धर्म संवाद / डेस्क : भगवान श्री कृष्ण के कई नाम है। इनमें से एक लड्डू गोपाल भी है। यह रूप श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का है। लड्डू गोपाल के रूप में कान्हा जी घुटनों के बल चलते हैं। उनके हाथ में लड्डू होता है। ज्यादातर लोगों के घर में श्री कृष्ण के इस रूप की पूजा की जाती है। चलिए जानते हैं आखिर यह नाम उन्हे मिला कैसे।
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ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त कुम्भनदास रहते थे। कुम्भनदास का एक पुत्र रघुनंदन था। कुम्भनदास हर वक्त कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और उनकी सेवा किया करते थे। एक दिन वृन्दावन से उनके लिए भागवत कथा करने का न्योता आया। उन्होंने कथा में जाने का मन बनाया और अपने बेटे रघुनंदन को भगवान की पूजा-पाठ की जिम्मेदारी सौंप दी।उन्होंने उसे समझा दिया कि किस तरह उनकी पूजा करनी है और किस तरह कान्हा जी को भोग लगाना है। उसे समझा कर वे कथा में चले गए।
रघुनंदन ने पिता के कहे मुताबिक, पूरे विधि-विधान से श्रीकृष्ण की पूजा की और उनके सामने भोग की थाली रख दी। उसे लगता था कि भगवान हमारी तरह हाथों से भोजन करते होंगे। इसलिए उसने पहले इंतज़ार किया पर जहां उसने देखा कि भोजन वैसा ही रखा हुआ है तो उसने कान्हा जी को आवाज दी और कहा, ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ। उसने बार-बार आग्रह किया लेकिन भोजन तो वैसे का वैसे ही रखा रहा। रघुनन्दन को लगा कि शायद ठाकुर जी उससे नाराज हो गए है। उसे बहुत दुख हुआ फिर उसने रोते हुए ठाकुर जी से कहा, कृष्ण आओ और भोग लगाओ। उसकी करुण पुकार सुनकर कान्हा जी से रहा नहीं गया और उन्होंने एक बालक का रूप धारण किया और भोजन करने बैठ गए। रघुनन्दन बेहद खुश हुए। जब कुंभनदास ने घर आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगा तो उसने कह दिया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया। कुंभनदास को लगा बच्चे को भूख लगी होगी वही सारा भोजन खा गया होगा।
ऐसा हर रोज होने लगा और रोजाना भोग के बाद खाली साफ हो जाती थी। रघुनंदन भी अब श्रीकृष्ण की पूजा में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा था ।एक दिन वह रघुनंदन को पूजा करते हुए देखने के लिए दिवार के पीछे छिप गए। रघुनंदन रोज की तरह कान्हा जी की पूजा करने लगा और फिर उन्हें भोग की थाली परोसी। थाली परोसने के बाद रघुनन्दन ने कान्हा जी को पुकार और भोजन करने को कहा। जिसके बाद कान्हा जी बाल स्वरूप में प्रकट हो गए। कुम्भनदास चौंक गए और वह कान्हा जी के चरणों में आ गिरे। जिस समय कुम्भनदास उनके चरणों में गिरे हुए थे उस समय कान्हा जी के हाथ में लड्डू था और वह उसी रूप में वहां जड़ गए। तब से ही उनका नाम लड्डू गोपाल पड़ गया।