धर्म संवाद / डेस्क : भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है बाबा अमरनाथ का ज्योतिर्लिंग। यह शिवलिंग बर्फ से बना है। इसीलिए इन्हें बाबा बर्फानी भी कहते हैं। बाबा बर्फानी का शिवलिंग श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर समुद्रतल से 13,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता हैं कि जो भक्त यहां आकर शिवलिंग के दर्शन कर लेता उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अमरनाथ गुफा यात्रा की खोज के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
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अमरनाथ हिन्दी के दो शब्द ‘अमर’ अर्थात ‘अनश्वर’ और ‘नाथ’ अर्थात ‘भगवान’ को जोडने से बनता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक़, इस पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने माता पार्वती को ‘अमरकथा’ सुनाई थी इसीलिए इस स्थान का नाम ‘अमरनाथ’ पड़ा। यह कथा भगवती पार्वती तथा भगवान शंकर के बीच हुआ संवाद है। अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कथा को न सुने इसीलिए भगवान शंकर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वतमालाओं में पहुंच गए और अमरनाथ गुफा में भगवती पार्वतीजी को अमरकथा सुनाने लगे।
जब भगवान शंकर इस अमृतज्ञान को सुना रहे थे तो वहां एक शुक (तोता) का बच्चा भी यह ज्ञान सुन रहा था। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब वे शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा। शुक जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा।भागते-भागते वह व्यासजी के आश्रम में आया और सूक्ष्म रूप बनाकर उनकी पत्नी वटिका के मुख में घुस गया। वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये 12 वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाए। गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का ज्ञान हो गया था। जन्मते ही श्रीकृष्ण और अपने माता-पिता को प्रणाम करके इन्होंने तपस्या के लिए जंगल की राह ली। यही जगत में शुकदेव मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
इस पवित्र गुफा की पुन: खोज के बारे में लोगों द्वारा सुनाई जाने वाली लोकप्रिय कहानी एक चरवाहे बूटा मलिक की है। कहानी इस प्रकार है: एक संत ने बूटा मलिक को कोयले से भरा थैला दिया। अपने घर पहुंचने पर जब उसने बैग खोला, तो उसे हैरानी हुई कि बैग सोने के सिक्कों से भरा था।इससे वह खुशी से झूम उठा। वह संत को धन्यवाद देने के लिए दौड़ा।
लेकिन संत गायब हो गए थे। इसके बजाय, उन्होंने वहां पवित्र गुफा और बर्फ शिव लिंगम पाया। इसके बाद यह तीर्थयात्रा का पवित्र स्थान बन गया। अमरनाथ बोर्ड बनने से पहले बूटा मलिक के वंशज ही अमरनाथ की यात्रा कराते थे।
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कहते यह भी हैं कि अमरनाथ गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन सबसे पहले महर्षि भृगु ने किए थे। कथा के अनुसार एक बार कश्मीर घटी पूरी तरह से पानी में डूब गई थी उस समय महर्षि कश्यप ने नदियों के द्वारा पानी को बाहर निकाला। उसी समय महर्षि भृगु हिमालय की यात्रा पर थे और वे उसी रास्ते से जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने तपस्या करने के लिए इस गुफा की खोज की। इस गुफा में उन्हें बाबा बर्फानी के दर्शन हुए।
अमरनाथ गुफा में गुफा में बर्फीले पानी की बूंदें लगातार टपकती रहती हैं, इन्हीं बूंदों से लगभग यहां बर्फ का शिवलिंग बन जाता है। ये शिवलिंग पूरी तरह प्राकृतिक रूप से ही बनता है। शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 12 से 18 फीट तक हो जाती है। कभी कभी यह 22 फीट तक होती है। यह एकमात्र शिवलिंग है, जिसका आकार चंद्रमा की रोशनी के आधार पर तय होता है। यह शिवलिंग सावन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरा हो जाता है और उसके बाद आने वाली अमावस्या तक आकार में काफी छोटा हो जाता है।
हर साल अमरनाथ यात्रा आयोहित की जाती है। शिव भक्त इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।