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तक्षक नाग और राजा परीक्षित की कथा

By Tami

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तक्षक नाग और राजा परीक्षित की कथा

धर्म संवाद / डेस्क : हमारे शास्त्रों मे जहां एक कथा का अंत होता है वही एक नए कथा का प्रारंभ भी । ठीक उसी तरह जिस तरह महाभारत के खत्म होने के साथ कलयुग की शुरुआत हुई थी। इसी कलयुग का पहला राजा परीक्षित को माना जाता है। परीक्षित अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। उनके बारे में यह कहा जाता है कि उनकी मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हुई थी। चलिए जानते हैं राज्य परीक्षित और तक्षक नाग की कथा।

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कहते हैं एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। उन्हें प्यास लगी तो वे वन में स्थित एक आश्रम में गए। वहां उन्हें मौन अवस्था में बैठे शमीक नाम के एक ऋषि दिखाई दिए। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाही, लेकिन मौन और ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया। इसपर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने पास पड़ा एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए।

शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दे दिया और कहा कि आज से ठीक सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से तुम्हारी मौत हो जाएगी। ध्यान के बाद जब ऋषि शमिक को पूरे घटनाक्रम का पता चल तो उन्होंने राज्य परीक्षित को इस श्राप के बारे में जानकारी दे दी। उस के बाद राजा परीक्षित सांपों से खुद को दूर रखने की कोशिश करने लगे। मगर ठीक सातवें दिन फूलों की टोकरी में कीड़े के रूप में छुपकर आए तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को काट लिया और उनकी मृत्यु हो गई।

जब उनके पुत्र जनमेजय को अपने पिता के मृत्यु का कारण पता चला तो उन्होंने सम्पूर्ण सर्प जाती के विनाश का मन बन लिया । जनमेजय ने नाग दाह यज्ञ का अनुष्ठान किया।  इस यज्ञ में धरती के सारे सांप एक के बाद एक हवन कुंड में आ कर गिरने लगे। उस व्यक्त तक्षक भयभीत होकर स्वर्ग लोक पहुँच गए और भगवान इन्द्र से सहायता मांगी और इंद्रपुरी मे रहने लगे। उसके बाद माता मनसादेवी के पुत्र विद्वान् बालक आस्तिक (आस्तीक) वहाँ पहुंचे। आस्तिक जी ने राजा को नाग दाह यज्ञ बंद करने के लिए समझाया तो जनमेजय ने यज्ञ रोक दिया और नाग पूरी तरह से नष्ट होने से बच गए।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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