भारत के महान संत | Important Saints of India

By Tami

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भारत के महान संत

धर्म संवाद / डेस्क : भारत सिर्फ देवी-देवताओं का देश नहीं है संत – महात्माओं का भी देश है। कई संत महात्माओं ने यहाँ समय-समय पर जन्म लिया और हम सबका मार्ग – दर्शन किया। इन संतों ने गुरु बनकर अपने चमत्कारों से हमें देवत्व का अनुभव करवाया साथ ही हमें अपने सत्य और दायित्व का स्मरण भी करवाया। चलिए जानते हैं इस मिटटी में जन्मे कुछ महान संतों के बारे में।

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संत एकनाथ- संत एकनाथ भारत के एक बहुत महान संत थे। इनका जन्म पैठण में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सूर्यनारायण तथा माता का नाम रुक्मिणी था। उन्होंने अपने गुरु से ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव, श्रीमद्भागवत आदि ग्रंथों का अध्ययन किया।संत एकनाथ को उनकी आध्यात्मिक शक्ति के साथ-साथ लोगों को जागृत करने और धर्म की रक्षा करने के लिए जाना जाता था। उन्होंने कई भजन और अध्यात्मिक पुस्तके लिखी हैं, जिनमें एकनाथी भागवत, भगवद गीता का आध्यात्मिक सार और उनकी महान रचना भावार्थ रामायण शामिल हैं।

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कहते हैं एक बार एकनाथ जी को मानने वाले एक सन्यासी को रास्ते में एक मरा हुआ गधा मिलता है, जिसे देखकर वह उसे दण्डवत् प्रणाम करते हैं और कहते हैं ‘तू परमात्मा है। उनके इतना कहने से वह गधा जीवित हो जाता है।

इस घटना की खबर जब लोगों में फैलती है, तो वह उस संत को चमत्कारी समझकर परेशान करने लगते हैं। ऐसे में सन्यासी संत एक नाथ जी के पास पहुंचता है और सारी बात बताता है। इस पर संत एकनाथ उत्तर देते हुए कहते हैं, जब आप परमात्मा में लीन हो जाते है तब ऐसा ही कुछ होता है।माना जाता है कि इस चमत्कार के पीछे संत एकनाथ ही थे।

संत तुकाराम- तुकाराम महाराष्ट्र के महान संत और कवि थे। उनका जन्म 17वीं सदी में पुणे के देहू कस्बे में हुआ था। उनके पिता छोटे-से काराबोरी थे। वे ‘भक्ति आंदोलन’ के एक प्रमुख स्तंभ थे। उन्हें ‘तुकोबा’ भी कहा जाता है। वे विट्ठल यानी विष्णु के परम भक्त थे। 

 भगवान की भक्ति में लीन रहने वाले संत तुकाराम का जीवन कठिनाइयों भरा रहा. माना जाता है कि उच्च वर्ग के लोगों ने हमेशा उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की। एक बार एक ब्राहाण ने उनको उनकी सभी पोथियों को नदी में बहाने के लिए कहा तो उन्होंने बिना सोचे सारी पोथियां नदी में डाल दी थी। बाद में उन्हें अपनी इस करनी पर पश्चाताप हुआ तो वह विट्ठल मंदिर के पास जाकर रोने लगे।

वह लगातार तेरह दिन बिना कुछ खाये पिये वहीं पड़े रहे।उनके इस तप को देखकर चौदहवें दिन भगवान को खुद प्रकट होना पड़ा। भगवान ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए उनकी पोथियां उन्हें सौपी।

संत तुकाराम का कहना था कि दुनिया में कोई भी दिखावटी चीज नहीं टिकती। झूठ लंबे समय तक संभाला नहीं जा सकता। झूठ से सख्त परहेज रखने वाले तुकाराम को संत नामदेव का रूप माना गया है। इनका समय सत्रहवीं सदी के पूर्वार्द्ध का रहा। 

संत ज्ञानेश्वर– संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पैठण के पास आपेगांव में हुआ था। उनके पिता का नाम विट्ठल पंत एवं माता रुक्मिणी बाई थीं। संत ज्ञानेश्वर ने 15 वर्ष की छोटी सी आयु में ही गीता की मराठी में ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य की रचना कर दी थी। उन्होंने अपने जीवन काल में अयोध्या, वृंदावन, द्वारका, पंढरपुर उज्जयिनी, प्रयाग, काशी, गया आदि कई तीर्थस्थानों की यात्रा की। ‘अमृतानुभव’, ‘चांगदेवपासष्टी’, ‘योगवसिष्ठ टीका’ आदि संत ज्ञानेश्वर के रचित कुछ अन्य ग्रंथ हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि उनका इस धरती पर जन्म लेना किसी चमत्कार से कम नहीं था।

समर्थ स्वामी- इनका जन्म गोदातट के निकट जालना जिले के ग्राम जांब में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि वह श्रीपाद वल्लभ और श्रीनृसिंहसरस्वती के बाद भगवान श्रीदत्तात्रेय के तीसरे पूर्णावतार अवतार हैं। गाणगापुर के श्री नरसिंह सरस्वती बाद में श्रीस्वामी समर्थ के रूप में प्रकट हुए। स्वामी के मुख से उद्घोष, “मैं नरसिंह हूं और श्रीशैलम के पास मैला जंगल से आया था” बताता है कि वह नरसिंह सरस्वती के अवतार हैं।  स्वामी समर्थ ने विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के लोगों की मदद की और उन्हें उच्चतर आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया। उन्होंने अपने अनुयायों को साधना, ध्यान और भक्ति की प्राकृतिक विधियों पर ध्यान केंद्रित करने का उपदेश दिया।

स्वामी समर्थ एक ऐसे गुरु थे जिन्होंने अपने शिष्यों की श्रद्धा और विश्वास को महत्व दिया और उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके शिष्यों में एक अहम् गुण था – सबकी सेवा करने की अद्भुत भावना। वे लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।

समर्थ स्वामी के बारे में कहा जाता है कि एक शव यात्रा के दौरान जब एक विधवा रोती-रोती उनके चरणो में गिर गई थी, तो उन्होंंने ध्यान मग्न होने के कारण उसे पुत्रवती भव का आशीर्वाद दे दिया था। इतना सुनकर विधवा और फूट-फूट कर रोने लगी।

रोते हुए वह बोली- मैं विधवा हो गई हूं और मेरे पति की अर्थी जा रही है। स्वामी इस पर कुछ नहीं बोले और कुछ देर बाद जैसे ही उसके पति की लाश को आगे लाया गया, उसमें जान आ गई। यह देख सबकी आंखे खुली की खुली रह गई। सभी इसे समर्थ स्वामी का चमत्कार बता रहे थे।

स्वामी समर्थ की आध्यात्मिकता, उपदेश और करिश्मा आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। उनके प्रशंसक उन्हें अपने जीवन में एक मार्गदर्शक और आधार स्तंभ के रूप में मानते हैं।

देवरहा बाबा- देवरहा बाबा उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध संत थे।कहा जाता है कि हिमालय में कई वर्षों तक वे अज्ञात रूप में रहकर साधना किया करते थे। हिमालय से आने के बाद वे उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल कर धर्म-कर्म करने लगे, जिस कारण उनका नाम देवरहा बाबा पड़ गया। उनका जन्म अज्ञात माना जाता है। 

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बाबा को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने सैंकड़ों वर्ष जीवित रहने का रिकॉर्ड बनाया है और उन्हें कई तरह की सिद्धियां भी प्राप्त थी। वे इंसानों के साथ–साथ जानवरों के मन भी पढ़ लेते थे। बाबा देवरहा को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने 900 वर्ष से भी अधिक जीने का रिकॉर्ड बनाया था। कुछ को कहना है कि बाबा 250 वर्ष जिए तो कुछ का मानना है कि बाबा की उम्र 500 वर्ष थी। बाबा की मृत्यु कितने वर्ष में हुई उसको लेकर भी असमंसज है।

देवरहा बाबा के दर्शन के लिए जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, जैसे नामचीन लोग शामिल हैं।

रामकृष्ण परमहंस- श्री राम कृष्ण परमहंस को स्वामी विवेकानंद का गुरु माना जाता है। उनका नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। उनका  जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के कामारपुकुर गांव में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बताया जाता है कि पिता खुदीराम और मां चंद्रमणि देवी को अपनी चौथी संतान के जन्म से पहले ईश्वरीय अनुभव हुआ था। पिता को सपना आया था कि भगवान गदाधर (भगवान विष्णु) उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। इसके बाद एक दिन मां चंद्रमणि देवी को एक शिव मंदिर में पूजा करने के दौरान उनके गर्भ में एक दिव्य प्रकाश के प्रवेश करने का अनुभव हुआ।

बताया जाता है कि रामकृष्ण को छह-सात वर्ष की उम्र पहली बार आध्यात्मिक अनुभव हुआ था। इश्वर को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठिन साधना और भक्ति का जीवन बिताया था। जिसके फलस्वररूप माता काली ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिया था।  नौ वर्ष की उम्र में उनका जनेऊ संस्कार कराया गया। इसके बाद वह पूजा-पाठ करने और कराने के लिए योग्य हो गए थे। रानी रासमणि द्वारा बनाए गए दक्षिणेश्वर काली मंदिर में वे पुजारी बन गए।1856 में रामकृष्ण को इस मंदिर का मुख्य पुरोहित नियुक्त कर दिया गया। उनका मन पूरी तरह से माता काली की साधना में रमने लगा।

1859 में करीब 5-6 वर्ष की शारदामणि मुखोपाध्याय से 23 वर्षीय रामकृष्ण की शादी करा दी गई। शारदामणि को भी भारत में माता का दर्जा प्राप्त है क्योंकि उन्होंने भी बाद में आध्यात्म का रास्ता चुना था और पति के संन्यासी हो जाने पर उन्होंने संन्यासिनी का जीवन व्यतीत किया था। उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म का भी अध्ययन किया था। उन्होंने सभी धर्मो के एक होने की बात भी बताई थी।

गुरु नानक देव- गुरु नानक देव सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं। उनका जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन 1469 को राएभोए के तलवंडी नामक स्थान में, कल्याणचंद (मेहता कालू) नाम के एक किसान के घर में हुआ। उनके अनुयायी इन्हें गुरुनानक, बाबा नानक और नानक शाह के नामों से बुलाते हैं। कहा जाता है कि बचपन से ही वे विचित्र थे। नेत्र बंद करके आत्म चिंतन में मग्न हो जाते थे।

एक बार गुरु नानक देव जी मक्का गए थे। काफी थक जाने के बाद वह मक्का में मुस्लिमों का प्रसिद्ध पूज्य स्थान काबा में रुक गए। रात को सोते समय उनका पैर काबा के तरफ था।

यह देख वहां का एक मौलवी गुरु नानक के ऊपर गुस्सा हो गया। उसने उनके पैर को घसीट कर दूसरी तरफ कर दिये। इसके बाद जो हुआ वह हैरान कर देने वाला था। हुआ यह था कि अब जिस तरफ गुरु नानक के पैर होते, काबा उसी तरफ नजर आने लगता। इसे चमत्कार माना गया और लोग गुरु नानक जी के चरणों पर गिर पड़े।

शिरडी साईं बाबा- साईं बाबा कौन थे और उनका जन्म कहां हुआ था यह प्रश्न ऐसे हैं जिनका जवाब किसी के पास नहीं है। साईं ने कभी इन बातों का जिक्र नहीं किया। इनके माता-पिता कौन थे इसकी भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। बस एक बार अपने एक भक्त के पूछने पर साईं ने कहा था कि, उनका जन्म 28 सितंबर 1836 को हुआ था।  साईं बाबा ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा एक पुराने मस्जिद में बिताया जिसे वह द्वारका माई कहा करते थे।

16 वर्ष की आयु में बाबा पहली बार महाराष्ट्र के शिरडी गांव आये। लोगों को उसे देखकर बेहद आश्चर्य होता था।वे बहुत ही कम उम्र में नीम के पेड़ के नीचे आसन पर बैठकर कई दिनों तक गहन ध्यान में लीं रहते थे। इससे लोगों के विच उत्सुकता उत्सुकता बढ़ गई। गाँव के मुखिया की पत्नी बयाजाबाई धीरे-धीरे वह बाबा के लिए खाना लाने लगी। जैसे-जैसे दिन बीतते गए बाबा उसे अपनी मां की तरह मानने लगे। ग्राम प्रधान और पुजारी म्हालस्पति, जिन पर कभी भगवान खंडोबा का साया था, ने कहा था कि यहां एक पवित्र आत्मा है जो साईं बाबा की ओर इशारा करती है।

बाबा सदैव दान को प्रोत्साहित करते थे और बाँटकर सुख बाँटते थे। यदि कोई प्राणी आपके पास मदद के लिए आए तो उसे भगाएं नहीं। उनका आदरपूर्वक स्वागत करें और उनके साथ अच्छा व्यवहार करें।प्यासे को पानी दो, भूखे को भोजन दो, और अजनबी को अपने बरामदे में रहने दो। अगर कोई आपसे पैसे मांगे और आप देना नहीं चाहते तो न दें लेकिन बेवजह उस पर भौंकें नहीं। बाबा हमेशा कहते थे बिना किसी भेदभाव के हर प्राणी से प्यार करो।उन्होंने सर्वशक्तिमान (अल्लाह मलिक) की शक्ति और आशीर्वाद में पूर्ण निष्ठा और विश्वास और कर्म के परिणामों के लिए धैर्य की सलाह दी। बाबा की कृपा के परिणामस्वरूप, भक्तों को स्व-निर्मित दृढ़ विश्वास और विश्वास का अनुभव होता है कि उनकी इच्छाएँ और आकांक्षाएँ जो भी हों, वे कभी भी बाबा की नज़रों से ओझल नहीं होंगी।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .