धर्म संवाद / डेस्क : भगवान भोलेनाथ का सबसे पसंदीदा महिना सावन होता है। यह महिना महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। इस दौरान हर सोमवार व्रत रखा जाता है । साथ ही कांवर यात्रा भी होती है जिसमे कांवड़िए नंगे पैर और भगवा वस्त्र पहने हुए पवित्र तीर्थ स्थलों से गंगा जल भरते हैं। उसके बाद, स्थानीय शिव मंदिर में गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। इस दौरान कई नियमों का पालन करना होता है। चलिए जानते हैं कांवर यात्रा के क्या-क्या नियम है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान शराब, सिगरेट, पान मसाला आदि नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- यात्रा के दौरान आप किसी तरह के अपशब्द का इस्तेमाल ना करें। अपने साथ जाने वाले कांवड़ियों के साथ अच्छा व्यहार करें।
- कावड़ यात्रा के दौरान किसी भी तरह का मांसहारी भोजन करने की भी मनाही है।
- कावड़ यात्रा के दौरान अगर कहीं पर रुकना हो तो कावड़ को भूमि पर या किसी चबूतरे पर न रखे। उसे किसी स्टैंड या पेड़ की डाली पर लटका दे। नीचे भूमि पर रख देने से वो जल पवित्र नहीं रहता और दुबारा जल भरकर लाना होता है।
- यात्रा करते समय पूरे रास्ते बम बम भोले या जय जय शिव शंकर या हर हर महादेव का उच्चारण करते रहना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कांवड़ को किसी के ऊपर से लेकर ना जाएं।
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- कांवड़ मुख्यत: चार प्रकार की होती है और हर कांवड़ के अपने नियम और महत्व होते हैं। इनमें हैं – सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़, दांडी कांवड़। जो शिव भक्त जिस प्रकार की कांवड़ लेकर जाता है, उसी हिसाब से वह तैयारी की जाती है।
- भोलेनाथ के अभिषेक के लिए कांवर में पवित्र नदी का जल यानी बहता हुआ जल ही भरना चाहिए। इसमें कुएं या तालाब का जल नहीं भरना चाहिए।
- कावड़ यात्रा पैदल ही पूरा करे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कांवड़ यात्रा प्रारंभ करने से पूरा होने तक का सफर पैदल ही तय करते हैं।