महाकुंभ : साधु संतों के कितने अखाड़े मौजूद है? जाने उनकी खासियत

By Tami

Published on:

साधु संतों के कितने अखाड़े मौजूद है?

धर्म संवाद / डेस्क : महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इसे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक मेला माना जाता है। यह मेला भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होता है – इलाहाबाद (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। कुंभ में अघोरी और नागा साधुओं का जमावड़ा देखने को मिलता है। लाखों की सख्या में साधु संत इस पवित्र मेले में आते हैं और गंगा में डुबकी लगाते हैं। ये नाग साधु अखाड़ों का हिस्सा होते हैं। चलिए जानते हैं अखाड़ों का इतिहास ।

यह भी पढ़े : नागा साधु : कैसे बनते हैं, साधु होकर भी अस्त्र क्यों उठाते हैं

आपको बता दे अखाड़ों की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। कहा जाता है कि उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र विद्या में निपुण साधुओं के संगठन बनाए थे। अखाड़े शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘कुश्ती का मैदान’। लेकिन धीरे-धीरे इसका अर्थ बदलकर साधुओं के संगठन के लिए होने लगा।

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

अखाड़ों के प्रकार

भारत में महाकुंभ में कुल 13 अखाड़े होते हैं, जो हिन्दू धर्म के विभिन्न संप्रदायों से संबंधित होते हैं। इनमें से 7 अखाड़े हिन्दू धर्म के प्रमुख होते हैं, और 6 अन्य अखाड़े विशेष रूप से वैदिक परंपरा और साधु-संतों से जुड़े होते हैं। इन अखाड़ों के सदस्य महाकुंभ में श्रद्धालुओं को धार्मिक उपदेश और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। अखाड़ों को मुख्य रूप से तीन संप्रदायों में बांटा जा सकता है।

  • शैव संप्रदाय: ये अखाड़े भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानते हैं। भारत में कुल 7 अखाड़े शैव संप्रदाय से जुड़े हुए हैं।
  • वैष्णव संप्रदाय: ये अखाड़े भगवान विष्णु को अपना आराध्य देव मानते हैं। भारत में कुल 3 अखाड़े वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हुए हैं।
  • उदासीन संप्रदाय: ये अखाड़े किसी विशेष देवता की पूजा नहीं करते हैं, बल्कि सभी देवताओं को समान रूप से मानते हैं। भारत में कुल 3 अखाड़े उदासीन संप्रदाय से जुड़े हुए हैं।

शैव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े :

1.श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)

महानिर्वाणी अखाड़ा या श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी एक शैव शस्त्रधारी अखाड़ा है । स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने प्रयागराज में की थी। यह सबसे बड़े अखाड़ों में से एक है और इसका मुख्यालय प्रयागराज में है । इसे औपचारिक रूप से 1860 ई. में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणि के रूप में पंजीकृत किया गया था। यह नागा साधुओं और संन्यासियों का अखाड़ा है। कपिल मुनि महानिर्वाणि अखाड़े के संरक्षक देवता हैं। यद्यपि परम्परा के अनुसार महानिर्वाणी अखाड़े की विरासत दस हजार वर्ष पुरानी है, किन्तु औपचारिक रूप से इसका संगठन 748  ई. में हुआ था।

2. श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जाति के लोग ही दीक्षा ले सकते हैं, अन्य कोई भी इस अखाड़े में शामिल नहीं हो सकता।  यह अखाड़ा शैव सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है और यहाँ पर शिव जी की पूजा की जाती है। पंच अटल अखाड़े का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई थी।  यह अखाड़ा महर्षि अत्रि के नाम पर रखा गया है, जो एक प्रमुख वैदिक ऋषि थे। इसका गौरवशाली शौर्य से भरा भारत का इतिहास मिलता है। संतों ने आठवीं शताब्दी से लेकर आजादी की लड़ाई तक कई संग्राम लड़ाई जीते और धर्म रक्षा के साथ ही साथ राष्ट्र रक्षा का भी मार्ग प्रशस्त किया। अटल अखाड़े के लोग संतों ने अकबर को 18 बार उसी के किले में नजर बंद कर दिया था और यही वजह थी कि खुद अकबर ने अटल अखाड़े को नागा संतो को बादशाह की उपाधि दी थी।

3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)

जूना अखाड़े के बाद इसे सबसे ताकतवर माना जाता है।  इसका एक परिचय ये भी है कि इसमें सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधू हैं, जिसमें डॉक्टर, प्रोफेसर और प्रोफेशनल शामिल हैं। निरंजनी अखाड़े की हमेशा एक अलग छवि रही है। निरंजनी अखाड़ा की स्थापना सन 904 में विक्रम संवत 960 कार्तिक कृष्ण पक्ष दिन सोमवार को गुजरात की मांडवी नाम की जगह पर हुई थी। महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी। अखाड़ा का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में है। इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान कार्तिकेय हैं, जो देवताओं के सेनापति हैं। निरंजनी अखाड़े के साधु शैव हैं व जटा रखते हैं।

4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती – त्रंब्यकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)

तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा की स्थापना 856 ईस्वी में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र (तब बरार) में हुई थी। कथा गिरि, हरिहर गिरि, रामेश्वर गिरि, देवदत्त भारती, शिव श्याम पुरी, और श्रवण पुरी जैसे संतों ने मिलकर इसकी नींव रखी.अखाड़े का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा के लिए तपस्वी संतों को संगठित करना था। आनंद अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद नहीं होता है, जो इसे बाकी अखाड़ों से अलग बनाता है। अखाड़े की परंपराओं के मुताबिक यहां प्रमुख पद आचार्य का होता है।आचार्य ही अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों का नेतृत्व करते हैं।यह परंपरा आनंद अखाड़े की स्थापना के समय से ही चली आ रही है। अखाड़े के संस्थापकों ने आचार्य को ही सर्वोच्च पद देने का निर्णय लिया था। इससे समझ आता है कि आनंद अखाड़े के साधु- संत पद के मुकाबले मोक्ष और साधना को ज्यादा महत्व देते हैं। आनंद अखाड़ा अपनी कई अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाता है, जिनमें से एक है इसका लोकतांत्रिक ढांचा। आजादी से बहुत पहले से ही आनंद अखाड़े में एक तरह का प्रजातंत्र प्रक्रिया का पालन किया जाता है। आनंद अखाड़े के प्रमुख निर्णय सभी वरिष्ठ साधु- संत, महंत, नागा साधु मिलकर लेते हैं। यह नेतृत्व या प्रशासन का कार्य साझा जिम्मेदारी के सिद्धांत पर आधारित है। आनंद अखाड़े की निर्णय प्रक्रिया में सभी सदस्यों की राय को महत्व दिया जाता है।इस व्यवस्था से सभी साधु-संतों को समानता का अहसास होता है। 

5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है जिसके लगभग 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी है। इनमें से अधिकतर साधु नागा साधु हैं। जूना अखाड़ें की स्थापना 1145 में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में पहला मठ स्थापित किया गया था। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इसके ईष्टदेव शिव और रुद्रावतार गुरु दत्तात्रेय भगवान हैं। यह अखाड़ा नागा साधुओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है.नागा साधुओं की सर्वाधिक संख्या इसी अखाड़े में पाई जाती है. जूना अखाड़े की पेशवाई महाराजाओं की शान-ओ-शौकत जैसी होती है. इसमें स्वर्ण रथ समेत कई तरह के वैभव नजर आते हैं।  इस अखाड़े की पेशवाई में हाथी भी शामिल होता है. जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज हैं। वे ही पीठाधीश्वर/आचार्य महामंडलेश्वर हैं, जो अब तक एक लाख से अधिक सन्यासियों को दीक्षा दे चुके हैं। इस अखाड़े से तमाम देशी-विदेशी भक्त जुड़े हुए हैं जिसनी संख्या करोड़ों में हैं। जूना अखाड़े में व्यवस्था की एक खास प्रणाली है। यह अखाड़ा एक पूरा समाज है जहां साधुओं के 52 परिवारों के सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है। ये सभी लोग अखाड़े के लिए सभापति का चुनाव करते हैं। एक बार चुनाव होने के बाद यह पद जीवनभर के लिए चुने हुए व्यक्तियों का हो जाता है। ये चुनाव कुंभ मेले के दौरान ही होते हैं। 

6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा- दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्थित है। जिसे छठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित किया गया था। इस बाबत आवाहन अखाड़े के थानापति बताया कि यह अखाड़ा कई दशकों पुराना है। पहले इससे आवाहन सरकार के नाम से जाना जाता था।  क्योंकि यह धर्म की रक्षा के साथ-साथ लोगों को धर्म के पथ पर चलना भी सिखाता था। उन्होंने बताया कि इस अखाड़े का उद्देश्य सदैव धर्म की रक्षा करना रहा है। वर्तमान समय में भी यह इसी उद्देश्य पर काम कर रहा है। जहां भी विधर्म होगा, वहां नागा साधुओं का यह अखाड़ा मौजूद रहेगा। 

7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)

 इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है. कोई अन्य दीक्षा नहीं ले सकता है. श्रीपंचाग्नि अखाड़े की स्थापना विक्रम संवत् 1992 अषाढ़ शुक्ला एकादशी सन् 1136 में हुई। इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु व महामंडलेश्वर शामिल हैं। परंपरानुसार इनकी शाखाएं इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन व त्र्यंबकेश्वर में हैं। अखाड़े का संचालन 28 श्री महंत एवं 16 सदस्यों की टीम करती है। इस पीठ की आराध्या भगवती गायत्री हैं। यह भी कहा जाता है कि श्रीपंचाग्नि अखाड़ा चतुर्नाम्ना ब्रह्मचारियों का अखाड़ा है। इस अखाड़े की जो आचार्य गादी है, वह नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में मार्कंडेय आश्रम में स्थित है जो श्रीमार्कंडेय ऋषि की तपस्थली है।

See also  भगवान गणेश का नाम कैसे पड़ा एकदंत

वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े

श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)

श्री दिगम्बर आणि अखाड़ा में अणी का मतलब होता है समूह या छावनी। श्री दिगम्बर आणि अखाड़े का मठ श्यामलालजी, खाकचौक मंदिर, पोस्ट- श्यामलालजी, जिला-सांभर कांथा, गुजरात में स्थित है। इसका दूसरा मठ दिगम्बर अखाड़ा तपोवन, नासिक, महाराष्ट्र में स्थित है। ये इस संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है। इस अखाड़े की खासियत यह है कि इसके साधु नागा होते हैं । लेकिन इस अखाड़े के नागा साधु निर्वस्त्र न रहकर सफेद रंग के वस्त्र धारण करते हैं। वैष्णव संप्रदाय के ये साधु अपने शरीर पर कोई भस्म या भभूती नहीं लगाते हैं। इस समुदाय की सबसे बड़ी पहचान इन साधुओं के माथे पर लगा उर्ध्वपुंड्र यानी एक तरह का तिलक है। वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों के साधु संत अपने माथे पर त्रिपुंड्र तिलक यानी त्रिशूल जैसा तिलक लगाते हैं। वैष्णव संप्रदाय के इस अखाड़े का झंडा भी बाकी अखाड़ों से अलग होता है।दिगंबर अखाड़े का धर्म ध्वज पांच रंगों का होता है। इनके आराध्य बजरंगबली हनुमान होते हैं।

श्री निर्वाणी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)

इसका मठ अयोध्या हनुमान गढ़ी जिला- फैजाबाद में स्थित है और इसके संत हैं- श्रीमहंत धर्मदास। दूसरा मठ- श्रीलंबे हनुमान मंदिर, रेलवे लाइन के पीछे, सूरत, गुजरात में है और इसके संत हैं- श्रीमहंत जगन्नाथ दास। इस अखाड़े का मुख्य केंद्र हनुमानगढ़ी अयोध्या है. निर्वाणी आणि अखाड़े में निर्वाणी अखाड़ा, खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, हरिव्यासी निरावलबी अखाड़ा यानी कुल 7 अखाड़े शामिल हैं। निर्वाणी आणि अखाड़े की बैठक वृंदावन और चित्रकूट में भी है. इस अखाड़े के श्रीमहंत का चुनाव 12 वर्ष पर होता है।  वर्तमान में निर्वाणी आणि अखाड़े के श्रीमहंत धर्मदास हैं, जबकि निर्वाणी आणि अखाड़े के महासचिव महंत गौरी शंकर दास हैं। इसका संविधान संस्कृत भाषा में 1825 में लिखा गया।  इसका हिंदी रूपांतरण 1963 में हुआ। हनुमानगढ़ी अखाड़ा लोकतंत्र का बहुत बड़ा हिमायती है।  अखाड़े में चार अलग-अलग पट्टियां हैं। इनके नाम सागरिया, उज्जैनिया, हरिद्वारी और बसंतिया हैं। हनुमानगढ़ी में हर 12 वर्ष पर नागापना समारोह होता है। इसमें धर्म प्रचार का संकल्प लेकर नए सदस्यों को साधु की दीक्षा दी जाती है। इन्हें 16 दिन तक यात्री के रूप में सेवा करनी होती है। इसके बाद वे मुरेठिया के रूप में सेवा करते हैं। 16 दिन बाद नए सदस्यों का नाम मंदिर के रजिस्टर में दर्ज होता है। इसके बाद इन्हें हुड़दंगा का नाम दिया जाता है। ये खुद शिक्षा ग्रहण करने के साथ संतों को भोजन और प्रसाद वितरित करने के साथ ही अतिथियों की सेवा करते हैं। 12 वर्ष पर कुंभ के दौरान वरिष्ठ संतों को नागा की उपाधि दी जाती है। हनुमानगढ़ी अखाड़े में 4 पट्टी में प्रत्येक में तीन जमात हैं। इनके नाम खालसा, झुन्डी और डुंडा है। प्रत्येक जमात में दो थोक होता है। इसे परिवार कहा जाता है। प्रत्येक परिवार में आसन होते हैं। इन्हें संतों का निवास स्थान कहा जाता है।

श्री निर्मोही आनी अखाड़ा- धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)

इसका मठ धीर समीर मंदिर, बंशीवट, वृन्दावन, मथुरा में स्थित है और इसके संत हैं- श्रीमहंत मदन मोहन दास। दूसरा मठ- श्रीजगन्नाथ मंदिर, जमालपुर, अहमदाबाद, गुजरात में स्थित है और इसके संत हैं- श्रीमहंत राजेन्द्र दास। इस अखाड़े से लगभग 12,000 से अधिक साधु-संत जुड़े हुए हैं। निर्मोही अखाड़े की स्थापना 1720 में रामानंदाचार्य ने की थी। यह अखाड़ा भगवान राम के प्रति समर्पित है। इसीलिए अयोध्या आंदोलन से इस अखाड़े का नाम जुड़ा रहता है। कुंभ मेले में इसकी भागिदारी बढ़चढ़कर कर रहती है। वैसे पहले निर्मोही अखाड़ा पूजा-पाठ के अलावा लोगों की रक्षा का भी काम करता था। पुराने समय में इसके सदस्यों के लिए वेद, मंत्र आदि समझने के साथ शारीरिक कसरत और अस्त्र-शस्त्र सीखना भी जरूरी था। अखाड़े के संत मानते थे कि रामभक्तों की रक्षा करना उनका धर्म है। यही वजह है कि वे कई तरह के हथियार चलाना सीखते थे, जैसे तलवार, तीर-धनुष और कुश्ती। हालांकि समय के साथ इन चीजों की अनिवार्यता कम हो गई। अब भी निर्मोही अखाड़े के साधुओं के लिए शारीरिक मजबूती जरूरी है लेकिन अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखने की अनिवार्यता नहीं रही। मोहम्मद गौरी जैसे आक्रमणकारी  से भी अखाड़े के साधुओं से लड़ाई लड़ी है.इसी तरह से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी अंत समय में निर्मोही अनी अखाड़े में आकर शरण ली थी।

 उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े

श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)

इसका मठ कृष्णा नगर कीदगंज, इलाहाबाद में स्थित है। उदासीन का अर्थ ब्रह्मा में आसीन यानी समाधिस्थ से होता है। इस अखाड़े का प्रमुख आश्रम प्रयागराज में है। धार्मिक विद्वानों के अनुसार, इस अखाड़े को 1825 ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन हरिद्वार में हर की पौड़ी पर स्थापित किया गया था। इस अखाड़े के संस्थापक निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज माने जाते हैं। वहीं इस अखाड़े के पथ प्रदर्शक उदासीन आर्चाय गुरू नानक देव के पुत्र श्री चंददेव थे।  ये अखाड़ा अपना इष्ट देव श्री श्री 1008 चंद्र देव जी भगवान और ब्रह्मा जी के चार पुत्रों को मानता है। ये अखाड़ा सनातन धर्म और सिख पंथ दोनों की ही परंपराओं पालन करता है। अखाड़े की देशभर में 1600 शाखाएं हैं। इस अखाड़े में चार पंगत होते हैं। इन चार पंगतों के चार महंत होते हैं, जिसमें से एक श्रीमंहत के पद पर होते हैं। श्रीमंहत ही सारे अखाड़े की संचालन व्यवस्था को देखते हैं।

श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)

श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन “निर्वाण” अखाड़े का प्रमुख केंद्र कनखल हरिद्वार में हैं अखाड़े का पंजीकरण ईसवी सन 1902 में हुआ था। इस की विशेषता यह है कि इस अखाड़े में केवल छठी बख्शीश के श्री संगत देव जी की परंपरा के साधु सम्मिलित है ! समूचे देश में करीब 700 डेरे हैं।  अखाड़े की स्थापना 1738 में महंत मनोहर दास डेरा पटियाला ने की थी। इस अखाड़े के देश भर में 700 डेरे हैं। संतों के अनुसार, श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा शुरुआत में उसी बड़ा उदासीन अखाड़े में था, जिसकी स्थापना निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज ने की थी। उदासीन आचार्य जगतगुरु चंद्र देव महाराज इस बड़ा उदासीन अखाड़े के पथ प्रदर्शक थे। देश की आजादी की लड़ाई में भी ये अखाड़ा सक्रिय था।

श्रीनिर्मल पचंयती अखाड़ा – कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)

श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा (हरिद्वार) का रिश्ता गुरु नानक देव जी से बताया जाता है। साल 1564 में पटियाला में गुरु नानक देव की कृपा और से निर्मल संप्रदाय को स्थापित किया गया।  इस संप्रदाय का यकीन है कि भगवान एक ही है। ये संप्रदाय इसी सिद्धांत पर चलता है। कई सालों तक इन्हीं रिवाजों का पालन करते हुए इसे एक संस्था का रूप दिया गया। इस अखाड़े की नींव साल 1862 में बाबा मेहताब सिंह महाराज रखी थी। वहीं इस अखाड़े के संस्थापक माने जाते हैं। उनके बाद से इस अखाड़े के 10 महंत हो चुके हैं। इतना ही नहीं बीजेपी सांसद साक्षी महराज भी इस अखाड़े के साधु हैं। वो इस अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर बने थे। ये अखाड़ा सेवा भाव, निर्मल आचरण और परोपकार को पहला उपदेश मानता है। इस अखाड़े को उदासीन अखाड़ा भी कहा जाता है। 

महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह हिन्दू धर्म, संस्कृति और परंपराओं का विश्वभर में प्रचार करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। अखाड़े इस मेले के केंद्र में होते हैं और इनकी उपस्थिति महाकुंभ के महत्व को और भी बढ़ा देती है। अखाड़े न केवल धार्मिक शिक्षा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, बल्कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को भी संरक्षित करते हैं। इस प्रकार, महाकुंभ और अखाड़े भारतीय समाज और संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, जो न केवल धर्मिक, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी हैं।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .