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श्रीराम और शबरी की कथा

By Tami

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श्रीराम और शबरी की कथा

धर्म संवाद / डेस्क : माता शबरी को रामायण का एक विशेष पात्र माना जाता है।  उनके झूठे बेर श्रीराम ने खाए थे और अपनी महानता का परिचय दिया था। माता शबरी को श्रीराम का परम भक्त माना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रभु राम की भक्ति में समर्पित कर दिया था । वे जीवन भर उनकी प्रतीक्षा करती रही थी। परंतु क्या आप जानते हैं ऐसा क्यूँ ? चलिए जानते हैं।

शबरी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। वे भील समाज से थी इसलिए उन्हे अछूत माना जाता था।  शबरी को पशु-पक्षियों से बहुत स्नेह था. उनका विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले कई सौ पशु बलि के लिए लाए गए। जिन्हें देख शबरी बड़ी आहत हुई. शबरी ने उन जानवरों को आजाद करने के बारे में सोचा। शबरी ने सोचा मेरे घर से कहीं चले जाने पर यह बलि रुक सकेगी। जब मैं ही नहीं रहूंगी, तब न विवाह होगा और न ही बलि प्रथा। इससे मासूम जानवर बच जाएंगे।उस वक्त शबरी अपने घर से भाग गई और ऋषिमुख पर्वत पहुंची। वहां करीब दस हजार ऋषि रहा करते थे।शबरी उन्ही के बीच रहकर अपना जीवन बिताने लगी।

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परंतु शबरी के  भील जाति के होने के कारण ऋषि-मुनि उसे दूर भगाते थे।  शबरी जिस तालाब से जल लेने जाती थी, ऋषियों ने वहां से पानी लेना भी बंद कर दिया।आखिर में सिर्फ ऋषि मतंग ने ही उन्हें अपनाया और शिक्षा दी। उन्होंने शबरी को अपनी पुत्री की तरह रखा। शबरी ने भी अपने गुरु की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।  जब मातंग ऋषि बूढ़े हो चले तो उन्होंने शबरी को पास बुलाया और कहा कि एक दिन भगवान राम तेरी कुटिया में आएंगे और खुद तुम्हें इस संसार से मुक्त करेंगे। ये कहकर ऋषि मतंग चल बसे।

शबरी

यह सुन कर शबरी हर रोज अपनी कुटिया को साफ करती और रास्ते में आने वाले पत्थरों और कांटों को हटाती , ताकि श्रीराम के पैरों में चुभे नहीं. अपनी कुटिया को फूलों से सजाती और हर वो कार्य करती जिससे श्रीराम के पधारने के बाद उन्हे कोई असुविधा न हो। शबरी रोज ताजे फल और बेर तोड़कर श्रीराम के लिए रखती। हर कोई शबरी को पागल समझता । परंतु शबरी फिर भी श्री राम की राह देखती।

एक बार आश्रम के पास के तलाब में शबरी पानी लेने के लिए गई। तभी पास के ही एक ऋषि ने उसे अछूत कहते उन्हे एक पत्थर मार दिया। वो पत्थर जब शबरी को लगा, तो उसे चोट लगी और खून बहने लगा। बहते हुए खून की एक बूंद जब उस तलाब के पानी में गिरी तो पूरा तालाब का पानी खून में बदल गया। यह देखकर सबने कहा कि पापीन तुम्हारी वजह से पूरा पानी खराब हो गया। रोज ऋषि उस पानी को साफ करने के लिए अपनी कई तरह की विद्याओं का इस्तेमाल करते। कई सारे जतन करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। फिर उन्होंने गंगा जैसी कई पवित्र नदियों का जल भी उस तालाब में डाला। फिर भी तालाब का पानी साफ नहीं हो पाया।

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कई सालों के बाद भगवान राम अपनी पत्नी सीता को ढूंढते हुए उसी तालाब के पास पहुंचे। ऋषि-मुनियों ने उन्हें पहचान लिया। भगवान को वहां देखकर ऋषियों ने तालाब का पानी साफ करने के लिए भगवान को अपने पैर उसमें डालने के लिए कहा, लेकिन पानी जैसे का तैसा ही था।फिर जब श्रीराम ने सभी से तालाब के रंग बदलने का कारण पूछा तो एक ऋषि ने बताया कि कि वो महिला ही अपवित्र है, छोटी जात की है, इसलिए ये सब हुआ है। उसी वक्त भगवान राम ने कहा, ‘ये सब आप लोगों के खराब वचनों से हुआ है। शबरी को इस तरह के शब्द बोलकर आप लोगों ने उसे नहीं, बल्कि मेरे दिल को घायल किया है। इसी घायल दिल के रक्त का प्रतीक यह तालाब का लाल पानी है।’ इस दौरान शबरी भी वहाँ पहुँचती हैं और उनके पैर को ठोकर लगती है और कुछ धूल उस तालाब में गिर जाती है। तभी सारा पानी साफ हो जाता है।

तब श्रीराम ने सबसे कहा ,  कि देखिए, आप लोगों ने क्या कुछ नहीं किया, लेकिन पानी साफ नहीं हो पाया। अभी सिर्फ इनके पैर की थोड़ी-सी धूल ने ही तलाब का पानी साफ कर दिया। 

आखिरकार शबरी की प्रतीक्षा भी पूर्ण हुई। उनका विश्वास रंग लाया। शबरी ने श्रीराम का स्वागत किया और कहते हैं कि शबरी ने श्रीराम को स्वयं चखकर सिर्फ मीठे बेर खिलाये, जिसे भगवान राम ने झूठे होते हुए भी भक्ति के वश होकर प्रेम से खाए। शबरी की भक्ति देखकर श्रीराम ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .

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