धर्म संवाद / डेस्क : भारत में ऐसे कई मंदिर हैं जिनके पीछे का रहस्य अनोखा है. कुछ मंदिरों के निर्माण विचित्र बड़े विचित्र तरीके से किये गए हैं.उनमे से ही एक मंदिर है बीकानेर शहर का भांडाशाह जैन मंदिर . बेहतरीन कलाकृतियों और अनोखी वास्तु कला वाला यह मंदिर शुद्ध देशी घी से बना है.
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आमतौर पर कोई निर्माण कार्य होता है तो वहां पहले नींव भरी जाती है. पत्थर कंक्रीट मिश्रण वगैरह डालकर पानी मिलाकर नींव भरने का कार्य पूरा किया जाता है.लेकिन इस मंदिर की नींव में पानी नहीं मिलाया गया. बल्कि चालीस हजार किलोग्राम घी का इस्तेमाल हुआ. जी हाँ लाल और पीले पत्थरो से तीन मंजिला बना समुतीनाथ जैन मंदिर अर्थात भांडाशाह जैन मंदिर की नीव 1525 में सेठ भांडाशाह ने रखी. इसलिए स्थानीय लोग इसे भांडाशाह जैन मंदिर के नाम से जानते हैं. यह मंदिर लगभग 108 फुट ऊँचा है. भांडाशाह जैन मंदिर में भगवान सुमतिनाथ जी मूल वेदी पर विराजमान हैं. मंदिर में उकेरे गए चित्र एवं कलाकृतियां देखते ही बनती हैं.
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मान्यता है कि एक बार घी के व्यापारी भांडाशाह जब मंदिर को बनवाने के लिए राजमिस्त्री के साथ चर्चा कर रहे थे, तभी उनके सामने रखे घी के पात्र में मक्खी गिर गई. जिसके बाद उन्होंने तुरंत ही मक्खी को उठाकर अपने जूते में रगड़ दिया.पास बैठा ठेकेदार ने यह सब देखकर आश्चर्यचकित हो गया. मिस्त्री ने ऐसा देखकर सोचा कि ये कंजूस सेठ कैसे मंदिर बनवाएगा. फिर ठेकेदार ने सेठ से बोला कि मंदिर को सैकड़ों वर्ष तक मजबूती के लिए घी का उपयोग उचित होगा. सेठ ने घी का प्रबंध करना शुरू किया. जब मंदिर का निर्माण शुरू हो रहा था तब सेठ ने मंदिर की नीव में घी डालना शुरू किया और यह सब देखकर ठेकेदार आश्चर्यचकित हो गया और तभी सेठ से माफी मांगी और कहा कि मैं तो आपकी परीक्षा ले रहा था. इसके बाद सेठ ने कहा कि यह घी मैंने भगवान के नाम पर दान कर दिया. इसका उपयोग तो मंदिर निर्माण की नीव में लेना ही होगा.
कहा जाता है कि उस जमाने में जब मंदिर का निर्माण हुआ तो उसमें कुल 400 कुंतल घी खर्च हुआ था. मान्यता है कि गर्मी के दिनों में आज भी मंदिर की दीवारों से घी रिसता हुआ नजर आता है. मंदिर को देखने के लिए रोजाना बड़ी मात्रा में पर्यटक आते हैं. मंदिर के निर्माण के 500 साल बाद भी मंदिर का फर्श आज भी चिकना रहता है. इससे यह प्रतीत होता है कि इस मंदिर के फर्श से घी निकलता है.