धर्म संवाद / डेस्क : हनुमान जी बिना श्री राम के अधूरे हैं और श्री राम भी बिना हनुमान जी के अधूरे माने जाते हैं। हनुमान जी को संकट मोचन और पवन पुत्र के नाम से भी पुकारा जाता है। सी मान्यता है कि जिस घर में भगवान श्री हनुमान की पूजा आराधना रोज होती है, उस घर में कोई भी नकारात्मक शक्तियों का वास नहीं होता है। पर क्या आपको पता है कि श्री राम और हनुमान जी के जन्म में काफी संबंध है।
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हनुमान जी की माता का नाम अंजना और पिता का नाम केसरी था। उनका जन्म चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन, यानी राम नवमी के दिन हुआ था। अंजना पुत्र प्राप्ति के लिए शिव जी की पूजा कर रही थी। दूसरी तरफ अयोध्या में राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करा रहे थे। इस यज्ञ को श्रृंगी ऋषि करवा रहे थे। हवन में उन्हें एक खीर दी गयी। उन्हें कहा गया कि यह वो अपनी रानियों को खिला दें। हवन समाप्ति के बाद राजा दशरथ ने खीर तीनों रानियों में थोड़ी-थोड़ी बांट दी लेकिन तभी खीर का एक भाग एक कौआ अपने साथ उड़ा ले गया और उसने उसे वहाँ गिरा दिया जहाँ अंजनी मां तपस्या कर रही थी। तपस्या करती हुई अंजना के हाथ में जब खीर गिरी, तो उन्होंने उसे शिवजी का प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लिया। कहते हैं कि इसी प्रसाद की वजह से अयोध्या में रामजी का जन्म हुआ और अंजनी की कोख से हनुमानजी का। इस तरह प्रभु और भक्त दोनों एकसाथ एक ही प्रसाद से इस धरती पर अवतरित हुये और उनका एक अनोखा सम्बन्ध जन्म से ही बन गया।
एक और कथा ये भी कहती है कि एक बार भगवान इंद्र ऋषि दुर्वासा द्वारा आयोजित स्वर्ग में एक औपचारिक बैठक में भाग ले रहे थे। तब उस समय हर कोई एक गहन मंथन में डूबा था। पुंजिकस्थली नाम की एक अप्सरा अनजाने में उस बैठक में विघ्न पैदा कर रही थी। तब वहाँ मौजूद ऋषि दुर्वासा ने उसे ऐसा करने से मना किया। फिर भी वह नहीं मानी। यह देख कर वो नाराज हो गए। तब ऋषि दुर्वासा ने उसे श्राप देते हुए कहा कि तुमने एक बंदर की तरह काम किया है। इसलिए तुम उसी प्रकार एक बंदरिया बन जाओ। ऋषि दुर्वासा के शाप की बात सुनकर अप्सरा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो उनसे रोते हुए क्षमा मांगने लगी।
मार्हरीशी दुर्वासा ने उसे श्राप मुक्त तो नहीं किया परंतु उसे वरदान देते हुए कहा कि अगले जन्म में तुम एक भगवान से शादी करोगी। लेकिन वह एक बंदर होगा और तुम्हारा जो पुत्र होगा वह बंदर ही होगा जो बहुत ही शक्तिशाली होगा और भगवान श्री राम का प्रिय भक्त होगा। कुछ सालों बाद पुंजीकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज के घर जन्म लिया। उसका नाम अंजनी रखा गया। जब अंजनी विवाह योग्य हुई, तो उनका विवाह केसरी से कर दिया गया। कहते हैं कि राजा केसरी को ऋषियों की प्राणरक्षा करने के बदले यह वरदान मिला था कि उन्हें एक ऐसा पुत्र प्राप्त होगा, जो अपनी इच्छानुसार रूप धारण कर सकें और जो वायु के समान पराकर्मी और रुद्र के समान हो। फिर उनके घर हनुमान जी का जन्म हुआ।