धर्म संवाद / डेस्क : भारत में हर साल कुम्भ मेला, महाशिवरात्रि और अन्य धार्मिक अवसरों पर नागा साधु अपने शाही स्नान से पहले एक अनूठी परंपरा का पालन करते हैं, जिसे “17 श्रृंगार” कहा जाता है। इस प्रक्रिया के प्रत्येक चरण का वैदिक परंपराओं में निहित प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक महत्व है। इसे शाही स्न्नान से पहले करना जरूरी माना जाता है क्योंकि 17 श्रृंगार प्राचीन वैदिक रीति-रिवाजों का पालन करने की एक प्रक्रिया माने जाते हैं जहां किसी भी बड़े अनुष्ठान से पहले देवताओं को विशिष्ट आभूषणों और पदार्थों से सजाया जाता था। नागा साधु, जिन्हें महाकुंभ के दौरान दिव्यता का अवतार माना जाता है, अपनी दिव्य स्थिति का सम्मान करने के लिए ऐसी ही परंपराओं का पालन करते हैं।
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नागा साधुओं का शाही स्नान से पहले 17 श्रृंगार करना जरूरी माना जाता है और इसके बिना स्नान का फल नहीं मिलता है और शाही स्नान भी अधूरा माना जाता है। ये श्रृंगार न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, बल्कि यह नागा साधुओं की पहचान, उनकी तपस्विता, और उनके जीवन के उद्देश्य को भी दर्शाते हैं। इसके अलावा, यह परंपरा उनके आंतरिक और बाहरी शुद्धता, शक्ति, और संतुलन को स्थापित करने का एक तरीका भी है। शाही स्नान के दौरान यह श्रृंगार साधु को मानसिक और आत्मिक रूप से तैयार करता है ताकि वे आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ सकें।
नागा साधुओं के 17 श्रृंगार में भस्म , लंगोट, चंदन, पांव में चांदी या लोहे के कड़े, पंचकेश यानी जटा को पांच बार घुमाकर सिर में लपेटना, रोली का लेप, अंगूठी, फूलों की माला, हाथों में त्रिशूल या चिंता, डमरू, कमंडल, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, गले में रुद्राक्ष शामिल होते हैं।
- भस्म – भस्म उन्हें सांसारिक मोह-माया से मुक्त रखता है।
- जटा – भगवान शिव से जुड़ने का एक मानक है।
- तिलक – माथे पर भस्म से बनाई जाने वाली तीन रेखाएं त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक होती हैं।
- चंदन- नागा साधु हाथ, माथे और गले में चंदन का लेप लगाते हैं। चंदन का टीका लगाने से मन शांत रहता है और शिव की कृपा को दर्शाता है।
- रुद्राक्ष – महिलाओं की तरह गहनों की जगह नागा संन्यासी रुद्राक्ष की माला पहनते हैं।
- लंगोटी – यह साधुओं की त्यागमय जीवनशैली का प्रमुख प्रतीक है।
- कड़े – नागा साधु चांदी या लोहे के बने पैरों के कड़े पहनते हैं, जो सासरिक मोह से दूर रहने का प्रतीक है।
- रोली – रोली का लेप भी नागा साधु लगाते हैं, जो शाही स्नान के प्रति खुशी का मानक है।
- अंगूठी – नागा साधु अंगूठी पहनते हैं, जो नीम के पत्तों या आम के पत्तों की बनी होती है।
- डमरू – भगवान शिव का सबसे प्रिय वाद्य डमरू भी नागा साधुओं श्रृंगार का हिस्सा है।
- कमंडल- जल लेकर चलने के लिए नागा साधु अपने साथ कमंडल भी धारण करते हैं।
- कुंडल- नागा साधु कानों में चांदी या सोने के बड़े-बड़े कुंडल सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक माने जाते हैं।
- सूरमा- नागा साधु आंखों का शृंगार सूरमा से करते हैं।
- माला – फूलों की माला भक्ति और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है।
- त्रिशूल – त्रिशूल को भगवान शिव का अस्त्र माना जाता है और ये नागा साधुओं का मुख्य श्रृंगार होता है। त्रिशूल अज्ञानता के विनाश और सत्य की स्थापना का प्रतीक है।
इन 17 श्रृंगारों का मुख्य उद्देश्य साधु के शरीर और मन की शुद्धि है। जब साधु इन श्रृंगारों को करते हैं, तो यह उन्हें मानसिक और आत्मिक रूप से तैयार करता है ताकि वे स्नान के बाद ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति को और भी सशक्त रूप से महसूस कर सकें। इस श्रृंगार का उद्देश्य केवल बाहरी सुंदरता नहीं है, बल्कि यह साधक के भीतर की शुद्धता, शक्ति और ऊर्जा को संचारित करने के लिए किया जाता है। उनके शरीर पर की जाने वाली यह श्रृंगार प्रक्रिया उन्हें शुद्ध करती है और उन्हें मानसिक और आत्मिक रूप से तैयार करती है ताकि वे आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ सकें। इस प्रक्रिया के माध्यम से, नागा साधु ईश्वर के करीब पहुंचने की अपनी यात्रा में एक कदम और आगे बढ़ते हैं।