होली पर गुलाल क्यों लगाते हैं, जाने इसके पीछे का कारण

By Tami

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होली पर गुलाल

धर्म संवाद / डेस्क : होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार है। यह पर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है। होली का नाम सुनते ही मन में रंगों का ही ख्याल आता है। होली में सब एक दुसरे को अबीर गुलाल लगाते हैं। पर क्या आप जानते हैं होली पर रंग और गुलाल क्यों लगाते हैं। इसके पीछे शास्त्रों में कथाएँ और कारण दोनों वर्णित है।

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भक्त प्रह्लाद और होलिका की कहानी

होली की सबसे प्रचलित कहानी है भक्त प्रह्लाद और होल‌िका की। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को ब्रह्मा जी से वरदान स्वरूप एक वस्त्र प्राप्त था जिसे ओढने के बाद आग उसे नहीं जला पाती थी । इस वरदान का लाभ उठाकर हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के भक्त और अपने पुत्र प्रह्लाद को  मरवाना चाहा। दरअसल, प्रह्लाद श्री हरी विष्णु का भक्त था और ये बात हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी। उसने कई प्रयास किये पर अपने ही पुत्र को अपने विरोधी की भक्ति करने से नहीं रोक पाए।अंत में उन्होंने प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका की मदद से मरवाना चाहा। इसके लिए होलिका लकड़ियों के ढ़ेर पर प्रह्लाद को लेकर बैठ गई। लकड़ियों में जब आग लगाई गई तो भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद जीवित बच गया और होलिका जल गई। लोगों को जब इस घटना की जानकारी मिली तो अगले दिन लोग खूब रंग गुलाल के संग आनंद उत्सव मनाए। इसके बाद से ही होली पर रंग गुलाल लगाने की परंपरा शुरु हुई।

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राधा –कृष्ण की कहानी

एक और पौराणिक कथा के अनुसार, होली में रंग और गुलाल से खेलने की परंपरा राधा-कृष्ण ने शुरू की थी। कहा जाता है कि श्री कृष्ण मां यशोदा से हमेशा पूछा करते थे कि राधा गोरी क्यों है और वो काले क्यों हैं। एक दिन उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को सुझाव दिया कि वह राधा को जिस रंग में देखना चाहते हैं उसी रंग को राधा के मुख पर लगा दें। श्री कृष्ण को यह बात अच्छी लगी। तब श्री कृष्ण ने अपने मित्रों के साथ राधा और सभी गोपियों को जमकर रंग लगाया। जब वह राधा और अन्य गोपियों को तरह-तरह के रंगों से रंग रहे थे, तो नटखट श्री कृष्ण  की यह प्यारी शरारत सभी ब्रजवासियों को बहुत पंसद आई। माना जाता है, कि इसी दिन से होली पर रंग खेलने का प्रचलन शुरू हो गया।

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शिव-पार्वती और कामदेव की कहानी

होली पर उत्सव मनाने की एक और वजह भगवान शिव और देवी पार्वती की पहली मुलाकात है। कथा के अनुसार तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव और पार्वती का विवाह आवश्यक था। लेकिन भगवान शिव तपस्या में लीन थे। इसके लिए देवताओं ने कामदेव और उनकी पत्नी देवी रति का सहारा लिया। कामदेव ने भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया इससे नाराज होकर शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर  कामदेव को भष्म कर दिया। जिसके बाद रतिे ने विलाप करना शुरु कर दिया। देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने कामदेव को बिना शरीर के रति के साथ रहने का आशीर्वाद दिया। शिव पार्वती के मिलन और कामदेव को पुनः जीवन मिलने की खुशी में देवताओं ने रंगोत्सव मनाया था।

होली के रंग और होलिका दहन का धार्मिक महत्त्व के साथ- साथ वैज्ञानिक महत्त्व भी है। शास्त्रों में बताया गया है कि पवित्र अग्नि जलाने से वातावरण शुद्ध हो जाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।साथ ही इससे कई कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। और इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को स्वच्छ करता है।

आपको बता दे  होली का त्योहार साल में ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण लोग आलसी हो जाते हैं। सर्दी से गर्मी आने के कारण शरीर में थकान और सुस्ती महसूस होने लगती है। शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए ही लोग इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं बल्कि बोलते भी थोड़ा जोर से हैं। रंगीन पानी, विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालने से शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है। अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करते हैं और शरीर के आयन मंडल को मजबूती प्रदान करने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं ।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .