धर्म संवाद / डेस्क : भाई दूज सिर्फ़ तिलक और मिठाई का त्योहार नहीं, बल्कि उस रिश्ते की डोर का प्रतीक है जो समय की रफ़्तार में भी स्नेह का रंग बनाए रखती है। जब मिलन अब वीडियो कॉल पर और तिलक इमोजी में सिमटने लगे हैं, तब यह पर्व हमें याद दिलाता है कि रिश्तों की असली गर्माहट दिल से आती है, स्क्रीन से नहीं।
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भाई दूज का मूल भाव
दीपावली के शांत उजाले के बाद जब सुबह की पहली किरणें घरों में उतरती हैं, तब बहनों के आँगन में भाई दूज की रस्में शुरू होती हैं। तिलक, आरती और मिठाई के बीच बहन का हर स्पर्श अपने भाई के लिए आशीर्वाद बन जाता है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि विश्वास, सुरक्षा और आत्मीयता का संस्कार है जो भाई-बहन के रिश्ते को जीवनभर की गहराई देता है।
कभी यह पर्व सिर्फ़ रीति नहीं, रिश्तों का उत्सव था
कभी भाई दूज का दिन पूरे घर में रौनक से भरा होता था। बहनें सवेरे से सजतीं, भाई दूर-दूर से आते, और परिवार मिलन की गर्माहट में डूब जाता। न कोई कैमरा, न औपचारिकता—सिर्फ़ भावनाओं का सच्चा प्रवाह।
अब समय बदल गया है। भाई दूज का तिलक अब कई बार मोबाइल स्क्रीन पर भेजे गए इमोजी से लग जाता है। रिश्ते डिजिटल तो हो गए हैं, पर भावनाओं का तापमान ठंडा पड़ने लगा है।
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आधुनिकता और संवेदना के बीच खिंची रेखा
तकनीक ने हमें जोड़ा तो है, लेकिन कई बार दिलों की दूरी बढ़ा दी है। भाई दूज जैसे पर्व, जो कभी संबंध और संवाद के प्रतीक थे, अब “स्टेटस अपडेट” बनते जा रहे हैं। हमारी भागदौड़ भरी ज़िंदगी में त्योहार अब भावनाओं की जगह औपचारिकता बनते जा रहे हैं। लेकिन सच्चे अर्थों में, यह पर्व हमें यह याद दिलाने आता है कि “रिश्ते खून से नहीं, व्यवहार से ज़िंदा रहते हैं।”
भाई दूज: सुरक्षा से सम्मान तक का सफर
आज की बहनें आत्मनिर्भर हैं, अपने फैसले खुद लेती हैं, और जीवन की हर दिशा में आगे बढ़ रही हैं। भाई दूज अब केवल सुरक्षा का प्रतीक नहीं, बल्कि सम्मान और बराबरी का भी पर्व बन चुका है। अब भाई का दायित्व सिर्फ़ रक्षा करना नहीं, बल्कि सम्मान देना और साथ निभाना है। और बहन का स्नेह केवल सेवा नहीं, बल्कि सहयोग और समझ का प्रतीक बन गया है।
त्योहार का बदलता स्वरूप
आज भाई दूज “रील” और “पोस्ट” का हिस्सा बन गया है। पर असली अपनापन किसी पोस्ट में नहीं, किसी सच्चे गले मिलने में छिपा है। त्योहारों का असली उद्देश्य यही होता है — रिश्तों को फिर से गढ़ना, संवाद को पुनर्जीवित करना और स्नेह की लौ जलाए रखना।
भाई दूज का सामाजिक संदेश
यह पर्व सिर्फ़ भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक नहीं, बल्कि मानवीय रिश्तों की स्थिरता का प्रतीक है। जब समाज में प्रतिस्पर्धा और आत्मकेंद्रिता बढ़ रही है, तब भाई दूज हमें यह सिखाता है कि “प्रेम का कोई विकल्प नहीं होता।” तकनीक जुड़ाव दे सकती है, पर आत्मीयता सिर्फ़ स्पर्श और संवेदना से आती है।
रिश्तों की नई परिभाषा
अब यह पर्व रिश्तों को सुरक्षा बनाम निर्भरता से निकालकर सम्मान बनाम समानता की दिशा में ले जा रहा है। बहनें अब केवल आशीर्वाद की नहीं, साझेदारी की हकदार हैं। भाई भी अब बहन की स्वतंत्रता को कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी शक्ति समझने लगे हैं। यही रिश्ते की नई दिशा है—बराबरी में आत्मीयता का संगम।
त्योहार को फिर जीवित करने की ज़रूरत
भाई दूज की आत्मा तभी जीवित रहेगी जब हम रिश्तों में फिर से मानवीय गर्माहट लाएँगे। कभी एक फोन कॉल, कभी बिना वजह किया गया धन्यवाद, या किसी बहन के घर जाकर हालचाल पूछना—ये ही वो छोटे-छोटे “तिलक” हैं जो रिश्तों को फिर से जीवित रखते हैं। भाई दूज का तिलक सिर्फ़ माथे पर नहीं, मन पर लगाना चाहिए—जहाँ अपनापन, स्मृति और कृतज्ञता की लकीरें हमेशा बनी रहें।
भाई दूज 2025 का संदेश
समय बदलेगा, पर अगर प्रेम और अपनापन मन में जीवित रहा, तो रिश्ते कभी नहीं टूटेंगे। इस बार जब बहन तिलक लगाए या भाई मुस्कुराए—तो वह क्षण सिर्फ़ फोटो नहीं, भावना बन जाए। क्योंकि यही इस पर्व का सार है “भाई दूज से रिश्तों की रोशनी न सिर्फ़ दीयों में, बल्कि दिलों में जले।”






