धर्म संवाद / डेस्क : होली रंगों का त्यौहार माना जाता है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के बाद वाले दिन होली मनाई जाती है. माना जाता है होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. होली के त्यौहार के पीछे भगवान नरसिंह और भक्त प्रहलाद की कहानी तो प्रसिद्ध है. इसके साथ ही कामदेव के भस्म होने की भी कहानी वर्णित है.
यह भी पढ़े : महाशिवरात्रि पर जाने शिव-पार्वती के विवाह की कथा
शिव पुराण के मुताबिक माता पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी ओर नहीं गया. उसके बाद सभी देवी-देवताओं ने प्रेम के देवता कामदेव को भगवान शिव के पास भेजा और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया, जिसके कारण शिव की तपस्या भंग हो गई. तपस्या भंग होने की वजह से शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि से कामदेव भस्म हो गए.
यह भी पढ़े : आखिर महादेव को क्यों भागना पड़ा एक असुर से, जाने भस्मासुर की कथा
पार्वती के पिछले जन्म की बातें याद कर भगवान शिव ने जाना कि कामदेव निर्दोष हैं. इसके बाद भागवान भोलेनाथ ने कामदेव को जीवित कर दिया और उसे नया नाम मनसिज दिया. भगवान शिव ने उनसे कहा कि अब तुम अशरीर ही रहोगे. उस दिन फागुन की पूर्णिमा थी. उसके बाद आधी रात को लोगों ने होलिका दहन किया. सुबह तक उसकी आग में वासना की मलिनता जलकर प्रेम के रूप में प्रकट हो गई.कामदेव अशरीरी भाव से नए सृजन के लिए प्रेरणा जगाते हुए विजय का उत्सव मनाने लगे. यह दिन होली का दिन होता है.
उत्तरप्रदेश के बलिया जिले में कामेश्वर धाम स्थित है. माना जाता है भगवान शिव ने कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था. यहां एक पेड़ है जो कि आधा जला और आधा हरा हैं. माना जाता है कि कामदेव ने इस आम के पेड़ के पीछे छिपकर भगवान शिव पर बाण चलाया था. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है.