धर्म संवाद / डेस्क : उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जो भगवान शिव से संबंधित कई कथाओं और तीर्थों से जुड़ा हुआ है। यह स्थान भगवान शिव के ससुराल के रूप में भी प्रसिद्ध है, क्योंकि यहाँ माता सती के पिता प्रजापति दक्ष का घर हुआ करता था। ऐसी मान्यता है कि सावन में भगवान शिव कैलाश पर्वत से कनखल आ जाते हैं। यहीं पर भोलेनाथ एक महीने निवास करते हैं। यहाँ भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है, जिसे दक्षेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहते हैं यहीं दक्ष मंदिर में माता सती और महादेव का विवाह हुआ था।
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कथा के अनुसार, सती के पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया था। सती, जो भगवान शिव की पत्नी थीं, राजा दक्ष के यज्ञ में बिना निमंत्रण के शामिल होने गईं। लेकिन वहां भगवान शिव का अपमान हुआ और इससे दुखी होकर सती ने आत्मदाह कर लिया। इसकी जानकारी भगवान शिव को मिली तो वे क्रोधित हो गए। उनकी क्रोधाग्नि से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। इसके बाद शिव ने वीरभद्र को प्रकट किया और कनखल भेजा। यहां वीरभद्र ने राजा दक्ष के सिर को धड़ से अलग कर दिया।
देवी देवताओं के आग्रह और दक्ष प्रजापति की पत्नी भगवान शिव की आराधना में लीन हो गयीं। तब भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति को बकरे का शीश लगाकर जीवनदान दिया। दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव से अपनी गलती की क्षमा मांगी। दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव से वचन लिया था कि चातुर्मास के पहले माह यानि सावन में भगवान शिव कनखल में निवास करेंगे, ताकि वह उनकी सेवा कर सकें। जिसके बाद से ही ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव कनखल में रहने आते हैँ और यहीं से सृष्टि का संचालन भी करते हैं।
राजा दक्ष को जीवन प्रदान करने के बाद स्वयंभू शिवलिंग के रूप में भगवान शिव कनखल में प्रकट हुए और उनका यह शिवालय दक्षेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मान्यता है कि यह शिवलिंग ब्रह्मांड का प्रथम स्वयंभू शिवलिंग है। सावन में कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में जो भी भक्त भगवान शिव के शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करते हैं , उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।