धर्म संवाद / डेस्क : दुनिया के सबसे अमीर भगवान कर्ज में डूबे हुए हैं। सुनकर चौंक गए न आप भी। आप सोच रहे होंगे की भगवान कर्ज में कैसे हो सकते हैं। वो भी दुनिया के सबसे अमीर भगवान । पर यह बात बिल्कुल सच है। हम बात कर रहे है तिरुमला तिरुपति मंदिर की। जिसे दुनिया के सबसे मंदिरों मे से एक माना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यहाँ उनकी पूजा वेंकटेश्वर के रूप में की जाती है। भगवान वेंकटेश्वर सबसे अमीर भगवान माने जाते हैं।
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तिरुपति मंदिर के पास कुल 85 हजार करोड़ की संपत्ति है। इन संपत्तियों में 7123 एकड़ जमीन पर फैली कुल 960 संपत्तियां हैं, जिसकी कीमत लगभग 85,705 करोड़ रुपये है।इसके अलावा, मंदिर के पास 14 टन के करीब सोना भी है। तिरुपति मंदिर में श्रद्धालु सिर्फ धन ही दान नहीं करते, वे सोना, चांदी, कीमती पत्थर, अपनी निजी संपत्ति और कंपनी के शेयर्स भी दान करते हैं।बताया जाता है कि मंदिर के पास 14000 करोड़ की FD भी है। मंदिर की छत हो या दीवारें हो या दरवाजे हो, सभी पर सोने की परत चढ़ी हुई है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर इतने अमीर भगवान कर्ज में कैसे डूबे हुए हैं। और भक्त इतना ज्यादा दान क्यूँ देते हैं। दरअसल, माना जाता है कि भक्त बालाजी को कर्ज से मुक्ति दिलवाने के लिए इतना दान करते हैं। पर फिर भी आखिर भगवान वेंकेटेश्वर को कर्ज लेना ही क्यूँ पड़ा। इसके पीछे एक रोचक कथा है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार महर्षि भृगु वैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैया पर लेटे भगवान विष्णु की छाती पर एक लात मारी। भगवान विष्णु ने तुरंत भृगु के चरण पकड़ लिए और पूछने लगे कि ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी। भगवान विष्णु के ये कहते ही भृगु ऋषि ने दोनों हाथ जोड़ लिए और कहने लगे प्रभु आप ही सबसे सहनशील देवता हैं। क्योंकि भगवान विषणु के सीने में देवी लक्ष्मी का वास होता है, जिसके चलते देवी लक्ष्मी को भृगु ऋषि का यह व्यवहार पसंद नहीं आया तो उन्होंने माहृषी भृगु को श्राप दिया कि लक्ष्मी काभी ब्राह्मणों को नहीं मिलेगी और भगवान के भृगु ऋषि को दंड नहीं देने की वजह से वे विष्णु जी से भी नाराज हो गईं। उसके बाद , परिणामस्वरूप लक्ष्मीजी ने विष्णुजी को त्याग दिया और वैकुंठ छोड़ कर चली गई। विष्णुजी ने उन्हें हर जगह ढूंढा मगर वे नहीं मिली।
उसके बाद देवी लक्ष्मी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म लिया। जब श्री हरी को यह बात पता चली तो उन्होंने भी तब अपना रूप बदला और श्रीनिवास के रूप में पृथ्वी पर पहुंचे। वे वेंकटाद्री पर्वत में एक चींटी के आश्रय में तपस्या करने लग गए। यह देखकर ब्रह्माजी के उनकी सहायता करने के फैसला किया। वे गाय और बछड़े का रूप धारण कर पद्मावतीके पास गए।
पद्मावतीने उन्हें देखा और उस वक्त के सत्ताशीस शासक चोल राजा को उन्हें सौंप दिया। राजा ने उसे चरवाहे को सौंप दिया। परंतु वह गाय दूध नहीं देती थी। एक दिन चरवाहे ने देखा कि वो गाए दूर एक हीनती के घर जाकर वहाँ दूध दे रही है। यह देखकर उसे बहुत गुस्सा या गया और उसने उस गाय को मारने का प्रयास किया। तब श्रीनिवास ने चरवाहे पर हमला करके गाय को बचाया और क्रोधित होकर उन्होंने चोल राजा को एक राक्षस के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। राजा ने दया की प्रार्थना की तब श्रीनिवास ने कहा कि राजा को दया तब मिलेगी जब वह अपनी बेटी पद्मावती का विवाह मुझसे करेगा।
इस कथा के एक और प्रसंग के अनुसार, माना जाता है कि चरवाहे ने जब मारने की सोची तो तब उनका औज़ार, श्रीनिवास के सर पर लगा और उसके सर से कुछ बाल निकाल आए और साथ ही रक्त भी बाहा।
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कहते हैं उसके बाद पद्मावती भी श्रीनिवास से विवाह करने के लिए राजी हो गई। पौराणिक कहानियों के मुताबिक उस दौर में शादी के समय कन्या शुल्क दिया जाता था। शादी से पहले वर को ये कन्या शुक्ल चुकाना पड़ता था। लेकिन देवी लक्ष्मी के जाने से भगवान विष्णु कंगाल हो चुके थे और धरती पर पद्मावती से शादी के लिए उनके पास कन्या शुक्ल चुकाने के पैसे भी नहीं थे। लक्ष्मी को जीतने के लिए उन्हें लक्ष्मी की ही जरूरत थी। तब भगवान शंकर और भगवान ब्रह्मा ने विष्णु जी की मदद करने का फैसला किया।
उन सभी ने श्रीनिवास को धन के देवता कुबेर से कर्ज लेने का सुझाव दिया । तब भगवान वेंकटेश्वर ने कुबेर से एक करोड़ रुपये के साथ-साथ एक करोड़ सोने की गिन्नियां मांगीं। कुबेर धन देने को तैयार हो गए। पर उन्होंने ये पुछा कि आप ये वापस कब करेंगे। तब श्रीनिवास ने वचन दिया कि कलयुग के अंत तक वे कुबेर का सारा ऋण चुका देंगे और तब तक उन्हें सूद दिया जाता रहेगा। उन्होंने देवी लक्ष्मी की ओर से भी वचन देते हुए कहा कि जो भी भक्त उनका ऋण लौटाने में उनकी मदद करेंगे देवी लक्ष्मी उन्हें उसका दस गुना ज्यादा धन देंगी। इस कारण तिरुपति जाने वाले विष्णु भगवान पर आस्था रखने वाले भक्त दान दे कर भगवान विष्णु का ऋण चुकाने में उनकी मदद करते हैं।
माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर अब भी कर्ज में डूबे हुए हैं। इसलिए श्रद्धालु उन्हें धन, बाल या बाकी मूल्यवान चीज़ें दान करके उनके कर्ज का ब्याज कम करने की कोशिश करते हैं। मान्यता यह है कि बाल दान करने वालों पर मां लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है।