धर्म संवाद / डेस्क : भारत को देवी-देवताओं की भूमि कहा जाता है। यहाँ पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों तक में भी ईश्वर का वास माना गया है। हिन्दू धर्म में जैसे पीपल, बरगद आदि की पूजा की जाती है, वैसे ही गाय और नाग देवता की भी विशेष आराधना होती है। विशेष रूप से नाग पंचमी के दिन सांपों की पूजा कर नाग देवता को प्रसन्न किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से भय और दुर्भाग्य का नाश होता है तथा कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
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नाग पंचमी के दिन देश के अनेक नाग मंदिरों में विशेष पूजन होता है, लेकिन उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर की बात ही निराली है। यह मंदिर साल में केवल एक बार—सिर्फ नाग पंचमी के दिन—रात्रि 12 बजे के बाद ही श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोला जाता है। यही कारण है कि लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस दिन उज्जैन का रुख करते हैं।
यह अद्भुत मंदिर, विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंज़िल पर स्थित है। महाकाल मंदिर के गर्भगृह के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर और उसके ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर है। यहां भगवान शिव माता पार्वती सहित नाग के फन के नीचे विराजमान हैं। यह मूर्ति नेपाल से लाई गई मानी जाती है और 7वीं शताब्दी की बताई जाती है। कहा जाता है कि इस स्वरूप में भगवान शिव की मूर्ति पूरे विश्व में कहीं और नहीं है।

यहां भगवान शिव के साथ माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी, सिंह, सूर्य और चंद्रमा की भी सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं। मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजन करने से कालसर्प दोष सहित अन्य सर्पदोष भी समाप्त हो जाते हैं।
पौराणिक कथा
कहा जाता है कि सर्पों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने तक्षक को अमरता का वरदान दिया। परंतु तक्षक ने वरदान मिलने के बावजूद भगवान से एक और वर मांगा कि वे सदैव उनके सान्निध्य में रहना चाहते हैं। इस पर शिव ने उन्हें महाकाल वन में निवास की अनुमति दी, साथ ही वचन दिया कि उनके निवास में किसी प्रकार का विघ्न न आए। इसी कारण यह मंदिर केवल नाग पंचमी के दिन एक दिन के लिए खुलता है।
महा निर्वाणी अखाड़ा के संत और साधु इस दिन विशेष पूजा करते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में सर्प दोष या कालसर्प दोष हो, तो इस दिन नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन और पूजा से मुक्ति मिलती है।






