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प्रकृति के वादियों में बसा बाबा मुक्तेश्वर धाम, दूर-दूर से हज़ारो की संख्या में जलाभिषेक करने पहुँचते है भक्त

By Tami

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बाबा मुक्तेश्वर धाम

धर्म संवाद / झारखंड : कोल्हान के प्रसिद्ध धामों में बाबा मुक्तेश्वर धाम का एक अलग ही स्थान है। सावन के महीने में यहाँ बिहार, बंगाल, उड़ीसा आदि राज्यों से बाबा भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने हजारों की संख्या में भक्तगण पहुंचते हैं। प्रकृति के वादियों में बसा हरिना के बाबा मुक्तेश्वर धाम चारों ओर जंगल एवं लंबे लंबे पेड़ से घिरा हुआ है। माना जाता है कि यहां शिवलिंग की उत्पत्ति स्वयं हुई है। जिसके कारण इस स्थान का एक विशेष महत्व है।

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बाबा मुक्तेश्वर धाम की उत्पत्ति का रहस्य

लोककथा के अनुसार, लगभग आठ सौ वर्ष पहले हरिणा जंगलों में एक गाय जंगल में चढऩे के बाद जब घर में दूध नहीं देती थी तो चरवाहे को कई सारी बातें सुनने को मिलती थीं। इस रहस्य को जानने के लिए चरवाहा कृपासिंधु ने एक दिन पेड़ के ऊपर चढ़कर देखा कि गाय एक झाड़ी में जाकर स्वयं अपना दूध गिरा रही है। चरवाहा द्वारा उस झाड़ी को साफ किया गया तो देखा गया कि वहां एक शिवलिंग है। इस शिवलिंग पर गाय प्रतिदिन अपना दूध चढ़ाया करती थी। यह बात जंगल में आग की तरह चारों तरफ फैल गई। जिसके बाद आसपास के गांव वालों द्वारा जगह की साफ-सफाई कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई। बाद में चलकर यही शिवलिंग बाबा मुक्तेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

जाने मंदिर की विशेषता

मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां शिवलिंग का स्वयं उदय हुआ है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि यहां आने वाले हर भक्‍त की मनोकामना पूर्ण होती है। इसलिए बिहार, बंगाल, उड़ीसा से हजारों की संख्या में लोग पूजा-अर्चना करने यहाँ पहुंचते हैं। सुबह और शाम यहां भोलेनाथ की विशेष आरती होती है।

कृपासिंधु दंड पात के वंशज बजरंगी दंड पात द्वारा वर्तमान में मुख्य पुजारी के रूप में मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। कृपासिंधु की सातवीं पीढ़ी इस मंदिर में पूजा करती-कराती है। मंदिर को सुचारू रूप से संचालित करने में कमलाकांत नायक, विद्याधर साहू, निरंजन बारीक, कृपासिंधु बारीक, पूर्ण चंद्र नायक, अनिरुद्ध नायक, गदाधर बारीक, अमूल्य महाकुड़ आदि का महत्वपूर्ण योगदान है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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