धर्म संवाद / डेस्क : भारत विविधताओं का देश है, और यहां की धार्मिक आस्थाएं और परंपराएं भी उतनी ही विविध और अद्भुत हैं। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा देखने को मिलती है झारखंड के सरायकेला जिले के गम्हरिया प्रखंड में स्थित घोड़ा बाबा मंदिर में। यह मंदिर अपने अनूठे विश्वास और रीति-रिवाजों के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
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घोड़ा बाबा मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु असली नहीं, बल्कि मिट्टी का घोड़ा चढ़ाते हैं। इस परंपरा की जड़ें 300 वर्षों पुरानी मानी जाती हैं। भक्तों का विश्वास है कि घोड़ा बाबा उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी करते हैं। जब मुरादें पूरी हो जाती हैं, तो लोग श्रद्धा से मिट्टी के घोड़े या हाथी को मंदिर में चढ़ाकर कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
मकर संक्रांति पर विशेष आयोजन
मकर संक्रांति के दूसरे दिन यहां विशेष भीड़ उमड़ती है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं और घोड़ा बाबा की पूजा करते हैं। यह दिन यहां एक बड़े धार्मिक मेले का रूप ले लेता है, जहां भक्ति, श्रद्धा और सामाजिक समागम का सुंदर संगम देखने को मिलता है।
घोड़े की होती है पूजा
यह मंदिर इस मायने में भी अनोखा है कि यहां किसी परंपरागत हिंदू देवता की नहीं, बल्कि घोड़ा बाबा की पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण और बलराम एक बार घोड़े पर सवार होकर गम्हरिया गांव आए थे। बलराम ने यहां अपने हल से भूमि जोती थी और गांव को कृषि की दिशा दी थी। कहा जाता है कि उनके जाने के बाद घोड़े यहीं रह गए और तभी से यहां घोड़े की पूजा होने लगी।
प्रसाद के नियम भी हैं विशेष
इस मंदिर में प्रसाद के नियम भी आम मंदिरों से अलग हैं। भक्तों को यहां केले और नारियल का प्रसाद दिया जाता है, लेकिन इसे घर ले जाना वर्जित है। श्रद्धालु जितना प्रसाद खाना चाहें, उतना वहीं खा सकते हैं। जो नहीं खा पाएं, उसे एक विशेष स्थान पर रख देना होता है ताकि उस पर किसी का पैर न पड़े।
300 वर्षों पुरानी परंपरा
इस मंदिर में घोड़े की पूजा की परंपरा लगभग 300 साल पुरानी मानी जाती है। जनश्रुति के अनुसार, भगवान कृष्ण और बलराम एक बार घोड़े पर सवार होकर खेती के लिए इस ग्राम में आए थे। बलराम ने अपने हल से गम्हरिया की धरती पर खेती की नींव रखी थी। उनके जाने के बाद उनके घोड़े यहीं रह गए और तभी से गम्हरिया में घोड़ा बाबा की पूजा आरंभ हुई।
महिलाओं का प्रवेश था वर्जित
पूर्व में इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था, हालांकि समय के साथ इसमें कुछ परिवर्तन हुए हैं। समय के साथ इस अद्भुत परंपरा ने भक्तों के बीच विशेष स्थान बना लिया है। श्रद्धा और विश्वास के साथ लोग आज भी मिट्टी के घोड़े चढ़ाकर अपनी मन्नतें पूरी होने की कामना करते हैं।
आस्था और परंपरा का संगम
घोड़ा बाबा मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह झारखंड की सांस्कृतिक विरासत और लोक आस्था का प्रतीक भी है। मिट्टी के घोड़े चढ़ाने की परंपरा, देवताओं की नहीं बल्कि उनके प्रतीकों की पूजा, और प्रसाद के अनोखे नियम इसे विशिष्ट बनाते हैं। यह मंदिर हमें यह भी सिखाता है कि श्रद्धा का स्वरूप किसी भी रूप में हो सकता है — वह केवल मूर्तियों, मंत्रों या मंदिरों तक सीमित नहीं होती। कभी-कभी एक साधारण मिट्टी का घोड़ा भी आस्था का सबसे मजबूत प्रतीक बन सकता है।