धर्म संवाद / डेस्क : होली के त्योहार का इंतज़ार हर किसी को रहता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है। सबको अबीर-गुलाल के साथ होली खेलना बहुत पसंद है। परन्तु हमारे भारत देश में होली सिर्फ रंगों से ही खेली नहीं जाती बल्कि और भी चीजों से अलग – अलग तरीके से खेली जाती है। इस पर्व को मनाने का तरीका देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग- अलग है। चलिए आपको बताते है इस त्योहार को भारत के अलग-अलग हिस्से में कैसे मानते हैं।
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मथुरा की लट्ठमार होली
लट्ठमार होली की परंपरा बहुत पुरानी है। माना जाता है इसका संबध राधा –कृष्ण से है। कहते हैं श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ कमर में फेंटा लगाए राधा रानी और गोपियों के साथ होली खेलने बरसाने पहुंच जाया करते थे। उनकी हरकतों से परेशान होकर उन्हें सबक सिखाने के लिए राधा और उनकी सखियां उन पर डंडे बरसाती थीं। उनकी मार से बचने के लिए कृष्ण और उनके मित्र लाठी और ढालों का उपयोग किया करते थे। इसी परंपरा को आज भी निभाया जाता है। लट्ठमार होली दो दिन खेली जाती है। एक दिन बरसाने में और एक दिन नंदगांव में। पहले दिन बरसाने में नंदगांव के युवक जाते हैं और बरसाने की हुरियारिन उन पर लट्ठ बरसाती हैं और दूसरे दिन बरसाने के युवक नंदगांव पहुंचकर लट्ठमार होली खेलते हैं। होली के दौरान जिस भी पुरूष से लठ छिव जाता है, उसे महिलाओं के कपड़े पहनने पड़ते हैं और सबके सामने नृत्य भी करना पड़ता है। होली का यह उत्सव सात दिनों तक चलता है।
दक्षिण की होली
वैसे तो दक्षिण भारत में होली उतना बड़ा त्यौहार नहीं है, पर वहां भी होली मनाई जाती है। दक्षिण भारतीय राज्यों में होली को कामदेव की कहानी से जोड़कर देखा जाता है। तमिल नाडु में होली को कामदहनम कहा जाता है। आंध्र प्रदेश में होली को ‘मेदुरू होली’ के रूप में मनाया जाता है. इसमें प्रतिभागी जुलूसों में भाग लेते हैं जिसमें पारंपरिक संगीत और नृत्य के साथ-साथ एक दूसरे पर रंगीन पाउडर फेंके जाते हैं।
पश्चिम बंगाल की दोल जात्रा
दोल जात्रा को दोल पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय राज्यों पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम में होली दोल जात्रा के रूप में मनाई जाती है। संगीत और नृत्य इस त्योहार का एक हिस्सा हैं। इस दिन पुरुष और महिलाएं पीले रंग के कपड़े पहनते हैं। महिलाएं बालों में फूल सजाती हैं। लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाकर इस त्योहार को मनाते हैं। शांतिनिकेतन में इस बसंत उत्सव की शुरुआत मशहूर बंगाली कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी।
पटना का फगुआ
बिहार की राजधानी पटना में होली बड़ी निराली होती है। होली के तमाम गाने होते हैं। होली के मौक़े पर गाए जानेवाले गानों को फगुआ कहते हैं और होली को भी फगुआ नाम से जाना जाता है। यहां रंगों से ही नहीं, कीचड़ से भी होली खेली जाती है। छककर भांग पीते हैं, भोजपुरी लोकगीतों और फ़िल्मी गीतों पर झूमते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर की भस्म होली
उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भस्म की होली खेलने की परंपरा है। होलिका दहन के दिन सुबह आरती के बाद यह होली खेली जाती है। इस होली के लिए साल भर होने वाले हवन यज्ञों की भस्म को एकत्रित किया जाता है। फिर उसे छानकर तैयार करते हैं। इसके बाद देश के प्रमुख शिव मंदिरों से भी भस्म लाकर उसमें मिलाई जाती है। यह भस्म भोलेनाथ के भक्तों को प्रसाद के रूप में भी दी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव भी अपने गणों के साथ भस्म से होली खेलते थे। इसलिए भगवान शिव के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए भस्म से ही होली खेलते हैं।
फूलों की होली
वृन्दावन में लट्ठमार होली के अलावा फूलों की होली भी खेली जाती है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण और राधा ने गोपियों संग फूलों वाली होली खेली थी। तभी से इस होली का चलन बना हुआ है। इस अवसर पर भक्त मंदिर में एकत्रित होते हैं, जहां मंदिर के पुजारी भक्तों पर रंग-बिरंगे फूलों की वर्षा करते हैं। इसके साथ ही लोग एक-दूसरे पर गुलाब, कमल और गेंदे के फूल की पंखुड़ियां बरसाते हैं।
पंजाब में होला-मोहल्ला
पंजाब के आनंदपुर साहिब में होली त्योहार ‘होला-मोहल्ला’ के रूप में मनाते हैं। इस दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जहां सिख समुदाय के लोग कुश्ती, मार्शल आर्ट्स और तलवार के साथ करतब दिखाते हैं। इसके साथ ही मेले में घुड़सवारी, ट्रक रेस जैसे पारंपरिक खेलों को भी शामिल किया जाता है। बताया जाता है यहां ‘होल्ला-मोहल्ला’ उत्सव की शुरुआत साल 1701 में हुई थी।