Do you want to subscribe our notifications ?

महादेवसाल-इस मंदिर में होती है खंडित शिवलिंग की पूजा

By Tami

Published on:

महादेवसाल

धर्म संवाद / डेस्क : हमारे धर्म शस्त्रों में कहा गया है कि खंडित मूर्तियों की पूजा अर्चना नहीं करनी चाहिए। खंडित मूर्तियों में देवत्व नहीं बचता परंतु, शिवलिंग चाहे जोतना भी खंडित क्यों न हो जाए उसकी पवित्रता बरकरार रहती है। एक शिवलिंग ऐसा भी है जहां पिछले 150 साल से एक खंडित शिवलिंग की पूजा होती या रही है। यह मंदिर झारखंड के गोइलकेरा के बड़ैला गांव में मौजूद है। यहाँ स्थित है महादेवसाल।  इस मंदिर में खंडित शिवलिंग की पूजा होती है। शिवलिंग का आधा हिस्‍सा कटा हुआ है, फिर भी लोग दूर-दूर से इस मंदिर में पूजा करने आते हैं। 

यह भी पढ़े : महादेव के इस मंदिर में हर 12 साल में इंद्र देव गिराते है बिजली

मान्यताओं के अनुसार, 19 वी शताब्दी में  गोइलेकेरा के बड़ैला गाँव के पास बंगाल-नागपुर रेलवे द्वारा कलकत्ता से मुंबई के बीच रेलवे लाइन बिछाने का काम चल रहा था। उस समय मजदूरों को खुदाई में शिवलिंग दिखा इसके बाद मजदूरों ने खुदाई रोक दी और आगे काम करने से मना कर दिया। उस समय वहां पर मौजूद ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी ने इन सब बातों पर विश्वास न करते हुए स्वयं फावड़ा उठाया और शिवलिंग पर प्रहार कर दिया जिससे शिवलिंग दो टुकड़ो में बंट गया । इसके घटना के बाद शाम को काम से लौटते समय इंजीनियर की रास्ते में ही मृत्यु हो गई।

यह सारी बातें जानकार आसपास के लोगों में दहशत फैल गई। सभी ने मिलकर वहाँ रेल्वे लाइन न बनाने की गुजारिश और मांग की। उस समय अंग्रेज सरकार को भी लगा था कि यह आस्था एवं विश्वास की बात है और ज़बरदस्ती करने के उलटे परिणाम हो सकते है । इसलिए उन्होंने भी रेल कार्य रोक दिया । इस वजह से रेलवे लाइन की दिशा बदलनी पड़ी और दो सुरंगो का निर्माण करना पड़ा। जहां शिवलिंग निकला था वहीं आज महादेवशाल मंदिर है तथा खंडित शिवलिंग मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है। साथ ही शिवलिंग का दूसरा टुकड़ा वहां से दो किलोमीटर दूर रतनबुर पहाड़ी पर ग्राम देवी ‘माँ पाउडी’ के साथ स्थापित है जहां दोनों की नित्य पूजा-अर्चना होती है। परम्परा के अनुसार पहले शिवलिंग और उसके बाद माँ पाउडी की पूजा होती है।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

Exit mobile version