Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक देव जी के उपदेशों से जगमगाए जीवन का मार्ग

By Tami

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Guru Nanak Jayanti 2025

धर्म संवाद / डेस्क : भारत के आध्यात्मिक इतिहास में यदि किसी महापुरुष ने मानवता के सार्वभौमिक सिद्धांतों को सरल और व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत किया, तो वह थे गुरु नानक देव जी। 15वीं सदी के इस महान संत ने समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों और भेदभाव के विरुद्ध नई चेतना जगाई। वे केवल सिख धर्म के संस्थापक ही नहीं, बल्कि मानवता के सच्चे मार्गदर्शक थे, जिन्होंने सिखाया कि “एक ओंकार” अर्थात् एक ही ईश्वर है जो सबका सृजनहार है।

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इस वर्ष गुरु नानक जयंती बुधवार, 5 नवम्बर 2025 को मनाई जाएगी। यह दिन कार्तिक पूर्णिमा को पड़ता है, और पूरे देश में इसे अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन, प्रभात फेरियाँ और लंगर का आयोजन होता है। यह अवसर केवल जन्मोत्सव नहीं, बल्कि उनके उपदेशों को जीवन में उतारने का संकल्प दिवस भी है।

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गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) में हुआ। बचपन से ही वे सत्य और ईश्वर की खोज में रमे रहे। उन्होंने जाति-पांति और धर्म के भेद को निरर्थक बताया और कहा “ना कोई हिन्दू, ना मुसलमान; सब मानव एक हैं।”

तीन मूल सिद्धांत: जीवन का सार

गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन दर्शन को तीन सूत्रों में बाँधा —

  1. नाम जपो: ईश्वर का स्मरण और सत्य मार्ग पर चलना।
  2. किरत करो: ईमानदारी से श्रम कर जीविकोपार्जन करना।
  3. वंड छको: अपनी आय और संसाधन दूसरों के साथ बाँटना।

इन सिद्धांतों में सामाजिक समानता और आर्थिक न्याय की सबसे सुंदर झलक दिखाई देती है।

सेवा और लंगर की परंपरा

गुरु नानक देव जी ने लंगर की परंपरा आरंभ की, जहाँ सब एक साथ बैठकर भोजन करते हैं — बिना जाति, धर्म या स्थिति के भेदभाव के। यह केवल भोजन नहीं, बल्कि समानता और सेवा की संस्कृति का प्रतीक है।

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“सेवा बिना गर्व के करनी चाहिए, तभी वह सच्ची सेवा होती है।”

स्त्री समानता का संदेश

गुरु नानक देव जी ने महिलाओं के सम्मान को सर्वोच्च स्थान दिया। उन्होंने कहा —

“सो क्यों मंदा आखिए, जित जन्मे राजान।”
अर्थात — जिसे जन्म देने वाली स्त्री है, उसे निम्न क्यों कहा जाए?

यह विचार आज के नारी सशक्तिकरण के युग में भी उतना ही प्रासंगिक है।

मानवता और धार्मिक सहिष्णुता

गुरु नानक देव जी ने भारत से लेकर मक्का-मदीना, तिब्बत और बंगाल तक यात्राएँ कीं — जिन्हें उदासियाँ कहा जाता है। उन्होंने सभी धर्मों में समानता और सेवा का संदेश फैलाया। “ईश्वर सब में है, कोई छोटा-बड़ा नहीं।” यह वाणी हमें जाति, भाषा और धर्म से ऊपर उठने की प्रेरणा देती है।

प्रकृति के प्रति सम्मान

गुरु नानक देव जी ने प्रकृति को ईश्वर का स्वरूप माना —

“पवण गुरु, पानी पिता, माता धरत महत।”
यह श्लोक पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन का अद्भुत संदेश देता है, जो आज की जलवायु चुनौतियों के बीच अत्यंत महत्वपूर्ण है।

गुरु नानक का संदेश — आज और हमेशा

21वीं सदी का समाज भले ही आधुनिक तकनीक में आगे हो, परंतु आज भी उसे गुरु नानक के विचारों की आवश्यकता है।
उनकी शिक्षाएँ हमें बताती हैं कि सच्ची भक्ति मंदिरों में नहीं, बल्कि मानवता की सेवा और प्रेम में है।

“सबना अंदरि एकु रबु वरतै, सबना का करता आपे सोई।”
(ईश्वर सबके भीतर है, वही सबका रचयिता है।)

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .