धर्म संवाद / डेस्क : भारत की प्राचीन विरासत में कई वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं, लेकिन कैलाश मंदिर एलोरा अपनी अनूठी निर्माण शैली और रहस्य के कारण अलग पहचान रखता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित एलोरा गुफाओं की गुफा संख्या 16 में यह मंदिर बना हुआ है। इसे लगभग 1200 साल पहले एक ही विशाल चट्टान को ऊपर से नीचे तराशकर तैयार किया गया था। इसकी ऊँचाई लगभग 100 फीट, लंबाई 300 फीट और चौड़ाई 175 फीट है। इसे प्राचीन भारतीय वास्तुकला का अनुपम उदाहरण माना जाता है।
निर्माण का अनूठा तरीका
कैलाश मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे ऊपर से नीचे की ओर तराशकर बनाया गया। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का सीमेंट, सरिया या अलग से पत्थरों को जोड़ने का काम नहीं हुआ। यह पूरी संरचना केवल नक्काशी के जरिए एक ही चट्टान को काटकर तैयार की गई। इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार इस मंदिर के निर्माण में लगभग 18 वर्ष लगे और करीब दो लाख टन चट्टान हटाई गई। लेकिन आज तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला कि इतनी बड़ी मात्रा में निकला हुआ मलबा कहां गया। मंदिर के आसपास मलबे का कोई निशान नहीं मिलता, जो इस स्थान को और भी रहस्यमयी बनाता है।
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इतिहास: राष्ट्रकूट वंश का गौरव

पुरातत्वविदों के अनुसार कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के महान राजा कृष्ण प्रथम (756–773 ईस्वी) ने करवाया था। कुछ लोककथाओं में इसका श्रेय अन्य शासकों को भी दिया जाता है, लेकिन ऐतिहासिक शिलालेख इसे राष्ट्रकूटों से जोड़ते हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, राजा की रानी ने भगवान शिव से यह व्रत लिया था कि वह तब तक भोजन नहीं करेंगी जब तक मंदिर का शिखर बन न जाए। इस कारण शिल्पकारों ने मंदिर का निर्माण ऊपर से नीचे की ओर शुरू किया ताकि शिखर सबसे पहले तैयार हो सके और रानी अपना व्रत तोड़ सकें।
एलोरा गुफाओं का धार्मिक महत्व
एलोरा में कुल 100 से अधिक गुफाएं हैं, जिनमें से केवल 34 गुफाएं जनता के लिए खुली हैं। ये गुफाएं तीन प्रमुख धर्मों से जुड़ी हैं:

- गुफा संख्या 1 से 12 बौद्ध धर्म
- गुफा संख्या 13 से 29 हिंदू धर्म
- गुफा संख्या 30 से 34 जैन धर्म
कैलाश मंदिर (गुफा संख्या 16) इन गुफाओं का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भगवान शिव के पवित्र निवास कैलाश पर्वत का प्रतीक है।

अद्भुत शिल्पकला और कलाकृतियां
कैलाश मंदिर न केवल आकार में विशाल है, बल्कि इसमें की गई बारीक नक्काशी भी अचंभित कर देने वाली है। मंदिर के आंगन में कमल के फूल पर बैठी गजलक्ष्मी की प्रतिमा, हाथियों की मूर्तियां और अनेक शैव-वैष्णव परंपरा से जुड़ी कलाकृतियां देखने को मिलती हैं।

मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत के कई दृश्य उकेरे गए हैं, जैसे:

- रावण द्वारा कैलाश पर्वत को हिलाना
- रावण का देवी सीता का अपहरण
- भगवान राम का हनुमान से मिलना
- गर्भगृह के ऊपर आठ कोणों वाला विशाल शिखर बना है, जो भगवान शिव के पवित्र कैलाश पर्वत का प्रतीक है।

रहस्य और सिद्धांत
इतना विशाल और सटीक निर्माण बिना आधुनिक तकनीक के कैसे संभव हुआ? यह प्रश्न आज भी विद्वानों को उलझन में डालता है।
कुछ शोधकर्ताओं और प्राचीन एलियन सिद्धांत के मानने वालों का मानना है कि यह संरचना मानव हाथों से बनाना असंभव था और इसमें उन्नत तकनीक या परग्रही सभ्यता की मदद रही होगी। हालांकि, इन दावों के समर्थन में कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इतिहासकार मानते हैं कि यह राष्ट्रकूट राजाओं, कुशल शिल्पकारों और उस समय की उच्च स्तरीय इंजीनियरिंग का परिणाम है।

कैलाश मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय शिल्पकला, स्थापत्य कौशल और मानव परिश्रम का अनुपम प्रतीक है। आज भी यह मंदिर दुनिया को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या इतनी अद्भुत कृति को आधुनिक उपकरणों के बिना दोहराया जा सकता है? शायद नहीं। यही कारण है कि कैलाश मंदिर को देखने वाला हर व्यक्ति इसकी भव्यता और रहस्य से मंत्रमुग्ध हो जाता है।






