धर्म संवाद / डेस्क : हमारे हिन्दू मंदिरों में कई प्राचीन परंपराओं का पालन होता है। कई ऐसे मंदिर हैं जो आज भी रहस्यों से परिपूर्ण हैं। ऐसा ही एक मंदिर हैं कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर । यह मंदिर देवी काली को समर्पित है। इस मंदिर को 1855 में जान बाजार की रानी रासमणि द्वारा बनवाया गया था। मंदिर की मुख्य देवी भवतारिणी है, जो काली माता का ही एक रूप है। कहा जाता है कि यहां आत्महत्या करने वाले एक पुजारी की जान बचाने के लिए मां काली स्वयं प्रकट हुई थीं। इसके अलावा भी यहाँ भगवान कृष्ण की पूजा होती है। साथ ही श्रीकृष्ण की मूर्ति खंडित है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है।
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खंडित मूर्ति की पूजा करने के पीछे का रहस्य
भगवान श्रीकृष्ण की खंडित मूर्ति की पूजा करने के पीछे एक अनोखी कहानी है। एक समय मंदिर पूरी तरह बनकर तैयार हो गया था। जन्माष्टमी के अगले दिन राधा-गोविंद मंदिर में नंदोत्सव की खूब धूम रही। उस दौरान दोपहर में जब भगवान कृष्ण को भोग के बाद उनके शयनकक्ष में ले जाया जा रहा था, तभी मूर्ति जमीन पर गिर गई। जिससे प्रतिमा का पैर टूट गया। ये एक अमंगल था। हर कोई इस घटना को अशुभ बताने लगा। सभी को लगने लगा कि श्री कृष्ण हमसे नाराज हो गए। सभी भक्तों को लगा कि कोई अशुभ घटना घटने वाली है।
उसके बाद ब्राह्मणों की सभा बुलाई गई और उनसे विचार-विमर्श किया कि इस खंडित प्रतिमा का क्या किया जाए। प्रतिमा को जल में प्रवाहित कर इसके स्थान पर नई प्रतिमा को लाने का फैसला हुआ। परंतु रासमणी को ब्राह्मणों का यह सुझाव पसंद नहीं आया।
उसके बाद वह रामकृष्ण परमहंस के पास गईं जिनके प्रति उनकी गहरी श्रद्धा थी। रामकृष्ण ने कहा कि जब घर में कोई सदस्य विकलांग हो जाता है या फिर माता-पिता में से किसी एक को चोट लग जाती है, तो क्या उन्हें त्याग कर नया सदस्य लाया जाता है? नहीं, बल्कि हम उनकी सेवा करते हैं। तभी रासमणी को परमहंस का यह सुझाव बहुत पसंद आया और फिर उन्होंने निश्चय किया कि मंदिर में श्रीकृष्ण की इसी प्रतिमा की पूजा होगी। तब से ही उसी खंडित प्रतिमा की पूजा होती है।