धर्म संवाद / डेस्क : श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता बहुत गहरी थी। उन दोनों की मित्रता की मिसाल दी जाती है। दोनों की पहली मुलाकात ऋषि सांदीपनि के आश्रम में हुई थी। वही वे मित्र बने और धीरे-धीरे उनकी मित्रता घनिष्ठ हो गयी। श्री कृष्ण एक संपन्न परिवार से थे परन्तु सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे। गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद दोनों बिछड़ गए। श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बन गए और सुदामा भिक्षा मांग कर गुज़ारा करते थे। पर आखिर दो घनिष्ठ मित्रों का नसीब इतना भिन्न क्यों था। सुदामा को इतनी गरीबी क्यों झेलनी पड़ी। दरअसल इसके पीछे एक कहानी है।
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पौराणिक कथा के अनुसार एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी। वो भिक्षा मांग कर जीवन व्यतीत करती थी। एक समय ऐसा आया कि पांच दिन तक उसे कोई भिक्षा नहीं मिली । वह प्रतिदिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पहुंचते-पहुंचते उन्हें रात हो गई। ब्राह्मणी ने सोचा अब ये चने रात मे नहीं खाऊंगी सुबह भगवान को भोग लगाकर फिर खाऊंगी। यह सोचकर ब्राह्मणी ने चनों को कपड़े में बांधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गई।
रात में उसकी कुटिया में चोर आए और चने को सोने को मुहर समझकर चुराने लगे। आवाज सुनकर ब्राह्मणी जाग गई और शोर मचाने लगी। उसकी आवाज सुनकर गांव वाले चोर को पकड़ने के लिए भागे तो चोर संदीपनि मुनि के आश्रम में छिप गए। संदीपनि मुनि के आश्रम में ही कृष्ण और सुदामा उन दिनों शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
चोरों के आने पर हलचल हुई तो गुरुमाता देखने के लिए आगे बढ़ीं। इतने में चोर भाग निकले और पोटली वहीं छूट गई। वहीं दूसरी तरफ भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब देखा कि उनके चने कोई चुरा कर ले गया तो उन्होंने श्राप दिया कि जो भी मुझ दीनहीन और असहाय के चने खाएगा वह भी दरिद्र हो जाएगा।
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प्रात:काल गुरु माता आश्रम में झाड़ू लगाने लगी और उसे वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमें चने थे। सुदामा और कृष्ण भगवान जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे। तो गुरु माता ने वह चने की पोटली सुदामा को दी और कहा बेटा कि भूख लगे तो खा लेना। पोटली को हाथ लगाते साथ सुदामा अपने ज्ञान और तप की शक्ति से समझ गए कि ये एक श्रापित पोटली है। सुदामा जी ने सोचा ये चने अगर मैंने श्री कृष्ण को खिला दिए तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जाएगी। मैं ऐसा नहीं करुंगा, मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जाएं ऐसा कदापि नहीं होगा।
यही सोच कर उन्होंने सारे चने खुद खा लिए और उस गरीब ब्राह्मणी का श्राप अपने ऊपर ले लिया। लेकिन उन्होंने अपने मित्र श्रीकृष्ण को चने का एक दाना भी नहीं दिया। जब श्रीकृष्ण ने माँगा तो उन्होंने कह दिया कि मुझे बहुत भूख लगी थी इसलिए मैंने सारे चने खा लिए सुदामा ने अपना पूरा जीवन गरीबी में बिताया और जब सुदाम द्वारका गए तो भगवान कृष्ण ने चुपके से उनकी कुटिया को महल में बदल दिया था।