उपनयन संस्कार में पुत्र अपनी माता से क्यों लेता है भिक्षा

By Admin

Published on:

सोशल संवाद / डेस्क : सनातन धर्म शास्त्रों में कूल 16 संस्कार  होते हैं। जिसमें उपनयन संस्कार को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस संस्कार में जनेऊ पहनाई जाती है।  उपनयन का अर्थ होता है आंखों के पास । दोनों आंखों के मध्य में जो तीसरी आंख है उसे खोलना उपनयन संस्कार कहलाता है । इस नेत्र के खुलने से दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है जिससे आत्मा ईश्वर ब्रह्म शिव का दर्शन किया जाता है l उपनयन संस्कार इस बात का प्रतीक है कि इस व्यक्ति का तीसरा नेत्र खुला हुआ है और यह ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण है l

यह भी पढ़े : 2024 की खतरे की भविष्यवाणियाँ, क्या हो जाएगा पृथ्वी का नाश

जब तक तीसरा नेत्र नहीं खुलेगा ब्रह्मा का दर्शन नहीं होगा जब तक ब्रह्मा का दर्शन नहीं होगा उस ब्रह्म के बारे में जानकारी नहीं हो पाएगी और ब्रह्म को जाने बिना कोई ब्राह्मण नहीं बन सकता l

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

शिष्य, संत और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा ली जाती है। दीक्षा देने के तरीके में से एक जनेऊ धारण करना होता है। जो बेहद पवित्र माना जाता है। वहीं जब माता-पिता अपने बच्चों को जब शिक्षा के लिए भेजते हैं, तब दीक्षा दी जाती थी।

किसी भी व्यक्ति को दीक्षा देने का अर्थ दूसरा जन्म और व्यक्तित्व देना है। इतना ही जनेऊ व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अब ऐसे में उपनयन संस्कार में पुत्र अपनी माता से भिक्षा क्यों लेता है।

ऐसा कहा जाता है कि भिक्षा मांगने से अहंकार नष्ट हो जाते हैं। व्यक्ति के अंदर विनम्रता आती है और उसे कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए बल भी मिलता है। वहीं जब बालक अपनी माता से भिक्षा लेने के लिए जाता है, तो उनकी माता उन्हें अन्न देती हैं और प्रेम का परिभाषा भी समझाती हैं। 

See also  मुग़ल बादशाह औरंगजेब भी नहीं तुड़वा पाए ये मंदिर, मुकेश अंबानी भी लगाते हैं हाजिरी

Admin