धर्म संवाद / डेस्क : पंच केदार यात्रा हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण यात्राओं में आती है। हर साल लाखों श्रद्धालु यह यात्रा तय करते हैं। पंच-केदार का मतलब भगवान शिव के उन पांच मंदिरों से है। यह मंदिर महाभारतकालीन हैं। माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव पश्चात्ताप करने के लिए भगवान शिव की की खोज कर रहे थे, तब उन्हें महादेव बैल के रूप में पांच अलग-अलग हिस्सों में दिखाई दिए थे। पांडवों ने भगवान शिव को मनाने और उनकी पूजा करने के लिए उन पाँच जगहों पर पांच मंदिरों का निर्माण किया था। उन्ही पाँच मंदिरों को पंच केदार कहा जाता है।
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केदारनाथ मंदिर
पंच केदार यात्रा में सबसे पहले आता है विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर। यह मंदिर हिमालय में 3583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । कहा जाता है कि केदारनाथ वो जगह है जहां भगवान शिव का कूबड़ प्रकट हुआ था। यहाँ मौजूद भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग भी वैसा ही प्रतीत होता है। केदारनाथ मंदिर एक अद्वितीय और अविश्वसनीय पत्थर वास्तुकला का दावा करता है। इस मंदिर के पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी भी प्रकार का सीमेंट या धातु का उपयोग नहीं किया गया है। मंदिर की छत पिरामिड आकार की है और भूरे पत्थर के स्लैब से ढकी हुई है। मंदिर के आंतरिक भाग में जटिल नक्काशी है जो भारतीय कला और संस्कृति का एक बेहतरीन नमूना है। मंदिर 3 विभागों में बँटा है- गर्भगृह, अंतराल और गुढ़ा मंडप।
तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ भारत का सबसे ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 3,680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर का निर्माण उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली में किया गया है। आपको बता दें ये वो जगह है, जहां बैल के रूप में भगवान शिव के हाथ दिखाई दिए थे। मंदिर के चारों ओर कई देवताओं के छोटे मंदिर हैं। कहा जाता है कि श्री राम ने तुंगनाथ के करीब स्थित चंद्रशिला शिखर पर ध्यान किया था। तुंगनाथ के पास खूबसूरत पहाड़ नीलकंठ, केदारनाथ और नंदा देवी हैं। ऋषि व्यास, शिव के शिष्यों, पांडवों और काल भैरव की मूर्तियाँ भी मंदिर में मौजूद हैं।
रुद्रनाथ मंदिर
पंच केदार यात्रा का तीसरा पड़ाव है रुद्रनाथ मंदिर। माना जाता है कि यह ये वो जगह है जहां पांडवों को बैल के रूप में महादेव का चेहरा दिखाई दिया था। यह मंदिर घास के मैदानों और रोडोडेंड्रोन से ढके घने जंगलों के बीच स्थित है । यहाँ भगवान शिव को ‘नीलकंठ महादेव’ के रूप में पूजा जाता है। ये खूबसूरत रोडोडेंड्रोन के जंगलों से घिरा हुआ है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र की रक्षा वन देवी वंदेवी करती हैं, इसलिए यहां सबसे पहले उन्हीं की पूजा की जाती है। यह मंदिर 2,286 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। रुद्रनाथ का ट्रेक सागर नाम के एक गांव से शुरू होता है जो गोपेश्वर से लगभग 3 किमी की दूरी पर स्थित है।
मध्यमहेश्वर मंदिर
मध्यमहेश्वर उत्तराखंड के गढ़वाल के हिमालय में 3497 मीटर की ऊंचाई पर गौंडर नामक गांव में स्थित है। माना जाता है कि यहाँ महादेव की बैल रूपी नाभि प्रकट हुई थी। मंदिर के गर्भगृह में नाभि के आकार का शिवलिंग है। उखीमठ से लगभग 18 किमी की ट्रैकिंग करके आप आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। आसपास के नज़ारे बेहद खूबसूरत है। मंदिर के अंदर दो और मंदिर हैं जिनमें से एक पार्वती को समर्पित है और दूसरा अर्धनारीश्वर को समर्पित है।
कल्पेश्वर
कल्पेश्वर मंदिर उर्गम घाटी में हिमालय में 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कल्पेश्वर वह जगह है, जहां भगवान शिव का सिर और जटाएं दिखाई दी थी। यह पंच केदार का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां पूरे साल जाया जा सकता है। बाकी मंदिर बर्फबारी के कारण शीतकाल के वसक्त बंद रहते हैं। यहां भगवान शिव को जटाधर या जतेश्वर के रूप में पूजा जाता है। इसके रास्ते में रास्ते में बेहद खूबसूरत कल्पगंगा और अलकनंदा नदियाँ पड़ती हैं। इस मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट पत्थर से किया गया है जो उन्हीं पहाड़ों से प्राप्त होता है। यह मंदिर नागर शैली की वास्तुकला का अनुसरण करता है । यहाँ महा शिवरात्रि बहुत ही धूम धाम से बनाई जाती है। यहां के मंदिर के पुजारी दसनामी और गोसाईं हैं जो आदि शंकराचार्य के अनुयायी हैं।