शकुनी मामा की अनसुनी कहानी, जाने उनके पासों का राज़

By Admin

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सोशल संवाद / डेस्क : महाभारत का युद्ध अनेक कारणों से लड़ा गया । कुछ लोग द्रौपदी को महाभारत का कारण बताते हैं। कुछ श्री कृष्ण को ,कुछ दुर्योधन को और कुछ मामा शकुनी को। इन सबमे से मामा शकुनी को उन पात्रों में सबसे प्रमुख माना जाता है जिन्होंने इस महायुद्ध को अंजाम दिया। उन्ही के कारण पांडव हारे थे और द्रौपदी का चीरहरण हुआ था। शकुनी के बारे में लोग यही जानते है की वे कौरवों के मामा थे और दुर्योधन के कान भरा करते थे उनकी पूरी जानकारी अधिकतर लोगों के पास नहीं है। शकुनी आखिर ये सब करता क्यूँ था । चलिए मामा शकुनी की अनसुनी कहानी हम आपको बताते है।

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शकुनी असल में गंधार के राजा थे। इसिलए माता कुंती उन्हें गांधार नरेश कह कर पुकारती थी। गांधार को आज के समय का कांधार माना जाता है जो की अफ़ग़ानिस्तान में है। भले ही शकुनि गांधार साम्राज्य का राजा था, लेकिन उसके जीवन का अधिकांश समय अपनी बहन के ससुराल में बीता था। शकुनि के बारे में कहा जाता है कि वह कभी भी जुए में नहीं हारा। उसकी जीत का रहस्य उसके पासों में छिपा था।

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उन पासों की भी अपनी कहानी है। माना जाता है कि भीष्म पितामा धृतराष्ट्र  का विवाह करवाना चाहते थे । और तब उन्हें गंधार नरेश के बारे मे  पता चला । वे स्वयं गंधार नरेश के पास पहुंचे और उनकी पुत्री गांधारी का हाथ कुरु वंश के राजा धृतराष्ट्र  के लिए माँगा । धृतराष्ट्र अंधे थे और यही वजह से उनके विवाह में अडचने आ रही थी। गांधार नरेश भी नहीं चाहते थे कि उनकी एकमात्र पुत्री का विवाह एक अंधे व्यक्ति के साथ हो पर गांधार एक छोटा राज्य था और हस्तिनापुर एक विराट साम्राज्य । ऊपर से स्वयं भीष्म पितामा रिश्ता ले आय थे इस वजह से वे ठुकरा नहीं पाय । और ना चाहते हुए भी गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करवाया गया । और क्यूंकि धृतराष्ट्र  को दिखाई नहीं देता था इसलिए गांधारी ने भी अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली और और अपने पति के साथ दुनिया ना देखने का प्रण लिया । शकुनी ने ये सब देखा और अपनी बहन के साथ हुए अन्याय का बदला न लेने की विवशता उसे अपने अन्दर ही दबानी पड़ी।

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विवाह के बाद ,धृतराष्ट्र को पता चला की गांधारी असल में मांगलिक थी जिसका विवाह धृतराष्ट्र से करवाने से पहले एक बकरे से करवाया गया था और उसकी बलि दी गयी थी। ये बात छुपा कर गांधारी का विवाह करवाया गया था। जब धृतराष्ट्र को पता चला वो इतना नाराज़ हुए की  कि उन्होंने गांधार राज्य पर हमला करवा दिया और शकुनि के पूरे परिवार को बंदीगृह में डाल दिया गया।  ये भी कहा जाता है कि हमला नहीं किया पर गांधारी के सारे सगे सम्बंदियो को न्योता भेज का हस्तिनापुर बुलवाया गया और फिर कारागार में डाला गया ।वहाँ कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक मुट्ठी  चावल दिया जाता था।  केवल एक मुट्ठी  चावल से भला सभी का पेट कैसे भरता? सभी को बस एक दाना मिलता था। यानि वजह साफ़ थी कि वो लोग चाहते थे कि पूरा परिवार भूखा मर जाय ।

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इसके बाद गांधार के राजा सुबाल और बाकी सबने ये निर्णय लिया कि हम सब में से सबसे बुद्धिमान  और चतुर शकुनि को बचाने का फैसला किया ताकि वो जीवित रह कर धृतराष्ट्र से बदला ले सके ।हर दिन वो एक मुट्ठी चावल शकुनी खाते और अपने भाइयो और परिवार जनों को भूख के मारे मरते देखते । एक एक कर के शकुनी ने अपनी आंखों के सामने अपने परिवार, अपने वंश का अंत होते देखा। अंत में बस राजा सुबल और शकुनी जीवित रहे। फिर जब राजा सुबल  को अपना अंत निकट दिखा तो उन्होंने शकुनी को अपने पास बुलाया और अपनी पूरी ताकत लगाकर शकुनी के घुटने पर लात मारी जिससे शकुनी का घुटना टूट गया । शकुनी हैरान था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि इतने कष्ट झेल के जिस पुत्र को जीवित रखा उसे चोट क्यूँ पहुचाया उनके पिता ने। तब उनके पिता ने कहा की तुम इतने अय्याश हो की यहाँ से बहार निकल कर तुम भूल जाओगे कि तम्हारा मकसद क्या है, इसलिए मैंने तुम्हारा घुटना तोड़ के तुम्हे लंगड़ा बना दिया ताकि तुम्हे अपना बदला याद रहे।

और फिर उन्होंने शकुनी से कहा कि मेरा अंतिम संस्कार करने से पहले मेरे घुटनों की हड्डी निकाल  लो और इनके पासे बनाओ। ये पासे तुम्हारा हर कहा मानेंगे । तुम जो अंक चाहोगे वही तुम्हे देंगे और मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारा सहारा बनेंगे । कोई तुमको हरा नहीं सकेगा। साथ ही इन्हीं पासों से धृतराष्ट्र के वंश का अंत हो जाएगा। राजा सुबल के मरने के बाद उनकी कुछ हड्डियां शकुनि ने बचाकर रख ली थी और फिर उनसे पासे बनवाए थे। हड्डियों के बने पासों से चौसर खेलने की वजह से पांडव सब कुछ हार गए, द्रोपदी का चीर हरण हुआ और अंत में महाभारत का महायुद्ध हुआ।

शकुनी अच्छे से जानते थे कि धर्म क्या है, सही क्या है और गलत क्या है।वे जानते थे कृष्ण कौन हैं। और सत्य के है पर उन्होंने कौरव और कुरु वंश का नाश करने की प्रतिज्ञा की थी , अपने पिता को वचन दिया था । अपने पुरे खानदान का ऋण था उसपे जिनके भाग्य के उसने चावल खाय थे ।यही कारण है कि महाभारत के सबसे प्रमुख रचयिता होने के बावजूद उन्हें स्वर्ग मिला।

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