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12 ज्योतिर्लिंगों का महत्त्व| Importance of 12 Jyotirlinga

By Tami

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12 ज्योतिर्लिंग

धर्म संवाद / डेस्क : सनातन धर्म में भगवान शिव की उपासना का बहुत महत्त्व है। महादेव की पूजा – अर्चना शिवलिंग के माध्यम से की जाती है। साथ ही भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा करने का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव जहां-जहां स्वयं प्रकट हुए, उन्हीं 12 स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग कहते हैं। चलिए आपको 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में पूरी जानकारी देते हैं।

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग – सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पहला माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दे दिया था, तब चंद्रदेव इसी स्थान पर तपस्या करके श्राप से मुक्त हुए थे। इसी वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम चन्द्र देव के दुसरे नाम सोम पर पड़ा। मान्यता है कि शिव के इस पावन धाम पर पूजा करने से साधक के क्षय, कोढ़ आदि रोग दूर हो जाते हैं। यहां पर देवताओं द्वारा बनवाया गया एक पवित्र कुण्ड भी है, जिसे सोमकुण्ड या पापनाशक-तीर्थ कहते हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर ये ज्योतिर्लिंग स्थित है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। शिव भक्तों का मानना है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से ही साधक के सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्य प्रदेश उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहां दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग की उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान महाकाल के दर्शन करने से सभी प्रकार के भय, रोग एवं दोष से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। मान्यता है कि यहां पर शिव की साधना करने वाले साधक का काल भी कुछ नहीं कर पाता। यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। 

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में शिव का यह पावन धाम स्थित है। इंदौर शहर के पास जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ॐ का आकार बनता है। ओंकारेश्वर-ज्योतलिंग के दो स्वरूप हैं। एक को ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक ही में की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार विन्ध्यपर्वत ने पार्थिव-अर्चना के साथ भगवान्‌ शिव की छः मास तक कठिन उपासना की। उनकी इस उपासना से प्रसन्न होकर भूतभावन शंकरजी वहां प्रकट हुए। उन्होंने विन्ध्य को उनके मनोवांछित वर प्रदान किए। विन्ध्याचल की इस वर-प्राप्ति के अवसर पर वहां बहुत से ऋषिगण और मुनि भी पधारे। उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओंकारेश्वर नामक लिंग के दो भाग किए। एक का नाम ओंकारेश्वर और दूसरे का अमलेश्वर पड़ा।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग – केदारनाथ मन्दिर उत्तरी भारत में पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है, जो समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। इस  स्थान का संबंध महाभारत काल से भी जुड़ता है।  मान्यता है कि कैलाश की तरह भगवान शिव ने केदारनाथ को अत्यधिक महत्व दिया है। 

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। मान्यता है कि भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध करने के बाद उसी स्थान पर विश्राम किया था। जिस सह्याद्रि पर्वत पर भगवान भीमशंकर विराजमान हैं, उसी से भीमा नदी निकल कर प्रवाहित होती है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने भीम नामक दैत्य का वध किया था। मान्यता है कि इस स्थान पर दर्शन मात्र से ही साधकों भय योग एवं दोष से मुक्ति मिल जाती है।

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सातवें स्थान पर काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग हैं। यहां भगवान शिव के दर्शन के लिए स्वर्ग लोक से देवी देवता स्वयं पृथ्वी लोक पर आते हैं। माना जाता है कि जिस व्यक्ति की यहां मृत्यु होती है उसे निश्चित रूप से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता ये भी है  कि प्रलय के समय भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं। यह ज्योतिर्लिंग को विश्वेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इस शब्द का अर्थ होता है ‘ब्रह्माड का शासक’।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग- यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है।यह ज्योतिर्लिंग के निकट ब्रह्मगिरिनाम का पर्वत है। ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी उद्गम स्थान है। उत्तर भारत में पापनाशिनी गंगा नदी के बराबर ही दक्षिण में गोदावरी नदी का माना जाता है, जिस तरह गंगा अवतरण का श्रेय महातपस्वी भागीरथ जी को है, वैसे ही गोदावरी का प्रवाह ऋषिश्रेष्ठ गौतम जी की महान तपस्या का फल है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग – वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। मान्यता है कि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को रावण द्वारा स्थापित किया गया था। इस स्थान पर पूजा-पाठ करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। श्रावण मास में लाखों की संख्या में कांवड़िए जल चढ़ाने आते हैं। पुराणों में शिव के इस पावन धाम को चिताभूमि कहा गया है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग- गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के करीब स्थित है शिव साधकों का अत्यंत पूजनीय नागेश्वर ज्योतिर्लिंग। नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर और पुराणों में भगवान शिव को नागों का देवता बताया गया है। द्वारका पुरी से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 17 मील की है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग

रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग- भगवान शिव का यह ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथम् नामक स्थान में स्थित है। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक शिव का पावन धाम होने के साथ-साथ यह हिंदुओं के चार प्रमुख धामों में से एक स्थान है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान श्री राम द्वारा स्थापित किए जाने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम् दिया गया है। माना जाता है कि यहां स्थित शिवलिंग के दर्शन मात्र से तमाम रोगों से मुक्ति मिल जाती है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग


घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग- भगवान शिव का अंतिम ज्योतिर्लिंग अर्थात घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के वेरुल नामक गांव में स्थित है। शिव पुराण में भी भगवान शिव के इस अंतिम ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है। यहां भगवान शिव के दर्शन और पूजा-पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस स्थान को ‘शिवालय’ भी कहा जाता है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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