धर्म संवाद / डेस्क : यह एक प्रसिद्ध राजस्थानी लोकगीत है जो झुंझुनू की सेठाणी की वीरता और दृढ़ता को दर्शाता है। यह गीत राजस्थान की संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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झुंझुनू की सेठाणी,
म्हानै याद करै,
मेहंदी नथली,
चुड़ो चुनड़ी,
आंख्या आगै फिरै,
झुंझुणु की सेठाणी,
म्हानै याद करै।।
हिचकी आवै आंख फरुकै,
कान में गूंजै शोर,
दौड़यो भाग्यो आज्या रे बेटा,
तू झुंझुणु की ओर,
मावड़ी है खड़ी,
तो तू क्यां नै डरै,
झुंझुणु की सेठाणी,
म्हानै याद करै।।
नेम धरम जपतप ना जाणूं,
ना कोई ज्ञान की बात,
फेर भी तू मनै दरपे बुलावै,
कितणी बड़ी है बात,
रिश्तो यो आपणो,
माँ निभायां सरै,
झुंझुणु की सेठाणी,
म्हानै याद करै।।
‘अम्बरीष’ की और भगतां की,
गळत्यां दीजै बिसराय,
यूं ही मान बढ़ाती रहिजै,
अपणे दरपे बुलाय,
तू ही तो म्हारो घर,
खुशियां से भरै,
झुंझुणु की सेठाणी,
म्हानै याद करै।।
झुंझुनू की सेठाणी,
म्हानै याद करै,
मेहंदी नथली,
चुड़ो चुनड़ी,
आंख्या आगै फिरै,
झुंझुणु की सेठाणी,
म्हानै याद करै।।