श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम् | Shree Vindheshwari Stotram

By Tami

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श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्रम्

धर्म संवाद / डेस्क : देवी भगवती के अनेक रूपों में से एक रूप विन्ध्येश्वरी भी है। उन्हे विंध्यवासिनी भी कहा जाता है। नवरात्री के समय उनकी विशेष पूजा होती है। साथ ही उस समय माता के स्तोत्र का पाठ किया जाता है।  इस स्त्रोत का पाठ करने से माता प्रसन्न होती है और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं। श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने से घर में धन की कमी नहीं होती है।

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी,
प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी ।
बनेरणे प्रकाशिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

त्रिशूल मुण्ड धारिणी,
धरा विघात हारिणी ।
गृहे-गृहे निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

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दरिद्र दुःख हारिणी,
सदा विभूति कारिणी ।
वियोग शोक हारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

लसत्सुलोल लोचनं,
लतासनं वरप्रदं ।
कपाल-शूल धारिणी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कराब्जदानदाधरां,
शिवाशिवां प्रदायिनी ।
वरा-वराननां शुभां,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

कपीन्द्न जामिनीप्रदां,
त्रिधा स्वरूप धारिणी ।
जले-थले निवासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

विशिष्ट शिष्ट कारिणी,
विशाल रूप धारिणी ।
महोदरे विलासिनी,
भजामि विन्ध्यवासिनी ॥

पुंरदरादि सेवितां,
पुरादिवंशखण्डितम्‌ ।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं,
भजामि विन्ध्यवासिनीं ॥

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Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .