धर्म संवाद / डेस्क : दुनिया भर में ईश्वर की आराधना करने के अलग अलग तरीके है। कही मूर्ति पूजा होती हैं कही जीव-जंतुओं की तो कही पेड़-पौधों की। पर नेपाल में एक जीवित देवी की पूजा की जाती है । उसे कुमारी कहा जाता है। नेपाली परंपरा के अनुसार शाक्य या वज्रचार्य जाति की बच्चियों को कुमारी देवी के तौर पर चुना जाता है। इस जाति की बच्चियों को तीन वर्ष का होते ही परिवार से अलग कर दिया जाता है और उन्हें कुमारी नाम दे दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुमारी असल में देवी तालेजू का अवतार है।
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कुमारी देवी के चयन की परंपरा काफी अलग और रोचक होती है। नेपाल के खास समुदाय नेवारी लड़कियों की पहचान करते हैं। इनकी जन्म कुंडली की जांच की जाती है। तय संयोग मिलने पर इनकी परीक्षा ली जाती है। इनकी परीक्षा भी आसान नहीं होती। नके सामने कटे भैंसे का सिर रखा जाता है। डरावने मुखौटे लगाकर लोग नाच करते हैं। इन सबसे अगर बच्ची बिना भयभीत हुए आगे बढ़ती है तब जाकर उसे देवी माना जाता है। कुमारी बनने के बाद उसे समाज से अलग एक निश्चित जगह रखा जाता है जिसे कुमारी का घर कहा जाता है। कुमारी देवी अपना समय धार्मिक काम में बिताती हैं। उनके पांव जमीन पर नहीं पड़ने दिए जाते। वे साल में एक बार बाहर निकलती है और भक्तों को दर्शन देती हैं।
इस मान्यता की शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई थी । राजा जयप्रकाश मल्ल ने सबसे पहले इसकी शुरुआत की थी। कहते हैं एक दिन जब राजा प्रकाश मल्ल अपने राज्य में गश्त कर रहे थे, तो उन्होंने एक लड़की को देखा जो पासे के खेल में निपुण थी। उसने उसके खेल को आत्मसात कर लिया और देखा कि वह हर बाजी जीत रही थी। राजा प्रकाश मल्ल स्वयं पासा बजाने में माहिर थे, इसलिए उन्होंने उन्हें अपने साथ खेलने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन वह उसके खिलाफ एक भी बाजी नहीं जीत सका, उसे बहुत आश्चर्य हुआ।
जब वे पासा खेल रहे थे तो धीरे-धीरे राजा को लड़की के प्रति आकर्षण महसूस होने लगा। जैसे ही उसने उसे गले लगाने के लिए एक कदम भी आगे बढ़ाया, तभी देवी तालेजू गायब हो गई, जिससे उसे बड़ी निराशा हुई। कुछ समय बाद, देवी उसके सपने में प्रकट हुईं और कहा: ” मैं तुम्हें तुम्हारे बुरे व्यवहार का पश्चाताप करने का मौका दूंगी।” आप एक कुंवारी लड़की का चयन करेंगे, जिसकी मंदिर में प्रतिष्ठा की जाएगी। अगर उसे पहली बार मासिक धर्म होता है, तो वह फिर से एक सामान्य लड़की बन जाएगी और आपको अगला अवतार ढूंढना होगा । राजा ने खुद को सुधारने के लिए देवी के आखिरी मौके को स्वीकार कर लिया और तुरंत कुमारी महल का निर्माण किया।
एक और कथा के अनुसार, यह कहा जाता है कि राजा प्रकाश मल्ल रात के समय देवी तालेजू के दर्शन करने जाते थे। जहां देवी मूर्ति से स्वयं को सुंदर स्त्री में बदल लेती थीं और त्रिपसा (पासा खेल) खेलती थीं। देवी हर रात राजा के कक्ष में इस शर्त पर जाती थीं कि राजा उनकी मुलाकात के बारे में किसी को नहीं बता सकते।
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एक दिन राजा की पत्नी ने यह जानने का फैसला लिया कि राजा हर रात कहाँ जाते हैं। वह उसके पीछे-पीछे उसके कक्ष तक गई और तब उसने राजा और देवी के देख लिया । देवी को जैसे ही राजा की पत्नी की उपस्थिति के बारे में पता चला तो वे क्रोधित होकर चली गईं। और दुबारा कभी उन्हे दर्शन नहीं दी। देवी के चले जाने के बाद राजा दुविधा में पड़ गए लेकिन एक रात देवी ने राजा के सपने में दर्शन दिए और कहा कि ‘शाक्य जाति से एक बालिका ढूंढो।’ मैं उसकी आत्मा में प्रवेश करूंगी और तुम उसकी उसी तरह पूजा करोगे जैसे तुमने मेरी पूजा की थी।’ इसके बाद, राजा शाक्य जाति के एक बच्ची की तलाश में गए, और तब एकमात्र जीवित देवी का चयन शुरू हुआ।
आपको बता दे बच्चियाँ आजीवन कुमारी नहीं रहती हैं। उस देवी को तब तक ही देवी माना जाता है जब तक उसे मासिक धर्म नहीं शुरू हो जाता। एक बार यह शुरू हो गया तब उसे यह पद छोड़ना पड़ता है। साथ ही अगर किसी चोट या जख्म के कारण इनके शरीर से खून निकला तो भी कुमारी देवी को पद छोड़ना होता है। इसके बाद वह अपना जीवन अपने हिसाब से बिता सकती हैं। पूर्व कुमारियों की शादी होना बहुत मुश्किल होता है। मान्यता है कि अगर कोई लड़का उनसे शादी करता है तो उसकी असमय मौत हो जाती है। इस कारण से अधिकतर देवियां अविवाहित ही रह जाती हैं।
कुमारी देवी को जीवित देवी कहा जाता है। इनकी पूजा भगवान की पूजा की ही तरह होती है। पूरे नेपाल में कई कुमारियाँ हैं। सबसे प्रसिद्ध काठमांडू की रॉयल कुमारी हैं। कुछ सालों पहले नेपाल में एक भयंकर भूकंप आया था जिसमे कई लोगों की जाने गई थी और अनेक जान-माल का नुकसान हुआ था। लेकिन एक स्थान ऐसा था जहां मौजूद लोगों पर आंच तक नहीं आई और वह स्थान था ‘कुमारी देवी’ का मंदिर। लोगों का कहना है कुमारी देवी ने उन्हे बचाया।