धर्मराजेश्वर मंदिर: इस मंदिर का पहले शिखर बना और फिर रखी गयी नींव

By Tami

Published on:

धर्मराजेश्वर मंदिर

धर्म संवाद / डेस्क : भारत के प्राचीन मंदिरों में चमत्कार तो होते ही हैं। इसीलिए आज भी लोगों के अन्दर भगवान में आस्था बनी हुई है। लेकिन साथ ही साथ इन मंदिरों की खूबसूरती, बनावट और वास्तुकला आज के बड़े बड़े आकर्षक इमारतों को कड़ी टक्कर देती है। वैसा ही एक मंदिर है मध्य प्रदेह का धर्मराजेश्वर मंदिर। इसे कैलाश मंदिर की ही तरह एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है। वह भी उलटे तरीके से। आपको जानकार हैरानी होगी कि यहाँ पहले मंदिर का शिखर बनाया गया और उसके बाद नींव का निर्माण हुआ।

देख विडियो : Dharmrajeshwar Mandir | धर्मराजेश्वर मंदिर

[short-code1]

यह मंदिर मध्य प्रदेश के मंदसौर जिला मुख्यालय से 106 किलोमीटर दूर गरोठ तहसील में स्थित है। इस अद्भुत और अकल्पनीय मंदिर का निर्माण उल्टे तरीके से हुआ है। इसमें शिखर पहले बना और नीचे का हिस्सा यानी नींव का निर्माण बाद में हुआ।  इस मंदिर को गुफा मंदिर भी कहते हैं। यह मंदिर वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। धर्मराजेश्वर मंदिर की वास्तुकला कैलाश मंदिर के समान है। मंदिर 50 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी और 9 मीटर गहरी है । मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ एक बड़ा शिवलिंग भी मौजूद  है। मुख्य मंदिर के चारों ओर सात छोटे मंदिर हैं। मंदिर जमीन के अंदर ऐसे बना है कि सूर्य की पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भगृह तक जाती है। ऐसा लगता है मानो भगवान सूर्य घोड़ों पर सवार होकर शिव जी और विष्णु जी के दर्शन के लिए आए हों। 

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

इस मंदिर के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है मगर इतिहासकर मंदिर के निर्माण को 8 वि शताब्दी का मानते हैं। इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर सप्तायन शैली में बना हुआ है। सामान्य तौर पर किसी भी बिल्डिंग का निर्माण किया जाता है तो उसकी नींव पहले बनाई जाती है। लेकिन धर्मराजेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर है जिसका निर्माण ऊपर से निचे की ओर हुआ है जो आधुनिक इंजिनीरिंग को अच्छी खासी चुनौती देता है। मंदिर में छोटी कुईया विद्यमान हैं, मान्यता है कि इसका पानी कभी नहीं सूखता है। विशाल मंदिर और यह देवालय ना सिर्फ भगवान शिव और विष्णु के मंदिर का प्रतीक है, बल्कि यह संसार का अकेला ऐसा मंदिर है, जो जमीन के भीतर होते हुए भी सूर्य की किरणों से सराबोर हैं।

भक्तों का मानना है कि इस मंदिर की आधारशीला पांडवों ने राखी थी। कहते हैं कि द्वापर युग में पांडव जब अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर आए थे, तो भीम ने गंगा के सामने इसी जगह पर शादी का प्रस्ताव रखा था। तब गंगा ने भीम के सामने शादी की एक शर्त रखी थी, जिसके मुताबिक भीम को एक ही रात में चट्टान को काटकर इस मंदिर का निर्माण करना था। उसके बाद भीम की शर्त के मुताबिक 6 महीने की एक रात बना दी। 6 माह की इस रात्रि में मंदिर का निर्माण किया गया। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर मूल रूप से विष्णु भगवान का मंदिर था लेकिन बाद में भगवान शिव की भी स्थापना की गयी। यहां पर वैष्णव और शैव मत के अलावा बौद्ध गुफाएं भी है। इन गुफाओं में एक गुफा का नाम भीम गुफा भी है। युदिष्ठिर को धर्मराज कहा जाता था और उन्ही के नाम पर यह मंदिर पड़ा।  

See also  इस मंदिर को डाकुओं ने उजाड़ा और फिर बनवाया

यह भी पढ़े : इस गणेश मंदिर को एक हलवाई ने बनवाया था,जाने रोचक इतिहास

इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि सबसे पहले सूर्य एव भगवन शिव और भगवन विष्णु के दर्शन करते हैं। राजेश्वर मंदिर के ठीक नीचे पहाड़ी के निचले छोर पर करीब 170 छोटी-बड़ी गुफाएं हैं। बताया जाता है कि एक अंग्रेज कर्नल टॉड ने इन्हें सबसे पहले देखा था। करीब 60 से अधिक गुफाएं अब भी बहुत अच्छी स्थित में हैं। इन गुफाओं में सैकड़ो बौद्ध स्तूप के साथ मुद्राओं में बौद्ध प्रतिमाएं हैं। साथ ही गुफाओं के अंदर जैन तीर्थंकर, ऋषभ देव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, शांतिनाथ और महावीर के रूप में वर्णित पांच मूर्तियां पाई हैं। स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें पांडवों की मूर्ति माना जाता है। 1415 मीटर में बना इस विशालकाए मंदिर में जो गुफाएं है वो गुफाएं अजंता – एल्लोरा गुफाओं से काफी मिलती जुलती हैं।  

महाशिवरात्रि पर यहाँ 3 दिवसीय मेल का आयोजन होता है। मान्यता है कि शिवरात्रि के अवसर पर यहां रात रुकने से मोक्ष मिलता है। इसलिए कई यात्री यहाँ रात बिताते है और कीर्तन-भजन करते हैं। मंदिर के करीब पहुंचने तक यह अहसास नहीं होता है कि यहां कोई मंदिर भी होगा। मंदिर में दर्शन के लिए आपको जमीन के 9 फुट नीचे जाना होता है। सीढ़ियां उतरकर नीचे पहुंचने पर दोनों बगल में बड़ी-बड़ी चट्टानों से बनी दीवारों के बीच करीब 5 फुट चौड़ा सुरंगनुमा गलियारा है, जिससे गुजरते ही मंदिर सामने नजर आता है। इसके गर्भगृह में ऊपर भगवान विष्णु की प्राचीन प्रतिमा और तलघर में बड़ा-सा शिवलिंग स्थापित है। मुख्य मंदिर के आसपास सात छोटे मंदिर हैं। इनमें अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां विराजित हैं।

कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि यहाँ बौद्ध मठ का एक केंद्र रहा होगा। इस मंदीर का निर्माण पांडवो ने करवाया हो या बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने यह मंदिर रॉक-कट वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .