धर्म संवाद / डेस्क : रक्षाबंधन, भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक एक पवित्र त्योहार है, जिसे हर साल सावन मास की पूर्णिमा को पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, इस वर्ष रक्षाबंधन 9 अगस्त 2025, शनिवार को उदया तिथि में मनाया जाएगा। इस दिन बहन अपने भाई की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करते हुए उसकी कलाई पर राखी बांधती है। पर आपने कभी सोचा है कि राखी हमेशा दाहिनी कलाई पर ही क्यों बांधी जाती है? चलिए जानते हैं इसके पीछे के धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण।
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दाहिना हाथ: शुभता और शक्ति का प्रतीक
हिंदू धर्म में दाहिने हाथ को शुभ और पवित्र माना गया है। किसी भी पूजा-पाठ, हवन या धार्मिक अनुष्ठान में दाहिने हाथ का ही प्रयोग किया जाता है। जब कोई पंडित पूजा करवाता है, तो वह आहुतियाँ या संकल्प भी दाहिने हाथ से ही दिलवाता है। दाहिना हाथ दक्षता, कर्म और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इसलिए जब बहन रक्षा-सूत्र बांधती है, तो वह भाई के कर्म-हाथ पर बांधती है, जिससे वह जीवन में अच्छे कार्य करे और सदैव शक्ति प्राप्त करे।
पिंगला नाड़ी और ऊर्जा का जागरण
- योग और आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में तीन प्रमुख नाड़ियाँ होती हैं — इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना।
- पिंगला नाड़ी दाहिने हाथ से जुड़ी होती है और यह सूर्य ऊर्जा, यानी शक्ति, उत्साह और सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करती है।
- जब बहन दाहिने हाथ पर राखी बांधती है, तो यह नाड़ी सक्रिय होती है, जिससे भाई में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल का संचार होता है।
शास्त्रों के अनुसार, कोई भी संकल्प या रक्षा सूत्र दाहिने हाथ पर ही बांधा जाता है। राखी भी एक प्रकार का संकल्प है — बहन द्वारा भाई की रक्षा और दीर्घायु की कामना का संकल्प। इसके अलावा, भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण और विष्णु से जुड़े अनेक धार्मिक कार्यों में भी दाहिने हाथ का प्रयोग होता है। यही परंपरा आज भी राखी बांधते समय निभाई जाती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- दाहिना हाथ शरीर के अधिकांश हिस्सों को नियंत्रित करता है।
- यह हाथ मनुष्य को शक्ति और आत्मविश्वास का अनुभव कराता है।
- राखी को एक प्रकार का ऊर्जा कवच भी माना जाता है, जो रक्तचाप, तनाव, हृदय रोग और मधुमेह जैसी समस्याओं से भी रक्षा कर सकता है।
- इस प्रकार, राखी का दाहिने हाथ पर बंधना, न केवल धार्मिक रूप से उचित है, बल्कि इसका वैज्ञानिक और योगिक आधार भी है।
राखी बांधने की सही विधि
- एक थाली में रोली, चंदन, अक्षत (चावल), दीपक, राखी और मिठाई रखें।
- भद्र काल में राखी न बांधें; शुभ मुहूर्त का पालन करें।
- सबसे पहले भगवान की पूजा करें।
- भाई को उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठाएं।
- उसके माथे पर तिलक लगाएं और अक्षत चढ़ाएं।
- अब उसकी दाहिनी कलाई पर राखी बांधें।
- दीपक से आरती उतारें और मिठाई खिलाकर मुंह मीठा करें।
राखी बांधते समय पढ़ें यह मंत्र
ॐ येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि, रक्षे मा चल मा चल।।
मंत्र का अर्थ:
“जिस रक्षासूत्र से महाबली राजा बलि को बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधती हूँ। हे रक्षे! तुम स्थिर रहो, अचल रहो।” यह मंत्र पुराणों में वर्णित उस पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपने पति विष्णु को मुक्त कराया था। यह मंत्र सिर्फ भाई की रक्षा का प्रतीक नहीं, बल्कि बहन के प्रेम, आस्था और त्याग का भी द्योतक है
