माता सीता धरती में क्यों समाई थी

By Tami

Updated on:

माता सीता धरती में क्यों समाई थी

धर्म संवाद / डेस्क : रामायण में माता सीता के धरती में समा जाने का प्रसंग बड़ा ही रोचक है। वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड के अनुसार श्रीराम के दरबार में उन्होंने अपने चरित्र की शुद्धता का प्रमाण देते हुए पृथ्वी माँ की गोद में जा कर समा गई थी। पर आखिर उन्हे वैसा करने की जरूरत क्यों पड़ी।

यह भी पढ़े : श्रीराम और शबरी की कथा

[short-code1]

रावण द्वारा जब माता सीता का हरण हुआ था उसके बाद श्रीराम माता सीता को वापस लाने के लिए लंका गए थे और वहाँ से रावण का वध कर माता सीता का उद्धार किया था। परंतु वे एक पराय पुरुष के घर रह कर आई थी इस वजह से उन्हे अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी। कथाएँ ये भी कहती हैं कि असली माता सीता को कोई अग्नि परीक्षा नहीं देनी पड़ी थी. त्रेतायुग में ये धारणा थी कि अगर कोई व्यक्ति सच्चा है तो उसे अग्नि कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती है। असली माता सीता अग्नि देव की शरण में थीं और सीता अपहरण से लेकर अग्नि परीक्षा तक के समय में माया की सीता ही थीं. और सीता माता की अग्नि परीक्षा असल सीता को अग्नि से वापस लाने के लिए थी। परंतु ये लोग यही मानते हैं कि माता सीता ने अपनी शुद्धता साबित करने के लिए अग्नी परीक्षा दी थी।

WhatsApp channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Join Now

माता सीता, श्रीराम के साथ जब आयोध्या लौटीं तब उनकी पवित्रता को लेकर समाज के एक वर्ग में संदेह होने लगा. एक वृद्धा ने कटाक्ष करते हुए ये भी कहा कि ये भला कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो ऐसी सीता को अयोध्या वापस ले आए जो इतने दिनों तक रावण के पास थीं और उनकी पवित्रता का कोई प्रमाण ही नहीं है. तब श्रीराम ने प्रजा की बात मानकर माता सीता को वनवास भेज दिया था। वे उस दौरान वाल्मीकि आश्रम में रहा करती थी। वही उनके पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ था।

एक दिन वाल्मीकि जी ने लव और कुश को रामायण सुनाने के लिए श्रीराम के दरबार भेजा । बाद में जब श्रीराम को पता चला कि वे उनके पुत्र है और माता सीता ने इतना कष्ट सहा। तब श्रीराम ने कहा, ‘यदि सीता का चरित्र शुद्ध है और वे आपकी अनुमति ले यहां आकर जन समुदाय में अपनी शुद्धता प्रमाणित करें और मेरा कलंक दूर करने के लिए शपथ करें तो मैं उनका स्वागत करूंगा।’

See also  आखिर किसने डिजाईन किया अयोध्या का राम मंदिर

यह संदेश सुनकर वाल्मीकि माता सीता को लेकर दरबार में उपस्थित हुए। उन्होंने माता सीता का पक्ष लेटे हुए कहा, ‘श्रीराम! मैं तुम्हें विश्‍वास दिलाता हूं कि सीता पवित्र और सती है। कुश और लव आपके ही पुत्र हैं। यदि मेरा कथन मिथ्या है तो मेरी सम्पूर्ण तपस्या निष्फल हो जाय।‘ तब श्रीराम सभी ऋषि-मुनियों, देवताओं और उपस्थित जनसमूह को लक्ष्य करके बोले, “हे मुनि एवं विज्ञजनों! मुझे महर्षि वाल्मीकि जी के कथन पर पूर्ण विश्‍वास है परन्तु यदि सीता स्वयं सबके समक्ष अपनी शुद्धता का विश्‍वास दें तो मुझे प्रसन्नता होगी।”

उसके बाद माता सीता ने हाथ जोड़कर कहा, “मैंने अपने जीवन में यदि श्रीरघुनाथजी के अतिरिक्‍त कभी किसी दूसरे पुरुष का विचार भी अपने मन में न लाया हो तो मेरी पवित्रता के प्रमाणस्वरूप भगवती पृथ्वी देवी अपनी गोद में मुझे स्थान दें।” बस इतना कहते साथ ही पृथ्वी फट गई और पृथ्वी माँ ने प्रकट होकर माता सीता को अपने बगल में बैठाया और पाताल ले कर चली गई। सारे दर्शक स्तब्ध रह गए और ये सब होता हुआ देखने लगे। श्रीराम को पश्चाताप होने लगा परंतु वे भी विवश थे इसलिए वे कुछ नहीं कर पाए। कुछ संस्करणों और टीवी सेरियल्स में ये भी दिखाया गया है कि माता सीता देवी वसुंधरा से यह कहती है कि वे थक गई है अपनी शुद्धता का प्रमाण देते -देते। परीक्षा देते -देते । पर ये संसार फिर भी संतुष्ट नहीं हो रहा । यह दुनिया एक पवित्र नारी के लिए नहीं है अर्थात वे यहाँ जीना नहीं चाहती।

Tami

Tamishree Mukherjee I am researching on Sanatan Dharm and various hindu religious texts since last year .