देवी भगवती को प्रसन्न करने के लिए पाठ करे अर्गला स्तोत्र

By Tami

Published on:

अर्गला स्तोत्र

धर्म संवाद / डेस्क : अर्गला स्तोत्र दुर्गा सप्तशती का एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाग है। मान्यता है कि अर्गला स्तोत्र का पाठ दुर्गा कवच के बाद और कीलक स्तोत्र के पहले करना चाहिए। अगर आप दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर पा रहे हैं तो कीलक स्तोत्रम, देवी कवच या अर्गलास्तोत्र का पाठ करके भी देवी भगवती को प्रसन्न कर सकते हैं। 

श्री चंडिकाध्यानं
ॐ बन्धुकाकुसुमभासं पञ्चमुंडाधिवासिनीम्।
स्फुरचन्द्रकलारत्नमुकुटं मुंडमालिनिम् ।।त्रिनेत्रं
रक्तवासनं पिनोन्नताघतास्तनिम्।।
पुस्तं चक्षमालां
चावरं चाभ्यकं क्रमात्।

या

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

या चंडी मधुकैटभदैत्यदलनि या महिशोनमुलिनी
या धूमरेक्षणा चंडमुंडमाथानी या रक्तबीजशानी।
शक्ति: शुंभनिशुंभदैत्यदलनी या सिद्धिदात्री परा
सा देवी नवकोटिमूर्ति मां पातु विश्वेश्वरी के साथ..

यह भी पढ़े : द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोतम | Dwadash Jyotirlinga Strotam

अथ अर्गलास्तोत्रम्

ॐ नमश्वन्दिकाइ

मार्कंडेय उवाच

ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतपहारिणी।
जय सर्वगते देवी कालरात्रि नमोस्तु ते ।।1।।

जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते ।।2।।

मधुकैटभविद्वंसि विधात्रिवर्दे नमः।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।3।।

महिषासुर निर्णयशी भक्तानां सुखदे नमः।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।4।।

धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।5।।

रक्तबीजवधे देवी चण्डमुण्डविनाशिनी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।6।।

निशुम्भशुम्भनिर्नाशी त्रैलोक्यशुभदे नमः।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।7।।

वंदितंघृयुगे देवी सर्वसौभाग्यदायिनी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।8।।

अचिन्त्यरुपचारिते सर्वशत्रुविनाशिनी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।9।।

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चपर्णे दुरितपहे।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।10।।

स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनासिनि।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।11।।

चण्डिके सततं युद्धं जयन्ती पापनाशिनि।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।12।।

See also  श्री जगन्नाथ आरती - चतुर्भुज जगन्नाथ

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवी पर्ण सुखम्।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।13।।

विदेहि देवी कल्याणम् विदेहि विपुलं श्रेयम्।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।14।।

विदेहि द्विष्ठान नाशं विदेहि बलमुच्छकै:।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।15।।

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्ठचरणे मबिके।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।16।।

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तंच माँ कुरु।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।17।।

देवी प्रचंडडोरंडादैत्यदर्पनिशुदिनी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।18।।

प्रचंड दैत्य दर्पघ्ने चंडिके प्रणतै मई।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।19।।

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंसुते परमेश्वरी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।20।।

कृष्णं संस्तुते देवि शाश्वत्भक्त्या सदाम्बिके।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।21।।

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।22।।

इन्द्राणीपतिसद्भावजिते परमेश्वरी।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।23।।

देवी भक्तजनोद्दमदत्तानन्दोदयेयम्बिके।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।24।।

भार्या मनोरमं देहि मनोवृत्तलाहिनीम्।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।25।।

तारिणी दुर्गसंसारसागरसचलोद्वे।
रूप देहि जैन देहि यशो देहि द्विषो जहि।।26।।

इदं स्तोत्रं पतित्व तु महास्तोत्रं पथेन्नर:।
सप्तसति समाराध्या वर्माप्नोति दुरहम् ।।27।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .