धर्म संवाद / डेस्क : हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय अपने पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का होता है। मान्यता है कि इन दिनों में पितरों की आत्मा पृथ्वी पर आती है और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा रखती है।
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कर्ण से जुड़ी कथा
क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष की शुरुआत महाभारत के कर्ण से जुड़ी हुई है?
कथा के अनुसार, कर्ण की मृत्यु के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची, तो उन्हें भोजन की जगह सोना और गहने दिए गए। इस पर कर्ण ने हैरानी जताई और देवराज इंद्र से पूछा कि भोजन के बजाय सोना क्यों दिया जा रहा है।
इंद्र ने बताया कि कर्ण ने जीवनभर दान तो बहुत किया, लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भोजन का दान नहीं दिया। कर्ण ने सफाई दी कि उन्हें अपने पितरों के बारे में जानकारी ही नहीं थी, इसलिए वह ऐसा नहीं कर सके।
कर्ण को दूसरा अवसर
इंद्र ने उनकी भक्ति और उदारता को देखते हुए उन्हें गलती सुधारने का अवसर दिया। कर्ण को 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति मिली। इस दौरान उन्होंने अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर उन्हें भोजन दान दिया। इससे पितरों को तृप्ति मिली और कर्ण को मुक्ति प्राप्त हुई।
इसी घटना के बाद से 16 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष की परंपरा की शुरुआत हुई।
श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का महत्व
- श्राद्ध से पितरों को मुक्ति मिलती है।
- पिंडदान और तर्पण से उनकी तृप्ति होती है।
- मान्यता है कि पितृलोक में भले ही वैभव और ऐश्वर्य हो, लेकिन जल का अभाव रहता है।
- इसलिए काले तिल युक्त जल से तर्पण करने पर पितरों को विशेष संतोष और शांति मिलती है।
निष्कर्ष
पितृ पक्ष सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है। कर्ण की यह कथा हमें सिखाती है कि दान-पुण्य के साथ-साथ पूर्वजों का स्मरण और सम्मान भी उतना ही आवश्यक है।






