धर्म संवाद / डेस्क : भारत मंदिरों का देश है। भारत के कुछ मंदिर ऐसे हैं जिनकी मान्यताएँ बहुत ही अनोखी है। कुछ मंदिरों में चॉकलेट का प्रसाद चढ़ाते हैं तो कही घड़ी चढ़ाई जाती है। कुछ मंदिरों में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है तो कहीं पुरुषों के जाने पर पाबंदी है। वैसा ही एक अनोखा मंदिर ऐसा है जहां पुरुष पूजा तो करते है परंतु औरत बनकर। चलिए जानते हैं इस मंदिर की कथा ।
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यह मंदिर केरल में स्थित है। इस मंदिर का नाम है कोट्टनकुंलंगरा श्री देवी मंदिर । मान्यताओं के अनुसार, यहाँ श्री भगवती की प्रतिमा स्वयंभू है। मार्च माह में यहां चाम्याविलक्कू त्योहार मनाया जाता है. इस उत्सव के दौरान पुरुष महिलाओं की तरह साड़ी पहनकर और सज संवरकर मंदिर जाते हैं और देवी की पूजा करते हैं. अपनी खास परंपरा और मान्यताओं के लिए यह मंदिर दुनियाभर में मशहूर है। एक और अनोखी बात यह है कि इस मंदिर के ऊपर कोई छत नहीं है. साथ ही गर्भगृह मे कोई कलश भी नहीं है।
मान्यताओं के अनुसार, एक बार लड़कों के एक समूह को जंगल में खेलते वक्त एक नारियल मिला था। जब उन्होंने इसे तोड़ने की कोशिश की तो इसमें से खून बहने लगा। तब उन लड़को ने इस घटना के बारे में अन्य लोगों को बताया। तब इस नारियल को देवी माना गया और इसे स्थापित कर मंदिर बनाया गया। दूसरी मान्यता के अनुसार, कुछ चरवाहों ने महिलाओं के कपड़े पहनकर यहाँ पत्थर पर फूल चढ़ाए थे, जिसके बाद उस पत्थर से दिव्य शक्ति निकलने लगी। जिसके बाद लोगों को इस बारे में जानकारी मिली और वे लोग यहाँ आकार पूजा करने लगे।
साथ ही यह भी माना जाता है कि इस मंदिर में दो देवियाँ विराजमान है, उनकी पूजा का अधिकार केवल महिलाओं को ही है। ऐसे में पुरुष इस मंदिर में अपने सामान्य रूप में अंदर नहीं जा सकते हैं। इसलिए वह स्त्री का रूप धारण कर मंदिर में पूजा करते हैं। कहते हैं कि जो भी पुरुष, महिलाओं के वेश धारण करके इस मंदिर में पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।साथ ही अच्छी पत्नी और अच्छी नौकरी भी मिलती है।
आपको बता दे चाम्याविलक्कू त्योहार मलयाली महीना मीनम में मनाया जाता है। इस दौरान पुरुषों का मेकअप करने के लिए दक्षिण भारत के तमाम मेकअप आर्टिस्ट पहुंचते हैं. मंदिर परिसर के बाहर स्टाल लगते हैं जिन पर मेकअप किया जाता है. उत्सव के दौरान जिस पुरुष का मेकअप सबसे खास होता है, उसे पुरस्कार भी दिया जाता है. किसी भी धर्म या जाति का व्यक्ति यहां आ सकता है। यह उत्सव दो दिन तक चलता है।