धर्म संवाद / डेस्क : जब भी भजन – कीर्तन होता है लोग ताली अवश्य बजाते है। भजन सुनते साथ ही हमारे हाथों से अपने आप ही तालियाँ बजने लगती हैं। आइए जानते हैं कि आखिर कीर्तन में क्यों तालियां बजाते हैं और इसके क्या फायदे हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ताली बजाने की शुरुआत सर्वप्रथम भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद ने की थी। दरअसल, प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को उनकी विष्णु भक्ति कतई नहीं भाति थी। प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को उसकी विष्णु भक्ति अच्छी नहीं लगती थी। इसे रोकने के लिए हिरण्यकश्यप ने कई प्रयास किए लेकिन प्रहलाद पर इसका कोई असर नहीं हुआ। थक-हारकर हिरणयकश्यप ने प्रहलाद के सारे वाद्य यंत्र नष्ट कर दिए। तब बालक प्रहलाद ने भजनों को ताल देने के लिए हाथ से ताली बजाना शुरू कर दिया था। चूंकि दोनों हथेलियों को निरंतर पीटने से एक अलग ही ताल का निर्माण हुआ और वह ताल की धुन सभी तक पहुंचने लगी इसी कारण से उसे ताली कहा गया। बस इसी के बाद से हर भजन-कीर्तन में ताली बजाने की परंपरा शुरू हो गई।
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ऐसा माना जाता है कि भजन, कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से हम इश्वर को पुकारते हैं। भगवान के ऊपर समस्त सृष्टि का भार है इसी कारण से उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए ताली बजाई जाती है। भजन-कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से पापों का नाश होता है। आसपास विचरण कर रही नकारात्मकता दूर हो जाती है। भजन-कीर्तन या आरती के दौरान ताली बजाने से व्यक्ति की आत्मा चेतना में रहती है और उसका ध्यान भगवान की ओर लगा रहता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखे तो ताली बजाने से सेहत अच्छी रहती है। इससे दिल और फेफड़े संबंधित रोगों में लाभ मिलता है। इतना ही नहीं ताली बजाने से ब्लड प्रेशर भी सही रहता है। ताली बजाना एक तरह का योग भी माना जाता है। ऐसा करने से कई तरह के रोग दूर होते हैं।