सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के पीछे की पौराणिक कथा

By Tami

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चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण

धर्म संवाद / डेस्क : चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है जिसका धार्मिक महत्त्व भी है। खगोलविज्ञान के अनुसार जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आती है तो चंद्र ग्रहण लगता है। वहीं सूर्य ग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है। इस कारण सूर्य का पूरा या कुछ हिस्सा प्रकाश को अवरुद्ध करता है।

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पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जो 14 रत्न निकले उनमे से एक अमृत कलश भी था।इसके लिए देवताओं और दानवों में विवाद होने लगा। इसको सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने अपने हाथ में अमृत कलश देवताओं और दानवों में समान भाग में बांटने का विचार रखा। तब भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग बैठा दिया। उसके बाद मोहिनी ने सभी देवताओं को अमृत पान करवाना शुरू कर दिया।

उस वक़्त स्वर्भानु नामक राक्षस को लगा कि उनके साथ कुछ छल हो रहा है तो वह चुपचाप देवताओं की पंक्ति में सूर्य और चंद्रमा के पास जा कर बैठ गया। जैसे ही उसे अमृत पान करने को मिला, वैसे ही सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और यह बात उन्होंने भगवान विष्णु को बताई, जिस पर क्रोधित होकर नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस के गले पर वार किया, लेकिन तब तक राहु अमृत पी चुका था। इस वजह से उसकी मृत्यु तो नहीं हुई, परन्तु उसके शरीर के दो टुकड़े जरूर हो गए। इसके बाद ब्रह्मा जी ने स्वर्भानु के सिर को एक सर्प वाले शरीर से जोड़ दिया। यह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के दूसरे सिरे के साथ जोड़ दिया, जो केतु कहलाया। 

कथाओं के अनुसार सूर्य और चंद्र देवता द्वारा स्वर्भानु की पोल खोले जाने के कारण राहु इन दोनों देवों के दुश्मन हो गए। इसी कारण ये राहु और केतु सूर्य और चन्द्र को ग्रास करते रहते हैं जिस वजह से सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होता है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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