धर्म संवाद / डेस्क : प्रभु जगन्नाथ के रथ यात्रा के पांचवें दिन पुरी के गुंडीचा मंदिर में मां लक्ष्मी के सम्मान में हेरा पंचमी नाम का एक त्योहार मनाया जाता है । कहते हैं इस दिन माता लक्ष्मी ने प्रभु के रथ को तोड़ दिया था क्योंकि प्रभु जगन्नाथ उन्हे बिना बताए अपने मौसी के घर आ गए थे और वे चिंतित बैठी थी। चलिए जानते हैं यह अनोखी पौराणिक कथा ।
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पौराणिक कथाओं की माने तो अनासर घर से निकालने के बाद प्रभु जगन्नाथ की बहन शुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जाहीर की। तब जगन्नाथ जी अपने भाई बलभद्र और बहन शुभद्रा के साथ रथ पर बैठकर निकाल पड़े। उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा था कि वे अगले दिन ही लौट आएंगे। परंतु वे अपने मौसी के घर गुंडीचा मंदिर चले गए। गुंडीचा मंदिर में उनका खूब आदर सत्कार हुआ । इधर माता लक्ष्मी उनकी प्रतीक्षा में बैठी रही। देखते ही देखते पाँच दिन बीत गए फिर माता लक्ष्मी प्रभु को खोजने निकल पड़ी। इस रस्म को ही हेरा पंचमी कहते हैं। हेरा का अर्थ है खोजना और पंचमी का अर्थ है पाँचवा दिन ।
माता लक्ष्मी उन्हे ढूंढते – ढूंढते गुंडीचा मंदिर पहुँचती हैं जहां उन्हे प्रभु जगन्नाथ का रथ खड़ा दिखता है। तब उन्हे आभास हुआ कि प्रभु जगन्नाथ उन्हे चिंतित छोड़ यहाँ अपने मौसी के घर पकवान उड़ा रहे हैं। । महालक्ष्मी अत्यंत क्रोधित हो गईं और क्रोध से जगन्नाथजी के रथ को तोड़ दिया और फिर पुरी के हेरा गोहिरी साही में बने अपने मंदिर में चली गई ।
जब जगन्नाथ जी को इस बारे में पता चलता है तो वो लक्ष्मी जी को मनाने के लिए कई तरह की बेशकीमती भेंट और मिठाई लेकर उनके मंदिर उन्हे मनाने पहुंचते हैं। भगवान जगन्नाथ विशेष रूप से रसगुल्ले माता लक्ष्मी के लिए ले जाते हैं। इस बीच प्रभु और माता में लड़ाई भी होती है।
इस परंपरा को आज भी पूरी में निभाया जाता है। माता लक्ष्मी के सेवक उनकी पालकी को गुंडीचा मंदिर ले जाते हैं। वहाँ लक्ष्मी जी और जगन्नाथ जी के सेवकों में लड़ाई होती है और आखिर में महालक्ष्मी के सेवक रथ के छोटे से हिस्से को तोड़कर अपने साथ मंदिर में ले जाते हैं। रूठी हुई महालक्ष्मी को मनाने के लिए उनकी पूजा की जाती है। उन्हें पूरी के मशहूर रसगुल्ले और अलग-अलग पदार्थों का भोग चढ़ाया जाता है। उसके बाद फिर रथ को वापस जगन्नाथ मंदिर लाया जाता है।