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द्रोपदी चीर हरण प्रसंग

By Tami

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द्रौपदी चीर हरण

धर्म संवाद / डेस्क : महाभारत एक बहुत ही बड़ा ग्रन्थ है. इसे दुनिया का सबसे बड़ा ग्रन्थ भी माना जाता है. इसे हिंदू धर्म का पांचवा वेद भी कहा गया है. इस महाकाव्य के हर प्रसंग,हर घटना से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है. महाभारत के जितने भी प्रसंग है उनमे सबसे ज्यादा प्रचलित और सबसे ज्यादा निंदनीय द्रौपदी के चीर हरण का प्रसंग है.कौरवों द्वारा किये गए इस घिनौने कृत्य के वजह से ही महाभारत जैसे महायुद्ध की नीव रखी गयी.चलिए इस पुरे प्रसंग को जानते हैं.

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द्रौपदी पांचाल देश की राजकुमारी थी और उनका विवाह अर्जुन से हुआ था. परन्तु माता कुंती के अंजाने में दिए एक आदेश से द्रौपदी पांडवों यानी पांचों भाइयों की पत्नी बन गई. उस समय पांडव इन्द्रप्रस्थ की सत्ता संभाल रहे थे.ज्येष्ठ कौरव दुर्योधन हस्तिनापुर के राजकुमार थे. दुर्योधन अपने चचेरे भाइयों यानी पांडवों से बहुत ईर्ष्या करता था. कौरवों के मामा शकुनि बहुत चालाक थे. उन्होंने दुर्योधन को सलाह दिया कि कौरवों को जुएं के खेल के लिए बुलाये. इस खेल में पांडवों का सारा राज्य अपने कब्जे में कर ले.दुर्योधन द्वारा बुलाये जाने पर पांडव तैयार हो गए.और खेल को खेलने के लिए आ गए.

एक सभा का आयोजन हुआ जिसमें धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और महात्मा विदुर जैसे महान लोग भी सम्मिलित हुए. खेल शुरू होने पर मामा शकुनि ने छल कपट से पांडवों को हराना शुरू कर दिया.धीरे -धीरे पांडव अपना राज्य और पांचों भाइयों को दांव पर लगाकर जुआ हार गये.जब पांडवों के पास कुछ नहीं बचा, तो पांडवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया.घमंडी दुर्योधन इसी समय का इंतजार कर रहा था. उसने मामा शकुनि की सहायता से द्रौपदी को भी जीत लिया.  

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द्रौपदी को जीतने के बाद दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को आदेश दिया कि वो द्रौपदी को भरी सभा में बाल पकड़कर और घसीटते हुए लेकर आए. भाई से आज्ञा मिलते ही दुशासन द्रौपदी के कक्ष में गया और उसे सभा में चलने को कहा.रानी द्रौपदी बहुत ही स्वाभिमानी स्त्री थीं, इसलिए उन्होंने दुशासन के साथ चलने से मना कर दिया. उन्होंने ये भी कहा कि कोई व्यक्ति जब खुद को हार चूका होता है तो वो किसी और को दाव पे नहीं लगा सकता. पर फिर दुशासन ने गुस्से में आकर द्रौपदी के बाल पकड़ लिए और उसे खींचते हुए भरी सभा में ले गया.

चीर हरण

द्रौपदी ने सभा में पहुच कर देखा कि उनके पाँचों पति मुह झुकाए बैठे थे.तब दुर्योधन ने द्रौपदी को सारी बातें बताई और दुशासन को आज्ञा दी कि वो द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर दे. दुशासन ने जैसे ही द्रौपदी के वस्त्र को हाथ लगाया, द्रौपदी ने अपने पतियों से मदद की गुहार लगाईं परन्तु उन सबके हाथ बंधे हुए थे.वे कुछ नहीं कर सकते थे.फिर द्रौपदी ने वहाँ मौजूद सभी विशिस्ट व्यक्तियों से मदद मांगी. लेकिन कोई आगे नहीं आया.अंत में उन्होंने श्रीकृष्ण को मदद के लिए पुकारा। द्रौपदी ने कहा, ”हे गोविंद आज आस्था और अनास्था के बीच जंग है. आज मुझे देखना है कि ईश्वर है कि नहीं”

श्रीकृष्ण अपने भक्तों को कभी नाराज नहीं करते. कृष्ण ने जब द्रौपदी की करुण पुकार सुनी, तो उन्होंने द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाना शुरू कर दिया. दुशासन, द्रौपदी का चीर खींचता रहा, लेकिन वो जितना खींचता वस्त्र उतना बढ़ता जाता.अंत में दुशासन थक कर हार गया, किन्तु द्रौपदी का वस्त्र हरण नहीं कर सका.

माना जाता है जब श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया गया, उस समय श्रीकृष्ण की अंगुली भी कट गई थी.अंगुली कटने पर श्रीकृष्ण का रक्त बहने लगा. तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांधी थी.

इस कर्म के बदले श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देकर कहा था कि एक दिन अवश्य तुम्हारी साड़ी की कीमत अदा करुंगा. इन कर्मों की वजह से श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी को इस पुण्य के बदले ब्याज सहित इतना बढ़ाकर लौटा दिया और द्रौपदी की लाज बच गई.

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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