धर्म संवाद / डेस्क : नवरात्रि हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। मातारानी का आगमन उनके भक्तों के बीच हमेशा खुशियां ले आता है। शारदीय नवरात्रि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस त्योहार की शुरुआत महालया से होती है और विजयादशमी पर समाप्त होती है। महालया पितृ पक्ष श्राद्ध की अवधि का 16वां दिन है। इसके अगले दिन से ही नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस दिन को पितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
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धार्मिक मान्यता है कि महालया पर्व से ही देवी भगवती कैलाश पर्वत से अपनी यात्राएं शुरू करती है। धरती पर देवी के आगमन को महालया कहा जाता है। हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को महालया मनाया जाता है। महालया के दिन सुबह पितरों का श्राद्ध,तर्पण व पिंडदान करके उनको श्रद्धापूर्वक विदा किया जाता है और शाम को देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
बंगाली लोग इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं और कई परंपराओं का पालन करते हैं। महालया की सुबह, बंगाली लोग दुर्गा पूजा की तैयारी शुरू करते हैं। सुबह सुबह उठकर चंडी पाठ सुनना बंगालियों की सदियों पुरानी परंपरा है जो आज भी कायम है। इस दिन देवी के मंत्रों और ‘महिषासुर मर्दिनी’ भजन का पाठ भी किया जाता है।