धर्म संवाद / डेस्क : केदारनाथ धाम के कपाट साल के 6 महीने बंद रहते हैं और बाकी के 6 महीने खुले रहते हैं। प्रभु के दर्शन करने के लिए भक्त साल भर इंतजार करते हैं। आपको बात दे केदारनाथ को जागृत महादेव भी कहा जाता है। आजकल केदारनाथ दर्शन करने जाने के लिए साधनों की कमी नहीं है। पर कुछ सालों पहले इतने सारे साधन उपलब्ध नहीं थे। यह कहानी उसी समय का है।
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एक बार एक भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। यातायात के साधनों की अच्छी व्यवस्था न होने के कारण वह पैदल ही निकल पड़ा। महीनों बीत गए। जब वह आखिरकार पहुंचा तब केदारनाथ के कपाट बंद होने का समय या चुका था। भक्त ने पंडित को बताया कि वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा कर आया है इसलिए वह प्रभु के दर्शन करना चाहता है। परंतु द्वार बंद हो चुका था। इससे भक्त बहुत निराश हुआ और रोने लगा। पंडित जी ने भक्त से कहा कि वह 6 महीने के बाद लौटे। लेकिन भक्त वहीं पर बैठ गया और भगवान शिव का कृपा पाने की उम्मीद करने लगा। रात के समय भूख-प्यास और सर्दी से उसका बुरा हाल हो गया।
इसी दौरान उसे एक सन्यासी दिखा। सन्यासी बाबा उसकी ओर आए उस के पास बैठ गए। सन्यासी बाबा ने उससे पूछा बेटा कहां से आये हो? उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा आना यहां पर व्यर्थ हो गया बाबा जी। तब उस बाबा जी ने उसे समझाया और खाने को भोजन भी दिया। फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे। बाबा जी ने फिर उसे बोला, “बेटा तुम चिंता मत करो । मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरूर करोगे। सके कुछ समय बाद भक्त गहरी नींद में सो गया। सुबह जब भक्त की आंख खुली तो उसने देखा कि पंडित जी अपनी मंडली के साथ केदारनाथ के द्वार को खोलने की तैयारी कर रहे हैं। भक्त ने पंडित जी से कहा कि आपने तो कहा था कि द्वार 6 महीने के बाद खुलेंगे। आप इसे आज ही खोलने जा रहे हैं। पंडित जी ने उस भक्त को पहचान लिया और कहा कि 6 महीने बीत चुके हैं। द्वार 6 महीने बाद ही खोले जा रहे हैं। और आप यहाँ 6 महीनों तक जीवित कैसे हैं। इस पर भक्त ने उन्हें समस्त घटनाक्रम कह सुनाया।
तब पंडित जी ने पूछा कि वो सन्यासी बाबा कैसे दिखते थे तो भक्त ने कहा कि वे लंबे थे और बड़ी-बड़ी जटाओं के साथ, एक हाथ में त्रिशूल जैसा डंडा और एक हाथ में डमरू लिए हुए थे। मंदिर के पंडित समझ गए कि इस भक्त से उस रात स्वयं शिव जी ही मिलने आए थे। यही वजह है कि केदारनाथ को ‘जागृत महादेव’ कहा जाता है।