेदी भी है, जहाँ अग्नि अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर की दीवारें भगवान कार्तिकेय के विभिन्न रूपों को दर्शाती जटिल नक्काशी और चित्रों से सुशोभित हैं। घंटियों की आवाज और हवा में मंत्रोच्चारण के साथ मंदिर का समग्र वातावरण शांत और शांतिपूर्ण है।
भारत के अधिकांश प्राचीन मंदिरों की तरह, कार्तिक स्वामी मंदिर किंवदंतियों और मिथकों में डूबा हुआ है। इसके निर्माण की सही तारीख ज्ञात नहीं है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान किया था, और भगवान कार्तिकेय उनके सामने एक युवा लड़के के रूप में प्रकट हुए थे। मंदिर का बाद में 8वीं शताब्दी में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने वाले प्रसिद्ध दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य द्वारा जीर्णोद्धार किया गया था। एक अन्य किंवदंती कहानी बताती है कि कैसे मंदिर का निर्माण एक स्थानीय राजा द्वारा किया गया था जिसे भगवान कार्तिकेय ने एक पुत्र का आशीर्वाद दिया था।
एक मिथक यह भी है जो कहता है कि मंदिर उत्तराखंड के एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर केदारनाथ मंदिर से एक भूमिगत सुरंग से जुड़ा हुआ है। जबकि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है, यह मंदिर के रहस्य और आकर्षण को जोड़ता है।
कार्तिक महीने में यहां दर्शन करने से हर तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। मंदिर में प्रतिवर्ष जून माह में महायज्ञ होता है। बैकुंठ चतुर्दशी पर भी दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा और जेष्ठ माह में मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां संतान के लिए दम्पत्ति दीपदान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में घंटी बांधने से इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि मंदिर के दूर से ही आपको यहां लगी अलग-अलग आकार की घंटियां दिखाई देने लगती हैं। मंदिर के गर्भ गृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां शाम की आरती बेहद खास होती है। इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है।