धर्म संवाद / डेस्क : भारतीय राज्य गोवा समुद्री तटों का राज्य है। इस राज्य को इसके पर्यटन के लिए जाना जाता है। गोवा का इतिहास बाकी भारतीय राज्यों के इतिहास से थोड़ा सा भिन्न है। जिस तरह भारत अंग्रेजो के आधीन था ठीक उसी तरह गोवा पुर्तगालियों के आधीन था। पर पौराणिक समय से ही गोवा सनातन के प्रमुख स्थानों में से एक था। पुर्तगालियों ने अनेक मंदिरों को नुक्सान पहुँचाया। सनातन धर्म को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कई रास्ते अपनाये पर पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सके। आज भी गोवा में कई ऐसे मंदिर है जो गोवा के सनातन इतिहास की गाथा कहते हैं। गोवा के इन्हीं मंदिरों में से एक है श्री शांतादुर्गा मंदिर, जो गोवा की राजधानी पणजी से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में माँ दुर्गा शांत रूप में विराजमान है।
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माँ शांतादुर्गा की कहानी अनोखी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और भोलेनाथ के बीच भयानक युद्ध प्रारंभ हो गया। इस भीषण युद्ध से सम्पूर्ण संसार पर अनचाहा संकट आ पड़ा। ये युद्ध शांत ही नहीं हो रहा था। इस युद्ध को लगातार बढ़ता हुआ देख ब्रह्मा जी ने माता पार्वती से प्रार्थना की। ब्रह्मा जी की प्रार्थना सुनकर माता पार्वती ने शांतादुर्गा का अवतार लिया। श्री शांतादुर्गा ने महादेव को अपने एक हाथ में पकड़ लिया और भगवान विष्णु को दूसरे हाथ में। माँ के दोनों देवताओं को हाँथ में उठाने के बाद यह युद्ध शांत हो गया और इसीलिए इन्हें शांतेरी या शांतादुर्गा कहा जाता है। मां शांतादुर्गा भगवान शिव की पत्नी भी हैं और उनकी परम भक्त भी हैं। यही कारण है की इस मंदिर में शांतादुर्गा के साथ साथ भगवान शिव की भी आराधना की जाती है ।
शांतादुर्गा देवी का मंदिर मूलतः केलोशी में था। केलोशी में श्री शांतादुर्गा देवी को संतेरी देवी के नाम से जाना जाता था और इसी नाम से उनकी पूजा की जाती थी। श्री शांतादुर्गा का मंदिर केलोशी में एक समृद्ध व्यापारी अनु शेनाई मोने द्वारा बनवाया गया था। गोवा में पुर्तगालियों के अत्याचार बढ़ रहे थे। उनके शासनकाल में मंदिर तुड़वाये जा रहे थे। इसलिए श्री शांतादुर्गा और श्री मंगेश की पूजा करने वाले परिवार, चांदनी रात में, अपने घरों और चूल्हों को छोड़कर, देवताओं की मूर्तियों को और अपने सिर पर लिंग के साथ जुआरी नदी को पार करते हुए मुस्लिम राजा आदिलशाह के शासन वाले क्षेत्र में स्थानांतरित हो गए। दांडी से होते हुए वे अंतुज गांव के कवलेम गांव पहुंचे और श्री शांतादुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने के लिए सुंदर परिवेश वाला एक स्थान चुना। ये जगह थी केलोशी । संरक्षक देवता श्री मंगेश को पोंडा तालुका के प्रियोल में स्थापित किया गया था। यह स्थान अब मंगेशी के नाम से जाना जाता है।
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पुर्तगाली रिकॉर्ड के अनुसार देवताओं को 14 जनवरी 1566 और 29 नवंबर 1566 के बीच किसी समय स्थानांतरित किया गया था। स्थानांतरण के कुछ ही समय बाद, दोनों मूल मंदिर ध्वस्त हो गए। वर्तमान मंदिर गोवा की राजधानी पणजी से 30 किलोमीटर दूर पोंडा तहसील के कवलम नामक गाँव में स्थित है। इसका निर्माण छत्रपति साहू जी महाराज के मंत्री नरोराम ने करवाया। मंदिर में समय-समय पर मरम्मत होता रहा। साहू जी महाराज ने 1739 में कवले गांव उपहार के रूप में मंदिर को दे दिया।
शांतादुर्गा मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के साथ तीन अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर की छत का निर्माण पिरामिड आकार में किया गया है। इसके अलावा मंदिर के स्तम्भ और फर्श के निर्माण में कश्मीरी पत्थरों का उपयोग किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में श्री शांतादुर्गा की एक महमोहक मूर्ति स्थापित की गई है। हालाँकि देवी की मूल प्रतिमा को 1898 में पठान चुरा कर ले गए थे। इसके बाद श्री लक्ष्मण कृष्णाजी गायतोंडे के द्वारा बनाई गई प्रतिमा 19 मार्च 1902 को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित की गई।
मंदिर पणजी से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर है। नजदीकी एयरपोर्ट डाबोलिम में है, जो 45 किलोमीटर दूर है। नजदीकी रेलवे स्टेशन वास्कोडिगामा और मरगांव हैं। पणजी बस स्टैंड मंदिर से करीब 30 किलोमीटर दूर है। एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड से टैक्सी या स्थानीय साधनों से आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं।